संदर्भ:
वैश्विक क्रेडिट रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने भारत की क्रेडिट रेटिंग को ‘स्थिर’ से बढ़ाकर ‘सकारात्मक’ कर दिया है, जो 14 वर्षों में हुआ पहला परिवर्तन है।
मुख्य बिंदु:
एसएंडपी ग्लोबल (S&P Global) ने जताई सॉवरेन रेटिंग के अपग्रेड होने की उम्मीद
- भारत की सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग को ‘BBB-/A-3’ रेटिंग – जो इस इसका सबसे निम्नतम स्तर है – का निर्णय भारत के मजबूत आर्थिक अवसंरचना, मजबूत विकास गति और सरकारी व्यय से प्रभावित थी।
- इसमें इस बात को रेखांकित किया गया है कि सुव्यवस्थित राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों, सरकार के ऋण और ब्याज के बोझ को कम करने तथा आर्थिक लचीलेपन को मजबूत करने से आगामी वर्षों में रेटिंग में और सुधार हो सकती है।
रेटिंग में सुधार (अपग्रेड) करने के कारण:
- एसएंडपी ग्लोबल ने सकारात्मक दृष्टिकोण के लिए कई कारकों का हवाला दिया, जिनमें नीतिगत स्थिरता, समुचित आर्थिक सुधार और उच्च अवसंरचना निवेश शामिल हैं।
- एजेंसी का मानना है कि ये कारक दीर्घकालिक संवृद्धि की संभावनाओं को बनाए रखेंगे।
सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग का प्रभाव:
- सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग सरकार की ऋण चुकाने की क्षमता को प्रदर्शित करती है।
- उच्च रेटिंग का अर्थ पुनर्भुगतान क्षमताओं में अधिक विश्वास से है, जिसके परिणामस्वरूप अंतरराष्ट्रीय बॉण्ड बाजार में ऋण लेने की लागत कम हो जाती है।
- अच्छी क्रेडिट रेटिंग वित्तीय जिम्मेदारी और स्थिरता का संकेत है। यह किसी देश मजबूत और अधिक समृद्ध अर्थव्यवस्था में योगदान देने वाले उन सभी कारक यानी, अधिक सस्ते दर पर ऋण मिलने, अधिक पूँजी तक पहुँचने और विदेशी निवेश को आकर्षित करने, की अनुमति देते है।
क्रेडिट रेटिंग क्या है?
- क्रेडिट रेटिंग किसी उधारकर्ता की ऋण-पात्रता का मापक है, चाहे वह कोई व्यक्ति हो, कंपनी हो या देश हो।
- सॉवरेन क्रेडिट रेटिंग एक प्रकार की क्रेडिट रेटिंग है, जो किसी राष्ट्र की समग्र आर्थिक स्थिति और वित्तीय स्थिरता का आकलन करती है।
- कुछ प्रमुख ‘वैश्विक प्रमुख क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों’ में स्टैंडर्ड एंड पूअर्स, मूडीज, और फिच रेटिंग्स, आदि शामिल है।
प्रमुख एजेंसियों की क्रेडिट ग्रेडिंग प्रणाली:
रेटिंग मानदंड
- रेटिंग एजेंसियाँ जिन विभिन्न कारकों पर विचार करती हैं, जिनमें विकास दर, मुद्रास्फीति, सरकारी ऋण, सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में अल्पकालिक विदेशी ऋण और राजनीतिक स्थिरता शामिल हैं।
सॉवरेन रेटिंग से संबंधित समस्याएँ
- अपारदर्शी कार्यप्रणाली: ये विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के चूक (डिफ़ॉल्ट) जोखिम को सटीक रूप से प्रतिबिंबित करने में विफल रहती है।
- विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को मनमाने संकेतकों, संभावित पूर्वाग्रहों, विशेषज्ञों के चयन में पारदर्शिता की कमी, अस्पष्ट मानदंड भारांक और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के पक्ष में पूर्वधारणित आकलन के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
भारत में क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ
- भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी): यह भारत का प्राथमिक प्राधिकरण है, जो भारत में क्रेडिट रेटिंग कंपनियों और उनकी विभिन्न कार्यात्मकताओं को स्वीकृत या विनियमित करता है।
कुछ मुख्य क्रेडिट रेटिंग एजेंसियाँ हैं: –
- क्रेडिट रेटिंग इंफॉर्मेशन सर्विसेज ऑफ इंडिया लिमिटेड (CRISIL)।
- क्रेडिट रेटिंग इंफॉर्मेशन सर्विसेज ऑफ इंडिया लिमिटेड (ICRA) लिमिटेड।
- केयर, ब्रिकवर्क रेटिंग, इंडिया रेटिंग एंड रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड, आदि।