संबंधित पाठ्यक्रम
सामान्य अध्ययन-2: स्वास्थ्य, शिक्षा,मानव संसाधन से संबंधित सामाजिक क्षेत्र/सेवाओं के विकास और प्रबंधन से संबंधित विषय।
केंद्र और राज्यों के कार्य एवं दायित्व, संघीय ढाँचे से संबंधित विषय और चुनौतियाँ ।
संदर्भ: हाल ही में, शिक्षा मंत्री ने कई उच्च शिक्षा नियामकों के स्थान पर एकल एकीकृत शीर्ष निकाय की स्थापना करने के उद्देश्य से विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक, 2025 पेश किया।
अन्य संबंधित जानकारी
- इस अधिनियम के लक्ष्य और उद्देश्य उच्च शिक्षा के लिए एक प्रभावी और उत्तरदायी नियामक ढाँचा स्थापित करना है ताकि संस्थानों में सत्यनिष्ठा (ईमानदारी) और उत्कृष्टता (गुणवत्ता) को बढ़ावा दिया जा सके तथा उन्हें लोक-हित के प्रति अधिक जागरूक बनाया जा सके।
- एकीकृत नियामक का विचार कई वर्षों पुराना है, और इसके लिए भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) विधेयक का मसौदा पहली बार 2018 में प्रस्तुत किया गया था।
विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान विधेयक के प्रावधान
- एक बार विधेयक लागू होने के बाद, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) अधिनियम, 1956, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) अधिनियम, 1987 और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (NCTE) अधिनियम, 1993 को शासित करने वाले कानून निरस्त कर दिए जाएंगे और मौजूदा निकायों को भंग कर दिया जाएगा। उनके नियम और मानक तब तक लागू रहेंगे जब तक कि आयोग द्वारा जारी किए गए नए विनियमों द्वारा उन्हें प्रतिस्थापित नहीं किया जाता।
- अपवाद: चिकित्सा, कानूनी, औषधीय (फार्मास्युटिकल), दंत चिकित्सा और पशु चिकित्सा कार्यक्रम और संस्थान नियामक दायरे से बाहर रहेंगे।

- विकसित भारत शिक्षा अधिष्ठान (आयोग) में एक अध्यक्ष और अन्य सदस्य होंगे, जिनकी संख्या बारह से अधिक नहीं होगी और इसके तीन मुख्य अंग होंगे:
- विनियामक परिषद (विकसित भारत शिक्षा विनियमन परिषद)
- यह अनुपालन और पारदर्शिता की देखरेख करेगा।
- यह वित्तीय या प्रशासनिक अनियमितताओं के विरुद्ध कार्रवाई करेगा, छात्रों की शिकायतों का निवारण करेगा और शिक्षा के व्यावसायीकरण को रोकेगा।
- यह भारत में कार्यरत विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए शर्तें निर्धारित करेगा।
- नियामक परिषद एक व्यापक सार्वजनिक डिजिटल पोर्टल बनाए रखेगी, जहाँ उच्च शिक्षा संस्थानों (HEIs) के लिए वित्तीय सत्यनिष्ठा, शासन प्रथाओं, वित्त, ऑडिट, प्रक्रियाओं, बुनियादी ढाँचे, संकाय और कर्मचारियों, शैक्षणिक कार्यक्रमों और शैक्षिक परिणामों से संबंधित जानकारी का प्रकटीकरण करना आवश्यक होगा।
- प्रत्यायन परिषद (विकसित भारत शिक्षा गुणवत्ता परिषद)
- यह एकसमान गुणवत्ता ढाँचे के माध्यम से कॉलेजों और विश्वविद्यालयों का आकलन करेगी और उन्हें रेटिंग देगी।
- यह ऑनलाइन और प्रौद्योगिकी-संचालित उपकरणों का उपयोग करेगी, प्रत्यायन एजेंसियों को अनुमोदित और उनका पंजीकरण रद्द करेगी, उनके प्रदर्शन की निगरानी करेगा, प्रत्यायन परिणामों को सार्वजनिक करेगी और उल्लंघनों के लिए दंड की सिफारिश करेगा।
- यह सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करेगी कि सभी उच्च शिक्षा संस्थान मान्यता प्राप्त हों।
- मानक परिषद (विकसित भारत शिक्षा मानक परिषद)
- यह शैक्षणिक गुणवत्ता बेंचमार्क को परिभाषित करेगी।
- यह अधिगम परिणाम निर्धारित करेगी, व्यावसायिक शिक्षा को उच्च शिक्षा के साथ एकीकृत करने के लिए दिशानिर्देश बनाएगी और प्रमाणपत्रों और डिप्लोमा के लिए स्तर और नाम तय करेगी।
