संबंधित पाठ्यक्रम:

सामान्य अध्ययन-2: संघ और राज्यों के कार्य और दायित्व, संघीय ढांचे से संबंधित विषय और चुनौतियां, स्थानीय स्तर तक शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण और उसमें आने वाली चुनौतियां।

सामान्य अध्ययन -3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन।

संदर्भ:

पूर्व नौकरशाहों के एक समूह ने 16वें वित्त आयोग के अध्यक्ष से हिमालयी राज्यों को ‘ग्रीन बोनस’ देने का आग्रह किया है। इसके पीछे तर्क यह दिया गया है कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर तथा सिक्किम को लगातार चरम मौसमी घटनाओं से भारी नुकसान होता है।

अन्य संबंधित जानकारी

  • इसका उद्देश्य हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू और कश्मीर तथा सिक्किम में लगातार होने वाली चरम मौसमी घटनाओं (Extreme Weather Events) के कारण होने वाले नुकसान की ओर आयोग का ध्यान आकर्षित करना है।
  • पत्र में कहा गया है कि हिमालयी राज्यों को देश की भलाई, जीवन की गुणवत्ता और कृषि, जलवायु नियंत्रण, जल विद्युत, कार्बन कैप्चर और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में उनके गैर-मौद्रिक परन्तु महत्वपूर्ण योगदान के लिए केंद्र सरकार द्वारा क्षतिपूर्ति दी जानी चाहिए।

ग्रीन बोनस के बारे में 

  • ग्रीन बोनस से तात्पर्य विशेष केंद्रीय वित्तीय सहायता या राज्यों के साथ केंद्रीय निधियों को साझा करने के फार्मूले में भारांश से है, जो वनों के रखरखाव और महत्वपूर्ण पारिस्थितिक सेवाओं के लिए उन्हें दिया जाता है।
  • 12वें वित्त आयोग ने इस प्रक्रिया की शुरुआत की थी, जिसके तहत देश भर में ₹1,000 करोड़ आवंटित किए गए थे, लेकिन वास्तविक संवितरण (जैसे हिमाचल प्रदेश को ₹20 करोड़) उनके पारिस्थितिक योगदान के सापेक्ष बहुत कम रहा है।

महत्त्वपूर्ण प्रस्ताव

  • पारिस्थितिकी तंत्र के भारांश में वृद्धि: वित्त आयोग के हस्तांतरण में वन/पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा 10% से बढ़ाकर कम से कम 20% करना, संतुलन बनाए रखने के लिए जनसंख्या और आय-अंतर के भारांश को समायोजित करना।
  • पारिस्थितिक रूप से मूल्यवान क्षेत्रों को पुनः परिभाषित करना: वन की परिभाषा को संशोधित करके इसमें हिमक्षेत्र, अल्पाइन घास के मैदान और ग्लेशियर को शामिल करना। दरअसल, वर्तमान में इन्हें इसके दायरे से बाहर रखा गया है, जबकि हिमालयी राज्यों में जलवायु विनियमन और जल सुरक्षा की दृष्टि से ये महत्वपूर्ण हैं।
  • संरचनात्मक और शासन संबंधी सुधारों को मजबूती प्रदान करना: सशक्त नियामक निरीक्षण को शामिल करके और अनियमित जल विद्युत, सड़क विस्तार और बड़े पैमाने पर पर्यटन जैसी असंवहनीय गतिविधियों के लिए हरित निधियों के दुरुपयोग को रोककर हिमालयी शासन की न्यायसंगतता और पारदर्शिता सुनिश्चित करना।

हिमालयी राज्यों के लिए ग्रीन बोनस में वृद्धि की आवश्यकता

  • जैव विविध पारिस्थितिकी: हिमालयी राज्य भारत के पारिस्थितिक बैकबोन (आधार) के रूप में कार्य करते हैं, जहाँ दुर्लभ और लुप्तप्राय प्रजातियाँ पाई जाती हैं और इनका अद्वितीय पारिस्थितिक मूल्य है।
  • हिमालयी ग्लेशियर गतिशीलता: वे “वाटर टावर” के रूप में कार्य करते हैं क्योंकि वे उत्तर भारत की नदियों को पोषित करते हैं, नदी प्रणालियों, जलवायु विनियमन और जल विद्युत उत्पादन का समर्थन करते हैं।
  • इको-सेंसिटिव प्रतिबंध: इन राज्यों को असमान पर्यावरणीय और विकासात्मक लागतों, बारंबार आपदाओं (बाढ़, GLOFs, भूस्खलन), बुनियादी ढांचे के लिए वनों की अधिकाधिक कटाई और सीमित आर्थिक अवसरों जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • प्राकृतिक पूंजी को कम आंकना: उनकी प्राकृतिक पूंजी, जैसे वन, ग्लेशियर और नदियों का गैर-मौद्रिक मूल्य बहुत अधिक है, लेकिन इसकी भरपाई कम की जाती है।  जैसा कि 2025 के मूल्यांकन से उजागर होता है, जिसमें हिमाचल का वार्षिक पारिस्थितिकी तंत्र मूल्य ₹3.2 लाख करोड़ आंका गया है, परन्तु केंद्रीय निधि आवंटन में इसे स्वीकार नहीं किया गया है।

Sources:
Indian Express
Down to Earth

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