संबंधित पाठ्यक्रम
सामान्य अध्ययन-2: सरकारी नीतियाँ और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप, उनके अभिकल्पन और कार्यान्वयन से संबंधित विषय।
स्वास्थ्य,शिक्षा, मानव संसाधनों से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
संदर्भ: गृह मंत्रालय (MHA) ने ‘गरीब कैदियों को सहायता‘ योजना के दिशा-निर्देशों की गहन समीक्षा की और यह पाया कि कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने इसके क्रियान्वयन में ‘अपेक्षा से कम’रुचि दिखाई है। मंत्रालय का मानना है कि राज्यों के इस शिथिल रवैये के कारण योजना के मूल उद्देश्यों की प्राप्ति में गंभीर बाधा उत्पन्न हो रही है।
अन्य संबंधित जानकारी
- मंत्रालय ने संस्थागत तंत्र को सशक्त बनाने और योजना का त्वरित एवं प्रभावी निष्पादन सुनिश्चित करने के उद्देश्य से संशोधित दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
- गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से इस योजना को इसके मूल भाव के साथ लागू करने का आग्रह करते हुए कहा कि यह पहल न केवल गरीब कैदियों की कठिनाइयों को कम करेगी, बल्कि जेलों में भीड़भाड़ की समस्या को सुलझाने में भी सहायक सिद्ध होगी।
संशोधित ढांचे की मुख्य विशेषताएं:
- आवंटित राशि: केंद्र सरकार ने गरीब कैदियों की रिहाई के लिए ₹20 करोड़ की राशि आवंटित की है।

- जांच प्राधिकरण: जिला स्तर पर एक ‘अधिकार प्राप्त समिति’ का गठन किया जाएगा, जिसे पात्र मामलों की गहन जांच करने और उन्हें मंजूरी देने का कार्य सौंपा जाएगा।
- इसमें जिला कलेक्टर द्वारा नामित एक प्रतिनिधि और जिला न्यायाधीश द्वारा नामित संबंधित जेल के प्रभारी न्यायाधीश होंगे।
- प्रक्रिया: यदि कोई दोषसिद्ध कैदी आर्थिक तंगी के कारण केवल जुर्माना न भर पाने कीके कारण रिहा नहीं हो पा रहा है, तो:
- जेल अधीक्षक को एक सप्ताह के भीतर जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण (DLSA) के सचिव को ऐसे पात्र कैदियों के बारे में सूचित करना होगा।
- कैदी की आर्थिक स्थिति जानने के बाद, DLSA सचिव अधिकार प्राप्त समिति से मामले की सिफारिश करेंगे। समिति मामले की समीक्षा के उपरांत ₹25,000 तक की वित्तीय सहायता को मंजूरी दे सकती है। यह राशि सीधे संबंधित न्यायालय में जमा की जाएगी ताकि कैदी की रिहाई का मार्ग प्रशस्त हो सके।
- यदि जमानत की राशि ₹50,000 से अधिक है, तो अधिकार प्राप्त समिति अपने विवेक का उपयोग करते हुए उच्च राशि के भुगतान की अनुमति दे सकती है, बशर्ते वह राशि ₹1 लाख से अधिक न हो।
- यही प्रावधान पात्र विचाराधीन कैदियों पर भी समान रूप से लागू होंगे।
- राज्य स्तरीय निगरानी समिति: ऐसे मामलों में जहाँ जमानत या प्रतिभूति की राशि ₹1 लाख से अधिक है, या जहाँ अधिकार संपन्न समिति ₹50,000 से ₹1 लाख के बीच की राशि के लिए अपनी विवेकाधीन शक्ति का उपयोग नहीं करती है, तो ऐसे मामलों को भी विचार और अनुमोदन के लिए राज्य स्तरीय निगरानी समिति को भेजा जाएगा।
अपवाद:
- इस योजना के लिए ऐसे कैदी पात्र नहीं हैं जो भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, धन शोधन निवारण अधिनियम, स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम और भविष्य में अधिसूचित किए जाने वाले किसी भी अन्य विशेष कानून के तहत आरोपित व्यक्ति भी इसके पात्र नहीं होंगे।
- उन व्यक्तियों को इस योजना के लाभ से वंचित रखा गया है जो जघन्य अपराधों के आरोपी हैं। जघन्य अपराधों में आतंकवादी गतिविधियाँ, राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रभावित करने वाले अपराध, दहेज के कारण मृत्यु, बलात्कार, मानव तस्करी और पॉक्सो (POCSO) अधिनियम के तहत आने वाले अपराध शामिल हैं।
महत्त्व:
- न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करना: योजना यह सुनिश्चित करके न्याय वितरण प्रणाली में निष्पक्षता और दक्षता को बढ़ावा देती है कि आर्थिक तंगी किसी भी स्थिति में अन्यायपूर्ण हिरासत का कारण न बने।
- जेलों में भीड़भाड़ कम करना: यह विचाराधीन कैदियों को जमानत या शीघ्र रिहाई दिलाने में मदद करती है, जिससे जेलों की क्षमता से अधिक कैदियों के बोझ और प्रशासनिक दबाव को कम किया जा सके।
- संवैधानिक नैतिकता को बनाए रखना: त्वरित सुनवाई को बढ़ावा देना, अनुच्छेद 21 का संरक्षण (प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार) अनावश्यक देरी में कमी लाना।
