संदर्भ:
हाल ही में, भारत सरकार ने राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता समझौते (BBNJ) पर हस्ताक्षर किए, जिसे हाई सीज़ ट्रीटी के रूप में भी जाना जाता है, लेकिन अभी तक इसकी पुष्टि नहीं की गई है।
अन्य संबंधित जानकारी:
- इस संधि का उद्देश्य समुद्री जल में प्रदूषण को कम करना तथा जैव विविधता और अन्य समुद्री संसाधनों का संरक्षण करना है।
- इसे औपचारिक रूप से “राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्रों की समुद्री जैविक विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग पर समझौता” कहा जाता है।
उच्च सागर संधि क्या है?
- संयुक्त राष्ट्र उच्च सागर संधि पर मार्च, 2023 में सहमति हुई थी।
- यह हस्ताक्षर हेतु सितंबर, 2023 से शुरू होकर दो वर्ष के लिए खुला है।
- यह वर्ष 1982 के संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन (United Nations Convention on the Law of the Sea-UNCLOS) के अंतर्गत एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है।
- इसका उद्देश्य राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर के क्षेत्रों, जिन्हें आमतौर पर उच्च सागर या खुले सागर के रूप में जाना जाता है, में समुद्री जैव विविधता के संरक्षण और सतत उपयोग को बढ़ावा देना है।
- उच्च सागर संधि को अंतर्राष्ट्रीय कानून के रूप में लागू होने के लिए कम से कम 60 देशों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता है।
- यह 60वें अनुसमर्थन प्राप्त होने के 120 दिन बाद प्रभावी हो जाएगा।
- संयुक्त राष्ट्र के 196 सदस्य देशों में से 104 देशों ने संधि पर हस्ताक्षर किये हैं तथा 13 देशों ने इसका अनुसमर्थन किया है।
- राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता पर समझौता संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन के तहत स्वीकृत होने वाला तीसरा समझौता है, इससे पूर्व वर्ष 1994 और वर्ष 1995 में अंतर्राष्ट्रीय समुद्रतल प्राधिकरण और मत्स्य स्टॉक समझौते की स्थापना की गई थी।
संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन
- इसे वर्ष 1982 में अपनाया गया और हस्ताक्षरित किया गया, जो 16 नवंबर, 1994 को लागू हुआ।
- यह वैश्विक समुद्रों और महासागरों को विनियमित करने वाली एक अंतर्राष्ट्रीय संधि है।
- इसका उद्देश्य समुद्री पर्यावरण और जीवित संसाधनों का संरक्षण, समान संसाधन उपयोग और सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
उच्च सागर क्या है?
- उच्च सागर से तात्पर्य किसी भी देश की सीमाओं से परे महासागरीय जल क्षेत्र से है, जिसे राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्र भी कहा जाता है।
- वे कुल महासागर क्षेत्र के लगभग 64% हिस्से में फैले हुए हैं और उन्हें साझा वैश्विक संपत्ति माना जाता है। यहाँ जैव विविधता की विविध श्रृंखला पाई जाती है। इसके बावजूद, विश्व के 2% से भी कम उच्च सागर कानूनी रूप से संरक्षित हैं।
- उच्च सागर में गतिविधियाँ अंतर्राष्ट्रीय कानून, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन द्वारा नियंत्रित होती हैं।
- संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन उच्च समुद्र पर सभी देशों के लिए कुछ स्वतंत्रता की गारंटी देता है:
- नौवहन: नौवहन की स्वतंत्रता जहाजों और विमानों को खुले समुद्र में स्वतंत्र रूप से यात्रा करने की अनुमति देती है।
- मछली पकड़ना: मछली पकड़ने की अनुमति है, लेकिन निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए नियमों को तेजी से लागू किया जा रहा है।
उच्च सागर संधि का महत्व:
महत्वपूर्ण समुद्री मुद्दों का समाधान:
- यह समुद्री सतह के बढ़ते तापमान, समुद्री जैव विविधता के अत्यधिक दोहन, अति मत्स्यन, तटीय प्रदूषण और राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे अवैध गतिविधियों की निगरानी करता है।
समुद्री संरक्षित क्षेत्र की स्थापना:
- महासागरों को हानिकारक मानवीय गतिविधियों से बचाने के लिए समुद्री संरक्षित क्षेत्रों का निर्माण करता है।
- समुद्री संरक्षित क्षेत्रों पर निर्णय लेने के लिए “तीन-चौथाई बहुमत” की आवश्यकता होती है, जिससे एक या दो दलों द्वारा उत्पन्न अवरोध को रोका जा सके।
लाभों का उचित बंटवारा:
- यह समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से प्राप्त वैज्ञानिक जानकारी और मौद्रिक लाभ को साझा करना अनिवार्य बनाता है।
