संदर्भ:

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के तहत केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थान (CICR) द्वारा एक अभूतपूर्व शुरुआती परियोजना विनाशकारी गुलाबी इल्ली कीट (Pink Woolworm) से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करने के लिए वास्तविक समय की निगरानी और समय पर हस्तक्षेप के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का उपयोग किया है। 

अन्य संबंधित जानकारी

  • कपास उत्पादक किसान लंबे समय से गुलाबी इल्ली कीट (PBW) नामक कीड़े से जूझ रहे हैं, जो कपास की फसल को तबाह कर देता है, क्योंकि यह कपास के फल के कुछ हिस्सों, जैसे- वर्गाकार फल और बॉल को नष्ट कर देता है।
  • हाल के वर्षों में, आनुवंशिक रूप से संशोधित बीटी कपास भी इस कीट के कारण नष्ट हो गया है, जिससे व्यापक आर्थिक नुकसान हुआ है।
  • इस शुरुआती परियोजना के अंतर्गत, वास्तविक समय पर कीटों की निगरानी के लिए एआई-संचालित फेरोमोन ट्रैप तैनात किए गए हैं।
  • यह पहल भारत में पहली बार किया गया है, जो किसी भी फसल में कीट नियंत्रण के लिए एआई के उपयोग में अग्रणी है।
  • कीट नियंत्रण के लिए शुरुआती कार्यक्रम पंजाब के तीन प्रमुख कपास उत्पादक जिलों: मुक्तसर, भटिंडा और मानसा में कार्यान्वित किया जा रहा है।
  • इस परियोजना के लिए प्रत्येक जिले से छह खेत चुने गए हैं, यानी कुल 18 खेत। अगर यह परियोजना सफल रही तो इसे राजस्थान और हरियाणा में भी लागू किया जाएगा, जिससे इस व्यापक समस्या का एक व्यापक समाधान मिल सकेगा।

नई एआई-संचालित प्रौद्योगिकी की कार्यप्रणाली

  • फसल कीटों को कम करने के लिए फेरोमोन ट्रैप का उपयोग किया गया है, जिसमें फेरोमोन गॉसीप्लर होता है, जो मादा पतंगों द्वारा नर पतंगों को आकर्षित करने के लिए उत्सर्जित किया जाने वाला रसायन है।
  • किसान आमतौर पर प्रति हेक्टेयर पांच फेरोमोन जाल लगाते हैं और नर पतंगों की गतिविधि पर नजर रखते हैं, ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह आर्थिक सीमा स्तर (economic threshold level-ETL) से अधिक है या नहीं।
    आर्थिक सीमा स्तर कीट जनसंख्या का स्तर या फसल क्षति की वह सीमा है जिस पर फसल का मूल्य कीट नियंत्रण की लागत से अधिक हो जाता है। 
  • हालाँकि, इन जालों की मैन्युअल निगरानी समय लेने वाली और चुनौतीपूर्ण हो सकती है, विशेष रूप से बड़े खेतों का प्रबंधन करने वाले किसानों के लिए।
  • नई तकनीक में वास्तविक समय में कीटों की निगरानी के लिए कैमरों से लैस एआई-संचालित फेरोमोन ट्रैप का उपयोग किया जाता है। ये हाई-टेक ट्रैप नियमित अंतराल पर फेरोमोन की ओर आकर्षित होने वाले पतंगों की तस्वीरें खीचते रहते हैं।
  • नए डिजिटल दृष्टिकोण में, किसान को अपने मोबाइल फोन के माध्यम से प्रति घंटे फसल की जानकारी मिलती है, जिससे समय पर कीट प्रबंधन सलाह मिल पाती है, कुशल नियंत्रण सुनिश्चित होता है और नुकसान को आर्थिक सीमा से नीचे रखा जा सकता है।

किसानों के लिए लाभ

  • पूर्व चेतावनी प्रणाली: वास्तविक समय कीट डेटा किसानों को महत्वपूर्ण क्षति होने से पहले गुलाबी इल्ली कीट आबादी को नियंत्रित करने हेतु समय पर कार्रवाई करने की अनुमति देता है।
  • बेहतर निर्णय लेने की क्षमता: सटीक आंकड़ों से लैस होकर, किसान कीटनाशक के उपयोग के बारे में सूचित निर्णय ले सकते हैं, जिससे अनावश्यक उपयोग और पर्यावरणीय प्रभाव में कमी आएगी।
  • बढ़ी हुई दक्षता: एआई-संचालित जाल किसानों के लिए बहुमूल्य समय बचाते हैं, जिससे उन्हें फसल प्रबंधन के अन्य महत्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है। इस एआई-संचालित प्रणाली के साथ, किसान दूर से अपनी फसलों की निगरानी कर सकते हैं।

गुलाबी इल्ली कीट (Pectinophora gossypiella)

  • यह कीट आमतौर पर कपास की खेती में एक कीट के रूप में जाना जाता है। वयस्क एक छोटा, पतला, भूरे रंग का कीट होता है जिसके पंख झालरदार होते हैं। लार्वा एक फीके सफेद रंग का कीड़ा होता है जिसके आठ जोड़े पैर होते हैं और पीठ पर गुलाबी रंग की पट्टी होती है। लार्वा की लंबाई आधे इंच तक हो सकती है।
  • मादा कीट कपास के गोले में अंडे देती है। जब लार्वा अंडे से निकलते हैं, तो वे भोजन करके नुकसान पहुंचाते हैं। वे बीजों को खाने के लिए कपास के रेशे को चबाते हैं।

बीटी-कपास 

  • वर्ष 1996 में संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में सफलतापूर्वक प्रयोग के बाद बीटी कपास (Bt cotton) को वर्ष 2002 में भारत में लाया गया।
  • कपास की इस आनुवंशिक रूप से संशोधित किस्म को, बैसिलस थुरिंजिएंसिस (Bt) जीवाणु के क्राय1एसी विष (Cry1Ac toxin) से युक्त किया गया है, जिसे फसलों को विभिन्न प्रकार के कीड़ों से बचाने के लिए डिजाइन किया गया था, जिनमें अमेरिकी, धब्बेदार और गुलाबी कीट शामिल हैं।
  • बीटी कॉटन शुरू में बहुत प्रभावी था। इसने गुलाबी इल्ली कीट से होने वाले नुकसान को काफी हद तक कम कर दिया, जिससे पैदावार में वृद्धि हुई और कीटनाशकों का उपयोग कम हुआ।
  • वर्ष 2008 में, वैज्ञानिकों ने गुजरात के अमरेली जिले में गुलाबी इल्ली कीट की असामान्य जीवित रहने की दर देखी, जो कि इस कीट में क्राई1एसी जीन के प्रति बढ़ते प्रतिरोध का संकेत था।
  • गुलाबी इल्ली कीट संक्रमण का पहला बड़ा प्रकोप वर्ष 2015 में गुजरात में दर्ज किया गया था। इसके तुरंत बाद वर्ष 2017-18 के दौरान महाराष्ट्र और दक्षिणी राज्यों में व्यापक संक्रमण फैल गया।
  • वर्ष 2018-19 तक, यह कीट हरियाणा में बीटी कपास की नई किस्म बोलगार्ड II के प्रति भी प्रतिरोधी हो गया था।

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