संदर्भ:

विशेषज्ञ आपूर्ति की समस्याओं से निपटने के लिए नैनो डाइ-अमोनियम फॉस्फेट (Nano DAP) जैसे विकल्पों की खोज कर रहे हैं, क्योंकि पंजाब को सालाना लगभग 550,000 टन डाई-अमोनियम फॉस्फेट (Di-Ammonium Phosphate-DAP) की आवश्यकता होती है।

डीएपी (डाइ-अमोनियम फॉस्फेट)

  • भारत में यह सामान्यतः प्रयुक्त उर्वरक है, जो यूरिया के बाद दूसरे स्थान पर है।
  • इसमें फास्फोरस की मात्रा अधिक होती है, जो जड़ों के विकास और पौधे की समग्र वृद्धि में सहायक होता है।
  • बुवाई से पहले या बुवाई के दौरान इसका प्रयोग किया जाता है।

नैनो डीएपी

  • इसे इफको (IFFCO) द्वारा तरल रूप में जारी किया गया है, जिसमें 8% नाइट्रोजन और 16% फॉस्फोरस है।
  • दानेदार डीएपी के विपरीत, नैनो डीएपी एक तरल पदार्थ है जिसके कण 100 नैनोमीटर से भी छोटे होते हैं।
  • कण का आकार छोटा होने के कारण इसे पौधों द्वारा बीजों और पत्तियों के माध्यम से अधिक कुशलतापूर्वक अवशोषित किया जा सकता है।
  • इससे पौधों की बेहतर वृद्धि, क्लोरोफिल में वृद्धि, प्रकाश संश्लेषण में सुधार और फसल की अधिक पैदावार होने की बात कही जाती है। 

नैनो डीएपी अपनाने की वजह

  • लागत-प्रभावी: नैनो डीएपी पारंपरिक दानेदार डीएपी से सस्ता होता है। इसके 500 मिलीलीटर की बोतल की कीमत 600 रुपये है, जबकि दानेदार डीएपी के 50 किलोग्राम के बैग की कीमत 1,350 रुपये है। यह कम कीमत सरकार के सब्सिडी बोझ को कम करने में मदद करती है।
  • सुविधा: नैनो डीएपी तरल रूप में आता है, जिससे इसे परिवहन, भंडारण और उपयोग करना आसान हो जाता है। भारी 50 किलो के बैग के विपरीत, 500 मिलीलीटर की बोतलें संभालना आसान है और इन्हें सीधे फसलों पर छिड़का जा सकता है।
  • दक्षता: नैनो डीएपी दानेदार डीएपी की तुलना में अधिक कुशल है। यह पौधों द्वारा अधिक आसानी से अवशोषित हो जाता है, जिससे संभावित रूप से बेहतर फसल उपज होती है।
  • आयात निर्भरता कम होगी: भारत वर्तमान में अपने डीएपी का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है। घरेलू स्तर पर उत्पादित नैनो डीएपी आयात की आवश्यकता को कम करेगा और भारत को उर्वरक उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगा।
  • घरेलू उत्पादन को सहायता: गुजरात में निर्मित नैनो डीएपी का उपयोग स्थानीय उद्योग को सहायता देता है और उर्वरकों में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने में मदद करता है, जिससे किसानों और अर्थव्यवस्था दोनों को लाभ होता है।

नैनो डीएपी की कमी

  • फसल की पैदावार में कमी: पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पाया कि दानेदार डीएपी की तुलना में नैनो डीएपी से गेहूं की पैदावार में उल्लेखनीय कमी आई, जिसके परिणामस्वरूप पौधों की ऊंचाई कम हुई और परिणाम भी कमतर रहे।
  • नैनोकणों की सांद्रता में वृद्धि: नैनो डीएपी के लंबे समय तक उपयोग से मिट्टी और फसलों में नैनोकणों की सांद्रता बढ़ सकती है, जिसके पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव अज्ञात हैं।
  • स्वास्थ्य जोखिम: अत्यधिक नैनो आकार के कण स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकते हैं। नैनो डीएपी का उपयोग करते समय किसानों और उपभोक्ताओं के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है।
  • सीमित पहुँच: हालांकि इफको ने नैनो डीएपी की 6 करोड़ बोतलें उत्पादित की हैं, लेकिन यह भारत की 18 करोड़ हेक्टेयर कृषि भूमि के केवल एक हिस्से को मिल सकती है, जो व्यापक आवश्यकताओं को पूरा करने में इसकी वर्तमान सीमाओं को उजागर करता है।

निष्कर्ष

नैनो डीएपी, दक्षता और लागत-प्रभावशीलता के मामले में आशाजनक है, लेकिन फसल की पैदावार और संभावित स्वास्थ्य जोखिमों के मामले में चुनौतियों का सामना कर रही है। भारत की उर्वरक आपूर्ति समस्याओं को हल करने की इसकी क्षमता सीमित है, इसकी दीर्घकालिक व्यवहार्यता सुनिश्चित करने के लिए आगे अनुसंधान और विकास की आवश्यकता है।

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