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सामान्य अध्ययन-2: भारत और इसके पड़ोसी संबंध।
संदर्भ:

हाल ही में, केंद्रीय रक्षा मंत्री ने पाकिस्तान को चेतावनी दी कि सर क्रीक क्षेत्र में किसी भी दुस्साहस या उकसावे पर भारत की ओर से कड़ी और निर्णायक प्रतिक्रिया दी जाएगी।
अन्य संबंधित जानकारी
- यह बयान भुज सैन्य बेस पर दिया गया, जहाँ केंद्रीय रक्षा मंत्री ने कहा कि सर क्रीक क्षेत्र में पाकिस्तान की ओर से किसी भी दुस्साहस पर भारत सख्त प्रतिक्रिया देगा, जिससे इस क्षेत्र का “इतिहास और भूगोल दोनों” बदल सकते हैं।
- यह चेतावनी पहलगाम हमलों और ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव तथा सीमा पार गतिविधियों में वृद्धि के मद्देनजर दी गई है।
सर क्रीक के बारे में
यह गुजरात (भारत) के कच्छ और सिंध प्रांत (पाकिस्तान) के बीच स्थित 96 किलोमीटर लंबा ज्वारनद्मुख है।
यह कच्छ के रण में एक कीचड़युक्त, निर्जन दलदली भूमि है जो अरब सागर में मिलती है।
मूलतः बाण गंगा कहलाने वाले इस क्रीक (creek) का नाम औपनिवेशिक काल के दौरान एक ब्रिटिश अधिकारी के नाम पर सर क्रीक रखा गया।
- क्रीक, पानी का संकरा टुकड़ा होता है जहाँ समुद्र, भूमि से मिलता है।
सर क्रीक विवाद के बारे में
यह विवाद भारत और पाकिस्तान के बीच औपनिवेशिक युग की सीमा निर्धारण की अलग-अलग व्याख्याओं से उत्पन्न हुआ है, जो समय के साथ सिंधु नदी के बदलते मार्ग से और भी जटिल हो गया है।
1908: कच्छ के रण और सिंध सरकार के बीच खाड़ी क्षेत्र को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया।
बॉम्बे सरकार ने सिंध और कच्छ के बीच सीमा के संबंध में एक प्रस्ताव जारी किया लेकिन सर क्रीक मुद्दे का पूरी तरह से समाधान नहीं किया जा सका।
विभाजन के बाद (1947 के आगे): भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद यह विवाद फिर से उभरा, तथा 1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद इसने गति पकड़ी।
1965: सीमा निर्धारण के लिए 1965 के समझौते के तहत, विवाद को संयुक्त राष्ट्र न्यायाधिकरण को भेजा जाता है।
- न्यायाधिकरण ने कच्छ के रण में भारत के 90% दावों को स्वीकार कर लिया तथा पाकिस्तान को सीमित क्षेत्र दिया।
1968: भारत-पाकिस्तान पश्चिमी सीमा न्यायाधिकरण की रिपोर्ट में सर क्रीक को शामिल नहीं किया गया, जिससे यह मुद्दा अनसुलझा रह गया।
1997: भारत और पाकिस्तान ने विशेष रूप से सर क्रीक मानचित्र पर चर्चा के लिए पुनः वार्ता शुरू की।
2005–2007: दोनों राष्ट्रों ने जल सर्वेक्षण किया तथा डेटा और चार्ट का आदान-प्रदान किया, लेकिन कोई अंतिम समझौता नहीं हो पाया।
सर क्रीक का महत्त्व
सामरिक महत्त्व:
- सर क्रीक का भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए अत्यधिक सामरिक महत्व है।
- इस क्षेत्र पर नियंत्रण रखने से पश्चिमी तटरेखा की बेहतर निगरानी और सुरक्षा की जा सकेगी।
- कच्छ की खाड़ी में भारत के प्रमुख बंदरगाह, मुंद्रा और कांडला स्थित हैं, जिससे इस क्षेत्र का सामरिक महत्व बढ़ जाता है।
- पाकिस्तान में चीन समर्थित बुनियादी ढांचा परियोजनाएँ संभावित दोहरे उपयोग (नागरिक से सैन्य) अनुप्रयोगों को लेकर चिंताएँ बढ़ाती हैं।
आतंकवाद-रोधी चिंताएँ:
- सर क्रीक को घुसपैठ के संभावित मार्ग के रूप में देखा जाता है।
- 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों के दौरान, आतंकवादियों ने कथित तौर पर कराची से समुद्री मार्ग का उपयोग किया था, जिससे इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा बढ़ाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।
आर्थिक महत्त्व:
- ऐसा माना जाता है कि इस खाड़ी में अभी तक ऊपयोग न किए गए तेल और गैस भंडार मौजूद हैं।
- भारत जो विशेष रूप से ऊर्जा आयात पर निर्भर है, के लिए यह खोज बाहरी निर्भरता को कम करने के साथ ही और ऊर्जा सुरक्षा को मजबूती प्रदन कर सकती है।
समुद्री सीमाएँ और अनन्य आर्थिक क्षेत्र:
- सर क्रीक विवाद अरब सागर में अनन्य आर्थिक क्षेत्रों (EEZs) के सीमांकन को प्रभावित करता है।
- एक निश्चित सीमा 200 समुद्री मील तक फैले समुद्री और समुद्र नितल के संसाधनों पर भारत के क्षेत्राधिकार का निर्धारण करेगी।