संबंधित पाठ्यक्रम:
सामान्य अध्ययन-3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियां; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।
संदर्भ:
हाल ही में, भारत के प्रधान मंत्री ने पहली बार उभरते विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सम्मेलन (ESTIC) में 1 लाख करोड़ रुपये का RDI कोष लॉन्च किया| यह सरकार के विकसित भारत 2047 विजन को साकार करने के लिए नीति निर्माताओं, नवप्रवर्तकों और वैश्विक दूर दृष्टिता वाले लोगों को एक साथ एक मंच पर लाता है।
अन्य संबंधित जानकारी
- भारत के प्रधानमंत्री ने भारत की वैज्ञानिक उपलब्धियों पर एक कॉफी टेबल बुक और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के लिए एक विजन दस्तावेज भी लॉन्च किया।
प्रमुख तथ्य
आरडीआई योजना को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 1 जुलाई 2025 को मंजूरी दी।
इसका उद्देश्य आने वाले वर्षों में रणनीतिक और उभरते क्षेत्रों में अनुसंधान, विकास और नवाचार (RDI) के लिए ₹1 लाख करोड़ जुटाना है, और विशेष रूप से उच्च जोखिम और उच्च प्रभाव वाली परियोजनाओं में निजी क्षेत्र के नेतृत्व में अनुसंधान एवं विकास के लिए प्रोत्साहित करना है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) RDI कोष का नोडल मंत्रालय है| RDI कोष को दो-स्तरीय वित्त पोषण संरचना के माध्यम से संचालित किया जाएगा।
- पहले स्तर पर, अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (SPF) के भीतर एक विशेष प्रयोजन कोष (SPF) स्थापित किया जाएगा, जो 1 लाख करोड़ रुपये की राशि के संरक्षक के तौर पर कार्य करेगा।
- इस निधि से सीधे उद्योगों और स्टार्टअप्स में निवेश नहीं किया जाएगा, बल्कि दूसरे स्तर के निधि प्रबंधकों जैसे- वैकल्पिक निवेश कोष (AIF), विकास वित्त संस्थान (DFI), गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियां (NBFCs) इत्यादि को पूंजी दी जाएगी|
योजना का महत्त्व
- अनुसंधान सुगमता: आरडीआई योजना परिवर्तनकारी अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं के लिए दीर्घकालिक, कम या बिना ब्याज दर पर वित्तपोषण की पेशकश करती है।
- आत्मनिर्भरता पर फोकस: आत्मनिर्भर भारत के साथ संरेखित यह पहल, एआई, बायोटेक, क्वांटम और सेमीकंडक्टर जैसे क्षेत्रों में रणनीतिक प्रौद्योगिकियों को प्राप्त करने और क्षमताओं के निर्माण का समर्थन करती है।
- निजी क्षेत्र और जोखिम पूंजी: कुशल सार्वजनिक अनुसंधान एवं विकास परन्तु मामूली निजी भागीदारी के साथ, यह योजना नवाचार को बढ़ावा देने के लिए निजी फर्मों और उच्च- TRL परियोजनाओं को लक्षित करती है।
- विकास का विजन: यह पहल अगली पीढ़ी की प्रौद्योगिकियों और आर्थिक आत्मनिर्भरता के माध्यम से 2047 तक भारत के विकसित भारत के लक्ष्य का समर्थन करती है।
अनुसंधान और विकास में निजी क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियाँ
- बौद्धिक संपदा (IP) संबंधी चिंताएं: पेटेंट अनुमोदन की धीमी प्रक्रिया, प्रवर्तन में खामियाँ और उच्च मुकदमेबाजी लागत नवाचार को हतोत्साहित करती है, जिससे फार्मास्यूटिकल्स और सॉफ्टवेयर जैसे क्षेत्रों में राजस्व सृजन प्रभावित होता है।
- बुनियादी ढाँचा और लागत संबंधी बाधाएँ: उन्नत प्रयोगशालाएँ (अर्धचालक, जैव प्रौद्योगिकी) स्थापित करने की उच्च लागत और सरकारी वित्त पोषित सुविधाओं तक सीमित पहुँच, अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों को बाधित करती हैं।
- उद्योग-अकादमिक सहयोग में कमी: अकादमिक और उद्योग के बीच विश्वास और संरेखण की कमी, प्रभावी साझेदारी में बाधा डालती है।
- बाजार और वित्तपोषण संबंधी मुद्दे: प्रारंभिक चरण और गहन तकनीकी नवाचार की व्यावसायिक व्यवहार्यता कम है, जिसके कारण महत्वपूर्ण “वैली ऑफ डेथ” अर्थात् कठिनाई के चरण में अपर्याप्त वित्तपोषण की स्थिति उत्पन्न होती है।
आगे की राह
- उद्योग-अकादमिक सहयोग को सुदृढ़ करना: अनुसंधान संस्थानों और उद्योग के बीच साझेदारी और संयुक्त उद्यमों को बढ़ावा दें ताकि अनुसंधान को बाज़ार-तैयार (Market-Ready) उत्पादों में बदला जा सके। उत्कृष्टता केन्द्रों का सृजन करें और तकनीकी हस्तांतरण तंत्र को प्रोत्साहित करें।
- प्रतिभा और उद्यमिता इकोसिस्टम का निर्माण: STEM शिक्षा, कौशल विकास में निवेश करें और एक ऐसा इकोसिस्टम तैयार करें जो जोखिम लेने की प्रवृत्ति और उद्यमिता को बढ़ावा दे ताकि अग्रणी शोधार्थियों को बनाए रखा जा सके और उन्हें आकर्षित किया जा सके।
- जवाबदेही और मूल्यांकन में वृद्धि: कोष के प्रभावी उपयोग और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के साथ संरेखण सुनिश्चित करने के लिए कुशल निगरानी और मूल्यांकन ढाँचे स्थापित करें, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि शोध के आर्थिक और सामाजिक निहितार्थ हैं|
