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सामान्य अध्ययन-3: बुनियादी ढाँचा: ऊर्जा, बंदरगाह, सड़क, विमानपत्तन, रेलवे इत्यादि|

संदर्भ: हाल ही में, पर्यावरण मंत्रालय के तहत एक पैनल ने जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ में चिनाब नदी पर 260 मेगावाट की दुलहस्ती चरण-II  जलविद्युत परियोजना को मंजूरी दी।

अन्य संबंधित जानकारी

  • केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के तहत जलविद्युत परियोजनाओं पर विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति ने अपनी 45वीं बैठक के दौरान 260 मेगावाट (2*130 मेगावाट) की दुलहस्ती चरण-II जलविद्युत परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी दे दी है।
  • इस परियोजना का विकास NHPC लिमिटेड द्वारा लगभग ₹3,277 करोड़ की अनुमानित लागत से किया जाएगा।
  • यह मंजूरी मिलने के बाद सरकार परियोजना के लिए निर्माण निविदाएं आमंत्रित करने की प्रक्रिया शुरू कर सकेगी।
  • परियोजना के मानकों को मूल रूप से चिनाब बेसिन से संबंधित सिंधु जल संधि, 1960 के प्रावधानों के अनुरूप तैयार किया गया था।
  • केंद्र सरकार सिंधु बेसिन में कई जलविद्युत परियोजनाओं में तेज़ी ला रही है, जिनमें रातले, सावलकोट, बुर्सर, पकाल डुल, क्वार, किरू और किरथाई परियोजनाएं शामिल हैं।

दुलहस्ती चरण-II जलविद्युत परियोजना का सिंहावलोकन

  • दुलहस्ती चरण-II एक रन-ऑफ-द-रिवर (नदी के प्रवाह पर आधारित) जलविद्युत परियोजना है, जिसकी स्थापित क्षमता 260 मेगावाट (2*130  मेगावाट) है।
  • यह मौजूदा 390 मेगावाट की दुलहस्ती चरण-I जलविद्युत परियोजना का ही विस्तार है।
  • दुलहस्ती चरण-I को 2007 में कमीशन किया गया था और यह NHPC लिमिटेड के तहत सफलतापूर्वक संचालित हो रहा है।
  • चरण-II में चरण-I के मौजूदा बांध, जलाशय और ‘पावर इनटेक’ (बिजली लेने हेतु निर्मित) बुनियादी ढांचे का उपयोग किया जाएगा।
  • चरण-II के लिए जल भंडारण करने हेतु लगभग 3.7 किलोमीटर लंबी एक अलग सुरंग के माध्यम से पानी को मोड़ा जाएगा।
  • इस परियोजना के तहत एक सर्ज शाफ्ट, प्रेशर शाफ्ट और एक भूमिगत बिजली घर का निर्माण किया जाएगा।
  • इस परियोजना के लिए पानी मरुसुदर नदी से ‘पकाल दुल’ परियोजना लिंकेज के माध्यम से प्राप्त किया जाएगा।
  • चिनाब बेसिन में पहले से ही दुलहस्ती-I, बगलिहार और सलाल जैसी परियोजनाएं संचालित हैं।
  • चिनाब नदी पर अतिरिक्त परियोजनाएं निर्माणाधीन हैं, जो इस बेसिन को एक प्रमुख जलविद्युत केंद्र बनाती हैं।
  • दुलहस्ती चरण-II से क्षेत्रीय बिजली आपूर्ति बढ़ने और सिंधु बेसिन में भारत के रणनीतिक एवं ऊर्जा सुरक्षा उद्देश्यों को समर्थन मिलने की उम्मीद है।

परियोजना का महत्त्व

  • जल संप्रभुता को स्वीकृति: संधि के स्थगन की स्थिति के बीच निर्माण कार्यों को गति देकर भारत अपनी हिमालयी नदियों के इष्टतम उपयोग की रणनीति की ओर बढ़ने का स्पष्ट संकेत दे रहा है। यह क्षेत्रीय सुरक्षा और कूटनीति में जल अधिकारों को रणनीतिक बढ़त के रूप में इस्तेमाल करने हेतु सोच-समझकर उठाया गया कदम है।
  • बुनियादी ढांचे का इष्टतम उपयोग: यह परियोजना अत्यधिक लागत-प्रभावी है क्योंकि इसमें दुलहस्ती चरण-I के मौजूदा बांध और जलाशय का उपयोग किया जाएगा। यह “ब्राउनफील्ड” दृष्टिकोण अपेक्षाकृत कम पर्यावरणीय प्रभाव के साथ बिजली उत्पादन क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि (कुल 390 मेगावाट से 650 मेगावाट तक) करेगा।
  • जम्मू-कश्मीर के लिए ऊर्जा सुरक्षा: यह परियोजना इस क्षेत्र को एक जलविद्युत केंद्र बनाने की भारत की योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका उद्देश्य बिजली की चिरकालिक समस्या को दूर करना और नवीकरणीय ऊर्जा की विश्वसनीय आपूर्ति के माध्यम से स्थानीय औद्योगिक विकास को बढ़ावा देना है।
  • रणनीतिक दृष्टिकोण से त्वरित-प्रतिक्रिया: 1,856 मेगावाट की सावलकोट परियोजना के तत्काल बाद विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति की यह मंजूरी ‘जमीनी वास्तविकताओं’ से अवगत कराने के प्रयास का हिस्सा है। चिनाब नदी पर यह सुदृढ़ भौतिक उपस्थिति भविष्य की संधि वार्ताओं में भारत की स्थिति को इतना मजबूत कर देगी कि इसमें बदलाव करना लगभग असंभव होगा।

Source:
Thehindu
Indianexpress

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