संदर्भ:
भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) , पुणे के वैज्ञानिकों द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन से पता चलता है, कि हिंद महासागर अभूतपूर्व और तीव्र गति से गर्म हो रहा है, जो संभवत: पूरी सदी तक जारी रह सकता है।
अन्य संबंधित जानकारी:
1950-2020 की अवधि तक , हिंद महासागर 1.2 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो गया था और जलवायु मॉडल यह अनुमान लगाते हैं, कि 2020-2100 के बीच इसमें और 1.7-3.8 डिग्री सेल्सियस तक तापमान बढ़ सकता है।
सागर में ” सागरीय ऊष्मीय तरंगे “, चक्रवातों के तेजी से बनने से जुड़ी हैं, और वर्तमान औसत 20 दिन प्रति वर्ष से बढ़कर 220–250 दिन प्रति वर्ष होने की उम्मीद है।
उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर संभवतः “लगभग स्थायी ऊष्म तरंग की स्थिति” में होगा।
महासागर का गर्म होना केवल सतह तक ही सीमित नहीं रहा, बल्कि यह और भी गहराई तक गया और महासागर की समग्र “ऊष्मा सामग्री” में वृद्धि हुई ।
हिन्द महासागर की ऊष्मा सामग्री, जब सतह से 2,000 मीटर की गहराई तक मापी जाती है, वर्तमान में 4.5 ज़ेटा-जूल प्रति दशक की दर से बढ़ रही है , और भविष्य में 16-22 ज़ेटा-जूल प्रति दशक की दर से बढ़ने का अनुमान है ।
- जूल ऊर्जा की एक इकाई है और एक ज़ेटा-जूल एक बिलियन ट्रिलियन जूल (10^21) के बराबर है।
भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान(IITM)
- भारत सरकार ने अपनी तीसरी पंचवर्षीय योजना (1961-1966) के अंतर्गत 17 नवंबर 1962 को पुणे में उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान की स्थापना की ।
- 1 अप्रैल 1971 को इसका नाम बदलकर भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान कर दिया गया और यह एक स्वायत्त संस्थान बन गया।
बढ़ती ऊष्मा सामग्री का नकारात्मक प्रभाव
- प्रवाल विरंजन में तेजी लाना
- समुद्री घास का विनाश
- केल्प वनों की हानि
- इससे मत्स्य पालन क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है
- बढ़ती ऊष्मा सामग्री समुद्र-स्तर में वृद्धि में योगदान देती है
भारतीय मानसून पर प्रभाव
- ऊष्मा के कारण पानी का आयतन बढ़ जाता है, जिसे जल का तापीय प्रसार कहा जाता है, और यह हिंद महासागर में समुद्र-स्तर में आधे से अधिक वृद्धि के लिए उत्तरदायी है – जो ग्लेशियर और समुद्री बर्फ के पिघलने से उत्पन्न होने वाले परिवर्तनों से भी अधिक है।
- हिंद महासागर द्विध्रुव (आई.ओ.डी.) की सकारात्मक स्थिति , जहां पश्चिमी भाग गर्म होता है,आमतौर पर ग्रीष्मकालीन मानसून के लिए अनुकूल होती हैं।
- हालांकि, 21वीं सदी के अंत तक चरम द्विध्रुवीय घटनाओं की आवृत्ति में 66% की वृद्धि होने का अनुमान है, जबकि मध्यम घटनाओं की आवृत्ति में 52% की कमी आने का अनुमान है।
हिंद महासागर द्विध्रुव
हिंद महासागर को प्रभावित करने वाला एक जलवायु पैटर्न है। इसके दो प्रमुख चरण होते हैं:
- सकारात्मक चरण: सकारात्मक चरण के दौरान, जलधाराओं के कारण उष्ण जल हिंद महासागर के पश्चिमी भाग की ओर धकेल दिया जाता है, जबकि पूर्वी हिंद महासागर में शीत जल गहराई से महासागर की सतह पर आ जाता है।
- नकारात्मक चरण: नकारात्मक चरण के दौरान, उपर्युक्त प्रतिरूप व्युत्क्रमित हो जाता है। सागरीय जलधाराएं पूर्वी हिंद महासागर में उष्ण जल को एकत्र करती हैं, जबकि पश्चिमी हिंद महासागर में शीत जल महासागर की सतह पर आ जाता है।