संबंधित पाठ्यक्रम:

सामान्य अध्ययन 3: भारतीय अर्थव्यवस्था और योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास से संबंधित विषय।

सामान्य अध्ययन 2: संघ और राज्यों के कार्य और उत्तरदायित्व, संघीय ढांचे से संबंधित विषय और चुनौतियां, स्थानीय स्तर तक शक्तियों और वित्त का हस्तांतरण।

संदर्भ: 

CAG रिपोर्ट के अनुसार, 2022-23 में राज्यों का कुल ऋण देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 22.17% था।

अन्य संबंधित जानकारी

  • राज्य वित्त प्रकाशन, 2025 भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा जारी किया गया।
  • यह नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा जारी की गई ऐसी पहली रिपोर्ट है जो राज्यों के राजकोषीय स्वास्थ्य पर दशकीय विश्लेषण प्रदान करती है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु

राज्यों का सार्वजनिक ऋण: सभी 28 राज्यों का संयुक्त सार्वजनिक ऋण एक दशक में लगभग तीन गुना बढ़ गया। यह 2013-14 में 17.57 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2022-23 में 59.60 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो उनके कुल GSDP के 22.96% यानी 2,59,57,705 करोड़ रुपये के बराबर है।

ऋण-से- GSDP अनुपात: 2022-23 के अंत में, सबसे अधिक ऋण-से-जीएसडीपी अनुपात पंजाब (40.35%), नागालैंड (37.15%) और पश्चिम बंगाल (33.7%) में दर्ज किया गया।

  • सबसे कम अनुपात ओडिशा (8.45%), महाराष्ट्र (14.64%) और गुजरात (16.37%) में दर्ज किया गया।

राज्यों के सार्वजनिक ऋण में शामिल हैं: 

  • प्रतिभूतियों, ट्रेजरी बिलों, बांडों आदि के माध्यम से खुले बाजार से जुटाए गए ऋण।
  • भारतीय स्टेट बैंक और अन्य बैंकों से ऋण।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक से अर्थोपाय अग्रिम (WMA)
  • भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) और राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) जैसे वित्तीय संस्थानों से लिए गए ऋण।

सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP): यह किसी राज्य की भौगोलिक सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी तैयार वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य है|

पूंजीगत व्यय: यह ऐसी परिसंपत्तियों के निर्माण की दिशा में किया गया दीर्घकालिक निवेश है जो उत्पादन क्षमता और परिचालन दक्षता को बढ़ाती हैं और समय के साथ राजस्व सृजन करती हैं। यह रोज़गार के अवसरों में वृद्धि करता है, अर्थव्यवस्थाओं को मजबूती प्रदान करता है और भविष्य की उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाता है। उदाहरण के लिए, सड़कों, औद्योगिक गलियारों, निर्यात केंद्रों, नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं में निवेश।

राजस्व व्यय: यह रोजमर्रा के कार्यों पर खर्च किए गए धन को संदर्भित करता है जो उनकी गतिविधियों को चालू रखने के लिए आवश्यक है, अर्थात् कर्मचारी का वेतन, बुनियादी ढांचे का रखरखाव, उपयोगिता भुगतान और सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने के लिए आवश्यक अन्य व्यय।

राज्य का खर्च: 

  • 11 राज्यों में पूंजीगत व्यय, वित्त वर्ष 2022-23 में शुद्ध सार्वजनिक ऋण प्राप्तियों से कम रहा। इसका कारण ऋण प्राप्तियों के एक हिस्से से राजस्व घाटे की भरपाई करना हो सकता है। 
  • इसी अवधि में, राज्य सरकारों के कुल राजस्व व्यय का 43.5% वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान पर खर्च हुआ, जिसमें वेतन की हिस्सेदारी सबसे अधिक थी; नागालैंड में यह 74% था, जबकि महाराष्ट्र में यह सबसे कम 32% रहा। 
  • कुल राजस्व व्यय (Revenue Expenditure) का 8.6% हिस्सा सब्सिडी के रूप में दिया गया।

राज्यों का कुल ऋण: 

  • औसतन, राज्यों का सार्वजनिक ऋण उनकी राजस्व प्राप्तियों/कुल गैर-ऋण प्राप्तियों का लगभग 150% रहा।
  • राजस्व प्राप्तियों के प्रतिशत के रूप में, राज्यों का कुल ऋण 128% (वित्त वर्ष 2014-15) और 191% (वित्त वर्ष 2020-21) के बीच रहा।
  • कुल गैर-ऋण प्राप्तियों के प्रतिशत के रूप में, राज्यों का कुल ऋण 127% (वित्त वर्ष 2014-15) और 190% (वित्त वर्ष 2020-21) के बीच रहा।
  • रिपोर्ट में इस पर प्रकाश डाला गया है कि 11 राज्यों ने अपने वर्तमान व्यय के वित्तपोषण के लिए उधार ली गई धनराशि का उपयोग किया।

स्रोत:
Indian Express
Indian Express

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