- यह पाठ्यक्रम के अभिकल्पन (डिज़ाइन) और शिक्षाशास्त्र का मार्गदर्शन करेगी, भारतीय ज्ञान प्रणालियों और भाषाओं का संवर्धन करेगी और संकाय और कर्मचारियों के लिए न्यूनतम योग्यता की सिफारिश करेगी।
- आयोग की संरचना: उल्लिखित बारह सदस्यों में निम्नलिखित शामिल होंगे —
- विनियामक परिषद का अध्यक्ष—पदेन सदस्य
- प्रत्यायन परिषद का अध्यक्ष— पदेन सदस्य
- मानक परिषद का अध्यक्ष— पदेन सदस्य
- शिक्षा मंत्रालय, उच्च शिक्षा विभाग में भारत सरकार के सचिव— पदेन सदस्य
- प्रोफेसर पद के स्तर के दो प्रख्यात शिक्षाविद्, जो राज्य के उच्च शिक्षण संस्थानों का प्रतिनिधित्व करेंगे—सदस्य
- पाँच प्रख्यात विशेषज्ञ — सदस्य
- सदस्य सचिव
- सभी नियुक्तियां केंद्र सरकार द्वारा की जाएंगी।
- अर्थदंड का प्रावधान: यह विधेयक विनियामक परिषद को ‘श्रेणीबद्ध दंड’ (Graded Penalties) लगाने की शक्ति प्रदान करता है:
- प्रथम उल्लंघन पर सुधारात्मक कार्रवाई की माँग करते हुए एक नोटिस जारी किया जाएगा। इसका पालन करने में विफल रहने पर न्यूनतम ₹10 लाख (दस लाख रुपये) का जुर्माना लगाया जा सकता है।
- दूसरी बार उल्लंघन के लिए, ₹30 लाख तक का जुर्माना लगाया जा सकता है, साथ ही जिम्मेदार अधिकारियों को हटाना, स्वायत्तता में कटौती या अनुदान बंद करने जैसे उपाय भी किए जा सकते हैं।
- बार-बार उल्लंघन करने पर ₹75 लाख या उससे अधिक का जुर्माना लगाया जा सकता है, और इससे डिग्री प्रदान करने की शक्तियों का निलंबन, मान्यता/संबद्धता को रद्द करना या संस्थान को बंद करना जैसे उपायों का सामना करना पड़ सकता है।
- बिना सरकारी मंजूरी के किसी कॉलेज या विश्वविद्यालय की स्थापना करने पर कम से कम ₹2 करोड़ का जुर्माना लग सकता है या फिर उसे तुरंत बंद करने का आदेश दिया जा सकता है।
- संक्रमणकालीन अवधि: विधेयक के खंड 54 (Clause 54) में यह उल्लिखित है कि जब तक आयोग और उसकी परिषदें पूरी तरह से परिचालन में नहीं आ जाती हैं, तब तक केंद्र सरकार अंतरिम नेतृत्व की नियुक्त करेगी। ये अस्थायी व्यवस्थाएँ दो वर्ष तक या नए निकायों के गठन तक, जो भी पहले हो, जारी रहेंगी।
- अतिरंजित शक्तियाँ: यदि केंद्र सरकार को ऐसा लगता है कि आयोग या कोई परिषद ठीक से कार्य नहीं कर रही है या बार-बार निर्देशों की अनदेखी कर रही है, तो वह राष्ट्रपति की अनुशंसा से, उस निकाय को अधिकतम छह महीने के लिए निलंबित कर सकती है और उसकी जगह किसी अन्य निकाय की नियुक्त कर सकती है।
- वित्तीय स्वायत्ता: वित्तपोषण और वित्तीय स्वायत्तता स्वयं नियामक के बजाय प्रशासनिक मंत्रालय के पास ही रहेगी।
विधेयक का महत्त्व
- NEP 2020 के विजन को लागू करने का प्रयास: यह पहल राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 की उस सिफारिश को लागू करने का एक सशक्त प्रयास है, जिसका उद्देश्य भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र के शासन और निरीक्षण को एक एकल नियामक प्राधिकरण के माध्यम से सुव्यवस्थित करना है।
- “हल्का परन्तु कठोर” विनियामक ढाँचा: विश्वविद्यालयों को अपने आंतरिक प्रबंधन में अधिक स्वायत्तता दी जाएगी, जिसकी गुणवत्ता एक स्पष्ट और पारदर्शी प्रत्यायन प्रणाली द्वारा सुनिश्चित की जाएगी।
- भारतीय ज्ञान प्रणालियों का एकीकरण: यह उच्च शिक्षा में “भारतीय ज्ञान, भाषाओं और कलाओं” को एकीकृत करने के लिए एक रोडमैप विकसित करने पर केंद्रित है, जो ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
- अर्थदंड: विधेयक निकाय को उल्लंघनों के लिए अर्थदंड लगाने की शक्ति देता है और यह अर्थदंड ₹10 लाख से लेकर ₹2 करोड़ तक हो सकता है।
