संदर्भ:
हाल ही में, ओडिशा ने मौजूदा ताड़ के पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ वज्रपात के कारण होने वाली नुकसान को कम करने के लिए ताड़ के पेड़ लगाने की योजना बनाई है।
इस पहल के बारे में
- ओडिशा सरकार के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को निजी भूमि पर लगे ताड़ के पेड़ को काटने से पहले वन विभाग से अनुमति लेनी होगी।
इस निर्देश की अवहेलना करने वालों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जाएगी। - सरकार ने अधिकारियों को वज्रपात से संबंधित खतरों को कम करने के लिए आरक्षित वनों और अन्य संवेदनशील जिलों में व्यापक पैमाने पर ताड़ के पेड़ लगाने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने का निर्देश दिया है।
- इस योजना के अनुसार, सरकार का लक्ष्य वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान पूरे राज्य में लगभग 1.9 मिलियन ताड़ के पेड़ लगाने का है।
ताड़ के पेड़ के बारे में
- ताड़ के पेड़, जिनमें (सुपारी) और (नारियल ताड़) शामिल हैं, उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की महत्वपूर्ण वृक्ष प्रजातियों में से एक हैं, जिकी विशेषता एकल, बिना शाखा वाला तना है, जिसके ऊपर बड़े, पंखे के आकार या पंख के आकार के पत्तों का मुकुट होता है। वे गर्म जलवायु में पनपते हैं और दक्षिण पूर्व एशिया, अफ्रीका, कैरिबियन और अमेरिका के कुछ हिस्सों जैसे क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
सामान्य प्रकार:
- सुपारी (एरेका कैटेचू): सुपारी के पेड़ 30 मीटर तक लंबे होते हैं, यह चबाने में इस्तेमाल होने वाले औषधीय नट्स के लिए जाना जाता हैं।
- नारियल के पेड़ (कोकोस न्यूसिफेरा): यह 20 से 30 मीटर तक लंबे के होते हैं, जिससे कई प्रकार से काम में उपयोग होने वाले उत्पाद अर्थात खाने योग्य गुठली, तेल और रस्सियों के लिए रेशे, प्रदान करते हैं।
- खजूर (फीनिक्स डेक्टीलिफेरा): इसको खाने योग्य मीठे फल, खजूर के लिए उगाया जाता है।
- ऑयल पाम (एलाइस गुनीनेसिस): इसे मुख्य रूप से ताड़ के तेल के लिए उगाया जाता है, जिसका उपयोग खाद्य उत्पादों, सौंदर्य प्रसाधनों और जैव ईंधन में किया जाता है।
- रॉयल पाम (रॉयस्टोनिया): अक्सर, इसका उपयोग इसके लंबे, सीधे तने और सुंदर पत्तों के लिए भूनिर्माण में उपयोग हेतु किया जाता है।
इससे पूर्व में ओडिशा सरकार द्वारा उठाए गए कदम
- प्रारंभ में, राज्य में ताड़ के पेड़ों को काटने पर प्रतिबंध को उड़ीसा इमारती लकड़ी एवं अन्य वन उपज अभिवहन नियमावली, (Odisha Timber and Other Forest Produce Transit Rule) 1980 के तहत लगाया गया था।
- हालाँकि, बाद में आम जनता की माँग के कारण इसे प्रतिबंध हटा लिया गया, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में ताड़ के पेड़ लगभग विलुप्त हो गए है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- ओडिशा में प्रति वर्ष वज्रपात के कारण औसतन 300 लोगों की मृत्यु होती हैं। राज्य सरकार ने विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं के कारण कुल 16,372 मौतें दर्ज कीं।
- भारत में प्रति वर्ष वज्रपात के कारण लगभग 2,500 लोगों की मृत्यु होती है। ओडिशा भारत में प्री-मानसून और मानसून के दौरान वज्रपात से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में से एक है।
- वर्ष 2015 में, ओडिशा में वज्रपात को राज्य-विशिष्ट आपदा घोषित किया गया था।
इस मुद्दे पर विशेषज्ञों की राय
- ऐसा माना जाता है कि ताड़ के पेड़ वज्रपात के दौरान प्राकृतिक संवाहक के रूप में कार्य करते हैं, जिसके बारे में कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इससे वज्रपात के कारण होने वाली मृत्यु दर में कम आ सकती है।
- हालाँकि, अन्य विशेषज्ञ इस रणनीति की प्रभावशीलता पर सवाल उठाते हैं, तथा इस बात पर भी संदेह व्यक्त करते है कि क्या ताड़ का पेड़ वज्रपात की घटना का प्रभावी ढंग से निदान कर सकता हैं।
- बांग्लादेश में इसी प्रकार के प्रयासों से वज्रपात से होने वाली मौतों में कोई खास कमी नहीं आई है।
- कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि आमतौर पर ऊँचे पेड़ वज्रपात को अवशोषित कर सकते हैं। वे वज्रपात से संबंधित मृत्यु के जोखिम को कम करने के लिए न केवल ताड़ के पेड़ों बल्कि सभी ऊँचे पेड़ों की सुरक्षा की वकालत करते हैं।