- सभी पक्षों के लिए समुद्री संरक्षित क्षेत्रों, समुद्री आनुवंशिक संसाधनों और क्षेत्र-आधारित प्रबंधन उपकरणों पर सूचना तक पहुँच प्रदान करने के लिए “क्लियर हाउस मैकेनिज्म” को लागू करता है, जिससे पारदर्शिता और सहयोग में वृद्धि हुई है।
क्षमता निर्माण और समुद्री प्रौद्योगिकी हस्तांतरण:
- विकासशील देशों को क्षमता निर्माण और समुद्री प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण का समर्थन है।
- वैज्ञानिक एवं तकनीकी निकाय पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन के लिए मानक और दिशानिर्देश स्थापित करेगा तथा कम क्षमतावान देशों की सहायता करेगा।
पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन:
- संभावित रूप से हानिकारक गतिविधियों के लिए अनिवार्य पर्यावरणीय प्रभाव आंकलन के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करता है।
- भविष्य के प्रभावों पर नज़र रखने, डेटा अंतराल की पहचान करने और अनुसंधान को प्राथमिकता देने के लिए पक्षकारों के सम्मेलन की सुविधा प्रदान करता है।
वैश्विक पहल संरेखण:
- यह उच्च महत्वाकांक्षा गठबंधन (हाई एम्बिशन कोलिशन) द्वारा समर्थित है, जिसमें भारत, अमेरिका और ब्रिटेन जैसे 100 से अधिक देश शामिल हैं, जिसका लक्ष्य ’30×30′ है। ’30×30′ का उद्देश्य 2030 तक महासागर के 30% हिस्से को संरक्षित करने पर केंद्रित है।
- यह कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता फ्रेमवर्क (GBF) के हिस्से के रूप में दशक के अंत तक ग्रह की 30% भूमि, तटीय क्षेत्रों और अंतर्देशीय जल को संरक्षित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन COP15 के समझौते के अनुरूप है।
उच्च सागर संधि के समक्ष चुनौतियाँ:
समुद्री आनुवंशिक संसाधन विवाद:
- समुद्री संरक्षित क्षेत्रों और प्रबंधन साधनों पर जानकारी का साझाकरण और आदान-प्रदान पर वाद विवाद।
- जैव संभावना (Bioprospecting research) अनुसंधान के लिए निगरानी प्रावधानों और लाइसेंसिंग योजनाओं पर असहमति के कारण लंबी वार्ता।
अस्पष्ट शब्दावली:
- “प्रोत्साहित करना” बनाम “सुनिश्चित करना” जैसे शब्दों के प्रयोग पर विवाद, विशेष रूप से समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से लाभ के उचित बंटवारे के संबंध में।
निकट क्षेत्रों के मुद्दे:
- उच्च सागर में भिन्न-भिन्न राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्रों के संबंध में तटीय राज्यों की चिंताएँ।
- राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्र से परे समुद्र तल और भूमिगत भूमि पर संप्रभु अधिकारों के लिए विशेष प्रावधानों पर बहस, जिससे स्थल-रुद्ध और दूरस्थ राष्ट्रों के हितों पर प्रभाव पड़ेगा।
संधि का विरोध
- समुद्री प्रौद्योगिकी में उन्नत अनुसंधान और विकास का नेतृत्व करने वाली निजी संस्थाओं को सहायता देने के कारण इसका विरोध।
- निजी कंपनियों के एक छोटे समूह के पास मौजूद समुद्री आनुवंशिक संसाधनों से संबंधित पेटेंट को लेकर चिंताएँ।
- रूस ने यह तर्क देते हुए आम सहमति से खुद को अलग कर लिया कि यह संरक्षण और स्थिरता के बीच पर्याप्त संतुलन नहीं रखता है।
आगे की राह:
- संवर्धित कूटनीतिक सहभागिता: संधि के बारे में आम सहमति बनाने और चिंताओं को दूर करने के लिए तटीय और स्थल-रुद्ध राष्ट्रों सहित सभी हितधारकों के बीच निरंतर और पारदर्शी वार्ता को बढ़ावा देना।
- सुसंगत शब्दावली: अस्पष्टता से बचने और सभी पक्षों के बीच एक सामान्य समझ सुनिश्चित करने के लिए शब्दावली को मानकीकृत करना।
- क्षेत्रीय सहयोग ढाँचा: विभिन्न राष्ट्रीय अधिकार क्षेत्रों के बारे में तटीय राष्ट्रों की चिंताओं को दूर करने तथा समीपवर्ती समुद्री क्षेत्रों के न्यायसंगत प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए क्षेत्रीय सहयोग ढाँचे की स्थापना करना।
- विकासशील देशों को सहायता प्रदान करना: विकासशील देशों को समुद्री संरक्षण और संसाधनों के सतत उपयोग हेतु उनकी क्षमता बढ़ाने के लिए तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान करना।
- वैज्ञानिक एवं तकनीकी निकाय को मजबूत बनाना: पर्यावरण प्रभाव आकलन संचालित करने वाले देशों (विशेष रूप से सीमित क्षमता वाले देशों) के लिए दिशानिर्देश, मानक और सहायता प्रदान करने हेतु वैज्ञानिक एवं तकनीकी निकाय को सशक्त बनाना।