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सामान्य अध्ययन-2: भारत के हितों पर विकसित और विकासशील देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, प्रवासी भारतीय।
संदर्भ:
हाल ही में, सऊदी अरब और पाकिस्तान ने एक औपचारिक पारस्परिक रक्षा समझौते पर हस्ताक्षर किए और 1960 के दशक से चली आ रही रक्षा और सुरक्षा साझेदारी को औपचारिक रूप दिया।
समझौते के बारे में
- इस समझौते को औपचारिक तौर पर सामरिक पारस्परिक रक्षा समझौते के रूप में जाना जाता है और इस पर सऊदी क्राउन और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने हस्ताक्षर किए।
- यह समझौता “दोनों में से किसी भी देश पर हुए किसी भी प्रकार के आक्रमण को” दोनों देशों पर हुआ आक्रमण मानने के लिए बाध्य करता है।
- यह समझौता द्विपक्षीय सैन्य सहयोग को सामयिक सहायता से उन्नत कर औपचारिक सुरक्षा गारंटी बनाता है।
समझौते के संभावित कारण
• क्षेत्र से अमेरिका की वापसी: दशकों से, खाड़ी देश सुरक्षा के लिए अमेरिका पर निर्भर थे, लेकिन एशिया की ओर अमेरिका का झुकाव, मध्य पूर्व की उलझनों से निपटने की इच्छा न होना, तथा संकट के समय असमान प्रतिक्रियाओं ने खाड़ी की कमजोरियों को उजागर किया।
- कतर में इजरायल के हालिया हमले से यह संकट और भी गहरा गया, जिसने खाड़ी सुरक्षा व्यवस्था की खामियों को उजागर किया।
• सुरक्षा साझेदार के रूप में पाकिस्तान की भूमिका: पाकिस्तान की परमाणु क्षमता, मज़बूत सैन्य क्षमता और सऊदी अरब की सेनाओं को प्रशिक्षण देने के इतिहास ने सऊदी अरब को बाहरी ख़तरों के ख़िलाफ़ अतिरिक्त निवारक क्षमता प्रदान की।
• साझा क्षेत्रीय चिंताएँ: पश्चिम एशियाई अस्थिरता, विशेष रूप से ईरान के प्रभाव पर साझा चिंताएँ, आतंकवाद-प्रतिरोध और सीमा सुरक्षा में संयुक्त प्रयासों की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
• व्यापक भू-राजनीतिक गणना: यह समझौता दक्षिण एशिया में प्रभाव बढ़ाने और मुस्लिम देशों के साथ संबंधों को प्रगाढ़ करने के सऊदी अरब के प्रयासों को प्रतिबिंबित करता है। यद्यपि पाकिस्तान उससे रणनीतिक और वित्तीय सहायता चाहता है तथापि दोनों का लक्ष्य अमेरिका-भारत और इजरायल-खाड़ी संबंधों जैसे उभरते संरेखण को संतुलित करना है।
सामरिक निहितार्थ
- क्षेत्रीय सुरक्षा गणना: पाकिस्तान-सऊदी संबंधों को औपचारिक रूप देकर खाड़ी में राजनीतिक और रणनीतिक भार बढ़ने से पाकिस्तान की स्थिति मज़बूत होगी, जिससे दक्षिण एशिया का निवारक संतुलन भी बदल सकता है।
- परमाणु आयाम: विश्लेषक परमाणु-सशस्त्र पाकिस्तान से जुड़े रक्षा समझौते के महत्व को उजागर करते हैं, जिससे संकट के गहराने और बाहरी हस्तक्षेप को लेकर चिंताएँ बढ़ सकती हैं।
- खाड़ी-दक्षिण एशिया संबंध: यह समझौता दक्षिण एशिया के साथ खाड़ी सुरक्षा संबंधों को और प्रगाढ़ करता है तथा विभिन्न क्षेत्रों में रक्षा कूटनीति, सैन्य अड्डे, प्रशिक्षण और खुफिया सहयोग को प्रभावित कर सकता है।
- कूटनीतिक संकेत: सऊदी अरब के लिए, यह समझौता रणनीतिक साझेदारी में विविधता लाने और खाड़ी क्षेत्र से परे अपना प्रभाव स्थापित करने की इच्छा का संकेत देता है; पाकिस्तान के लिए, यह रणनीतिक आश्वासन और बाहरी समर्थन की पुष्टि करता है।
भारत पर प्रभाव
- अर्थव्यवस्था और ऊर्जा आयाम: भारत ऊर्जा और धन प्रेषण के लिए खाड़ी देशों, विशेष रूप से सऊदी अरब पर निर्भर करता है। पाकिस्तान की ओर सऊदी अरब का झुकाव उसके हितों को प्रभावित कर सकता है, हालांकि मजबूत व्यापार संबंध सऊदी अरब को संतुलित कर सकते हैं।
- सुरक्षा जोखिम: प्रशिक्षण, खुफिया जानकारी साझा करने और संयुक्त अभ्यास के माध्यम से पाकिस्तान-सऊदी सैन्य सहयोग बढ़ने से भारत के सुरक्षा वातावरण पर असर पड़ सकता है, साथ ही इससे पाकिस्तान को कश्मीर जैसे मुद्दों पर सऊदी अरब का समर्थन प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी।
- सामरिक चिंताएं: सऊदी अरब के समर्थन से पाकिस्तान की क्षेत्रीय स्थिति बेहतर होगी और तनाव के समय में भारत की निवारक (deterrence) क्षमता जटिल बनी रहेगी।