संदर्भ:

हाल ही में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, मौजूदा कृषि भूमि पर केवल नवीकरणीय जैव ऊर्जा उत्पादन के लिए उगाई जानेवाली कम लागत वाली और कम रखरखाव वाली फसलों को लगाने से जैव विविधता की हानि को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

अध्ययन के मुख्य अंश

  • युक्तिपूर्ण भूमि-उपयोग नियोजन का महत्व: जून 2024 में जर्नल ऑफ एप्लाइड इकोलॉजी में प्रकाशित यह नया शोध जैव ऊर्जा उत्पादन, जलवायु परिवर्तन शमन और जैव विविधता पुनःस्थापन से संबंधित लक्ष्यों को प्राप्त करने में युक्तिपूर्ण भूमि उपयोग योजना की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।
  • खराब कृषि भूमि पर ऊर्जा फसलों का लाभ: ऊर्जा फसलों के रोपण से प्राकृतिक आवासों को परिवर्तित करने की तुलना में जैव विविधता की हानि को कम किया जा सकता है और प्राकृतिक पारिस्थितिकी प्रणालियों पर अतिक्रमण करने के बजाय मौजूदा कृषि क्षेत्रों के उपयोग को प्राथमिकता दी जा सकती है।
  • जैव विविधता पर प्रभाव: ऊर्जा फसलों की रोपाई, विशेष रूप से विविध पौधों के मिश्रण वाली तथा मौजूदा कृषि की प्रधानता वाले क्षेत्रों में, कभी-कभी वर्तमान कृषि पद्धतियों की तुलना में जैव विविधता के लिए अधिक लाभदायक हो सकती है।
    हालाँकि, उच्च प्राकृतिक वनस्पति आवरण वाले क्षेत्रों, विशेषकर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में ऊर्जा फसलें लगाने से जैव विविधता में महत्वपूर्ण कमी आ सकती है।
  • प्राकृतिक आवास परिवर्तन के साथ तुलना: जबकि प्राकृतिक वनस्पति को बहाल करना जैव विविधता संरक्षण के लिए सबसे प्रभावी तरीका है, मौजूदा कृषि भूमि पर युक्तिसंगत रूप से ऊर्जा फसलों का रोपण प्राकृतिक आवासों को परिवर्तित करने की तुलना में कम हानिकारक विकल्प प्रस्तुत करता है।
  • जैव विविधता अक्षुण्णता सूचकांक: इस अध्ययन में देशी स्थलीय प्रजातियों पर ऊर्जा फसल की खेती के प्रभाव का आंकलन करने के लिए जैव विविधता अक्षुण्णता सूचकांक (Biodiversity Intactness Index-BII) का उपयोग किया गया है।
    इसमें उन क्षेत्रों की पहचान की गई है जहां ऊर्जा फसलों के रोपण से जैव विविधता पर सबसे कम प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जैसे- मध्य यूरोप तथा अमेरिका और चीन के पूर्वी तट।
    यह भी पाया गया कि पश्चिम अफ्रीका में मौजूदा कृषि भूमि के स्थान पर वृक्षारोपण करने से जैव विविधता अक्षुण्णता सूचकांक के स्तर में कुछ छोटे लाभ हो सकते हैं।
  • ऊर्जा फसल रोपण के लिए इष्टतम स्थान: इष्टतम स्थानों पर कृषि भूमि में ऊर्जा फसलों के उगाने से, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप जैसे क्षेत्रों में, जैव विविधता पर नकारात्मक प्रभाव को कम किया जा सकता है।
    यह दृष्टिकोण अकशेरुकी और पक्षियों सहित विभिन्न प्रजातियों के समूहों के लिए अतिरिक्त आवास उपलब्ध कराकर जैव विविधता अक्षुण्णता सूचकांक में तटस्थ या थोड़ा सकारात्मक परिवर्तन भी ला सकता है।
  • संरक्षण परिप्रेक्ष्य: शोध से पता चलता है कि, जहां कृषि भूमि को प्राकृतिक वनस्पति के रूप में पुनःस्थापन करने को प्राथमिकता देना जैव विविधता के लिए आदर्श है, वहीं मौजूदा खेतों पर ऊर्जा फसलें लगाना, प्राकृतिक आवासों के साथ समझौता किए बिना भविष्य की ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए एक व्यावहारिक दृष्टिकोण है।
  • विचारशील निर्णय लेने का आह्वान: चूंकि ऊर्जा फसल की खेती का विस्तार वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों का समर्थन करना जारी रखता है, इसलिए उनके स्थान और क्षरित भूमि के पुनःस्थापन के निर्णय में पर्यावरणीय और सामाजिक विचारों के साथ-साथ पारिस्थितिकी प्रभावों पर भी सावधानीपूर्वक विचार किया जाना चाहिए।

ऊर्जा फसलों  

  • ऊर्जा फसलों की खेती विशेष रूप से बिजली, गर्मी या तरल ईंधन जैसे इथेनॉल (जिसका उपयोग कृषि मशीनरी में किया जाता है) के रूप में फसलों के प्रत्यक्ष दहन या गैसीकरण के माध्यम से ऊर्जा का उत्पादन करने के लिए की जाती है।

ऊर्जा फसलों की खेती विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन करने और पारंपरिक ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता कम करने के लिए की जाती है।

  • इनमें मक्का और ज्वार जैसी वार्षिक फसलें शामिल हैं, जिन्हें बायोगैस और बायोचार के लिए एक वर्ष के भीतर काटा जाता है।
  • मिस्कैन्थस और स्विचग्रास जैसी बारहमासी फसलें कई वर्षों में उगाई जाती हैं, जो कार्बन भंडारण और मिट्टी संरक्षण जैसे लाभ प्रदान करती हैं।
  • चिनार और नीलगिरी (यूकेलिप्टस) जैसी जंगली फसलों का उपयोग लकड़ी और ऊर्जा के लिए किया जाता है, जिन्हें ताप-अपघटन और दहन के माध्यम से जैव ईंधन में संसाधित किया जाता है।
  • ये फसलें बायोमास-आधारित नवीकरणीय ऊर्जा उत्पन्न करने तथा कार्बन उत्सर्जन और मिट्टी के कटाव जैसी पर्यावरणीय चिंताओं को दूर करने में 

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