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सामान्य अध्ययन-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन।

संदर्भ: खाद्य एवं कृषि के लिए विश्व के भूमि और जल संसाधनों की स्थिति(SOLAW) रिपोर्ट के तीसरे संस्करण का विषय, “अधिक और बेहतर उत्पादन की क्षमता” टिकाऊ कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए भूमि, मिट्टी और जल संसाधनों की छिपी हुई और अप्रयुक्त क्षमता पर केंद्रित है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष

  • प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन में वर्तमान चुनौतियाँ:
  • बढ़ती वैश्विक जनसंख्या की मांगों को पूरा करने के लिए, कृषि क्षेत्र को 2012 की तुलना में वर्ष 2050 तक 50% अधिक खाद्य, चारा और फाइबर का उत्पादन करना होगा।
  • वैश्विक भूमि क्षेत्र का 10% से अधिक (जिसमें से अधिकांश कृषि भूमि है), अर्थात लगभग 1.6 बिलियन हेक्टेयर का क्षरण हो चुका है।
  • 60% से अधिक भूमि क्षरण कृषि भूमि को प्रभावित करता है, जिसमें फसल भूमि और चारागाह दोनों शामिल हैं।
  • 1992 और 2015 के बीच शहरी क्षेत्रों का दोगुने से अधिक विस्तार हुआ है, जो 33 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 71 मिलियन हेक्टेयर तक फैल गया है।
  •  इस शहरी विकास का प्रभाव लगभग 24 मिलियन हेक्टेयर अत्यधिक उपजाऊ फसल भूमि के साथ ही वन भूमि और झाड़ी भूमि (Shrubland) पर भी  हुआ है जिससे उपलब्ध उत्पादक भूमि में कमी आई है।
  • चूँकि 95% खाद्य का उत्पादन भूमि पर होता है, इसलिए भूमि क्षरण, जल की कमी और चरम मौसम के संयुक्त खतरे कृषि-खाद्य प्रणालियों, आजीविका और जैव विविधता के समक्ष गंभीर चुनौतियाँ प्रस्तुत करते हैं।
  • कृषि पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
    • जलवायु परिवर्तन बढ़ते तापमान, वर्षा के पैटर्न में बदलाव, सूखा और बाढ़ के माध्यम से कृषि-खाद्य प्रणालियों के जोखिमों को बढ़ाता है।
    • चरम मौसम की घटनाओं (जैसे सूखा, बाढ़, तूफान, अत्यधिक गर्मी) के कारण कृषि क्षेत्र को प्रतिवर्ष लगभग 123 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान होता है। यह नुकसान वैश्विक कृषि सकल घरेलू उत्पाद (Global Agriculture GDP) का लगभग 5% है और गंभीर रूप से खाद्य उत्पादन को प्रभावित करती है।
  • कृषि पर पर्यावरण का प्रभाव :
    • पृथ्वी की एक-तिहाई भूमि पर कृषि होती है और इसके लिए 72% मीठे जल का उपयोग होता है, जिसके कारण जल संसाधनों का अत्यधिक दोहन होता है।
    • जल संसाधनों के अत्यधिक दोहन से मृदा अपरदन, प्रदूषण और जैवविविधता की हानि हुई है।
    • 64% कृषि भूमि कीटनाशक प्रदूषण का सामना कर रही है, जिससे उसकी कीटों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता और जलवायु प्रभावों का सामना करने की क्षमता क्षीण हो रही है।

