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सामान्य अध्ययन-3: संरक्षण,पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन।

संदर्भ : हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय फैसले में अरावली पहाड़ियों और पर्वतमाला की वैज्ञानिक परिभाषा को स्वीकार करते हुए दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में इसके पूरे विस्तार में नए खनन पट्टों पर रोक लगा दी है।

निर्णय के बारे में 

  • यह आदेश तब तक प्रभावी रहेगा, जब तक पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF&CC) भारत वनिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (ICFRE) के माध्यम से सतत खनन प्रबंधन योजना (MPSM) को अंतिम रूप नहीं दे देता।
  • सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने अरावली की पहाड़ियों और पर्वतमाला के लिए ऊँचाई-आधारित परिभाषा को स्वीकृति दी।

• अरावली पहाड़ी की परिभाषा: 

  • अरावली जिलों में कोई भी भू-आकृति जिसकी स्थानीय उच्चावच से 100 मीटर या अधिक हो, ऊँचाई अरावली पहाड़ी मानी जाएगी।
  • सबसे निचली समोच्च रेखा से घिरे क्षेत्र के भीतर स्थित वास्तविक या विस्तारित भू-आकृति, इसके सहायक ढलानों व संबद्ध भू-आकृतियों सहित, उसी पहाड़ी का हिस्सा होगी।

• अरावली पर्वतश्रृंखला की परिभाषा

  • दो या अधिक अरावली पहाड़ियाँ जो एक-दूसरे से 500 मीटर की दूरी के भीतर हों, पर्वतमाला का निर्माण करती हैं।
  • दोनों पहाड़ियों की निचली समोच्च रेखाओं के आधार पर एक बफर बनाकर उनके बीच की सभी भू-आकृतियाँ और ढलान पर्वतमाला का हिस्सा मानी जाएँगी।

• नए खनन पट्टों पर प्रतिबंध

  • जब तक सतत खनन प्रबंधन योजना (MPSM) को अंतिम रूप नहीं दिया जाता, तब तक अरावली क्षेत्र में नए खनन पट्टों को जारी करने पर प्रतिबंध रहेगा।
  • मौजूदा खनन गतिविधियाँ जारी रखी जा सकती हैं, बशर्ते कि उन्हें समिति की सिफारिशों और पर्यावरण सुरक्षा उपायों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करना होगा।
  • असाधारण, वैज्ञानिक दृष्टि से न्यायसंगत मामलों को छोड़कर अन्य किसी भी कार्य के लिए कोर और उल्लंघन न किए जाने वाले क्षेत्रों में खनन निषिद्ध है।

निर्णय का महत्त्व

  • यह निर्णय विशेष रूप से अरावली की पहाड़ियों जैसे सुभेद्य पारिस्थितिकी तंत्र के लिए पर्यावरण संरक्षण में न्यायपालिका की भूमिका को रेखांकित करता है।
  • यह निर्णय पर्यावरण संरक्षण और विकास की आवश्यकताओं के बीच संतुलन स्थापित करता है, क्योंकि इससे सख्त और विशेषज्ञ-निर्देशित शर्तों के अधीन ही सतत खनन की अनुमति दी गई है।
  • यह निर्णय अरावली की भूमिका को “हरित अवरोध” (green barrier) के रूप में परिभाषित करता है, क्योंकि यह उपजाऊ मैदानों को रेगिस्तान के विस्तार और धूल भरी आँधियों से बचाती है, और इस प्रकार इसके पारिस्थितिक संरक्षण की आवश्यकता है।

निर्णय की चुनौतियाँ

  • 100 मीटर का नियम अरावली की अधिकांश पहाड़ियों को संरक्षण के दायरे से बाहर कर देता है: भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) के अनुसार, अरावली की 12,081 पहाड़ियों में से केवल 8.7% ही इस मानक को पूरा करती हैं। परिणामतः 90% से अधिक पहाड़ियाँ कानूनी सुरक्षा से बाहर रह जाती हैं, जिससे वे खनन और निर्माण गतिविधियों के प्रति अत्यंत सुभेद्य हो जाती हैं।
  • निम्न ऊँचाई वाली पहाड़ियों की पारिस्थितिक भूमिका को कम आंकना: निम्न ऊँचाई वाली पहाड़ियों का संरक्षण न करने से पारिस्थितिक निरंतरता बाधित होती है। इससे वायु प्रदूषण, भूजल ह्रास, आवासीय क्षति, और मानव-वन्यजीव संघर्ष का जोखिम बढ़ जाता है।
  • दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता पर प्रभाव: अरावली पर्वतमाला धूल के प्राकृतिक अवरोध के रूप में काम करती है। यदि छोटे भाग संरक्षण के बाहर रह जाते हैं, तो दिल्ली- राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में धूल प्रदूषण और धूलभरी आँधियों की समस्या और अधिक गंभीर हो सकती है।

अरावली पर्वतमाला 

  • अरावली विश्व की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, जिसका निर्माण पुराप्राग्जीवी महाकल्प (Paleoproterozoic Era) में हुआ था।
  • यह दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व दिशा में लगभग 670–692 किमी तक फैली है।
  • इसका विस्तार दिल्ली से प्रारंभ होकर हरियाणा एवं राजस्थान होते हुए गुजरात (पालनपुर ) तक जाता है।
  • इसकी चौड़ाई 10 से 120 किमी के बीच और औसत ऊँचाई 300 से 900 मीटर के बीच होती है।
  • इसकी सर्वोच्च चोटी गुरु शिखर (माउंट आबू, राजस्थान) है, जिसकी ऊँचाई 1,722 मीटर है।
  • इस पर्वतमाला का लगभग 80% भाग राजस्थान में स्थित है, शेष हरियाणा, दिल्ली और गुजरात में फैला है।

Sources:
The Hindu
Scobserver

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