प्रभाव

  • कृषि उत्पादन के आँकड़े:
    • 1964 से 2023 तक, कृषि उत्पादन में वृद्धि मुख्य रूप से गहनीकरण के माध्यम से हुई है, न कि भूमि विस्तार के माध्यम से।
    • सिंचित फसल भूमि, वर्षा-सिंचित भूमि की तुलना में 3.2 गुना अधिक उत्पादक होती है।
    • 1964 से वैश्विक उर्वरक उपयोग में चार गुना से अधिक वृद्धि हुई है।
    • मध्य और उत्तरी अमेरिका तथा दक्षिणी यूरोप ने 2001 और 2023 के बीच कृषि योग्य भूमि (Arable Land) में शुद्ध कमी दर्ज की है।
  • जल की कमी और भूमि क्षरण:
    • गैर-टिकाऊ खेती और प्रबंधन पद्धतियों के कारण 996 मिलियन हेक्टेयर (Mha) कृषि भूमि का क्षरण हुआ है जो मानव-जनित भूमि क्षरण के 60% के समतुल्य है।
    • वैश्विक आबादी का लगभग छठा हिस्सा, यानी लगभग 1.2 बिलियन लोग, ऐसे कृषि क्षेत्रों में निवास करते हैं जहाँ गंभीर जल संकट हैं।
  • विस्तार में बाधाएँ
    • 2050 तक फसल भूमि 1.6 बिलियन से बढ़कर 1.9 बिलियन हेक्टेयर हो सकती है, लेकिन यह अभी भी उपलब्ध अत्यधिक उपजाऊ भूमि (Prime Land) की तुलना से काफी कम होगी।
    • फसल भूमि का विस्तार करने से वनों और आर्द्रभूमियों जैसे पारिस्थितिकी तंत्रों के लिए खतरा उत्पन्न होता है, जोकि जैव विविधता और जलवायु के लिए महत्वपूर्ण हैं।
    • एशिया की तुलना में अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में फसल भूमि विस्तार की अधिक संभावना है।
  • गहनीकरण और उपज अंतराल:
  • उपज अंतराल (वर्तमान उपज और संभावित उपज के बीच का अंतर) को कम करने से टिकाऊ तरीके से उत्पादन बढ़ाया जा सकता है।
  • उदाहरण के लिए,  उप-सहारा अफ्रीका में वर्षा-सिंचित फसलों पर केवल 24% संभावित उपज मिलती है।
  • टिकाऊ गहनीकरण में अनुकूलित फसल किस्मों का अपनाना, बेहतर पोषक तत्व और जल प्रबंधन तथा कृषि-पारिस्थितिक पद्धतियाँ शामिल हैं।

आगे की राह

  • प्राकृतिक संसाधनों का समग्र प्रबंधन : टिकाऊ कृषि उत्पादकता और पर्यावरणीय संतुलन प्राप्त करने के लिए भूमि, मिट्टी, जल, वन और मात्स्यिकी का एकीकृत तरीके से प्रबंधन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
  • टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना: कृषि वानिकी, संरक्षण जुताई, जैविक पदार्थों का समावेश, संयुक्त फसल-पशुधन प्रणाली, धान के साथ मछलियाँ उगाना और एकीकृत जलीय कृषि पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य और उत्पादकता को बढ़ाती है।
  • जल और चारागाह प्रणालियों का आधुनिकीकरण करना: मछली-अनुकूल सिंचाई प्रणालियों का क्रियान्वयन, बहुक्रियाशील कृषि तालाबों, सटीक चराई विधियों, और सूखा सहिष्णु चारा प्रजातियों की खेती करना ताकि जल उपयोग को अनुकूलित किया जा सके और चारागाह प्रबंधन में सुधार हो सके।
  • शहरी और शहरी-ग्रामीण सीमांत (पेरी अर्बन) खेती नवाचारों के लिए प्रोत्साहित करना: शहरी क्षेत्रों में खाद्य उत्पादन को टिकाऊ रूप से बढ़ाने के लिए हाइड्रोपोनिक्स, वर्टिकल फार्मिंग (उर्ध्वाधर खेती), और छत पर कृषि (Rooftop Agriculture) जैसी प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना।
  • प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: प्राकृतिक संसाधनों की निगरानी करने और टिकाऊ खेती के फैसलों का प्रभावी तौर पर मार्गदर्शन करने के लिए जलवायु पूर्वानुमान, पूर्व चेतावनी उपकरण, रिमोट सेंसिंग (सुदूर संवेदन), और सूचना प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना।
  • एकीकृत भूमि-उपयोग योजना (ILUP): खाद्य उत्पादन, पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण और प्रतिस्पर्धी मांगों के बीच संतुलन स्थापित करने हेतु यह आवश्यक है।

स्रोत :
DowntoEarth
 
Open Knowledge
 
FAO

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