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सामान्य अध्ययन 1: भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी हलचल, चक्रवात आदि जैसी भू-भौतिकीय घटनाएँ, भूगोलीय विशेषताएँ और उनके स्थान| अति महत्वपूर्ण भूगोलीय विशेषताओं (जल स्रोत और हिमावरण सहित) और वनस्पति एवं प्राणि-जगत में परिवर्तन और इस प्रकार के परिवर्तनों के प्रभाव।
संदर्भ:
हाल ही में नागालैंड से प्राप्त जीवाश्म पत्तियों पर आधारित एक नए अध्ययन से यह संकेत मिलता है कि लगभग 34 मिलियन वर्ष पूर्व अंटार्कटिक में हुए बर्फ के निर्माण का संबंध भारतीय मानसून प्रणाली के प्रारंभिक विकास से रहा होगा।
अध्ययन के बारे में

- बीरबल साहनी पुराविज्ञान संस्थान (लखनऊ) और वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान (देहरादून) के शोधकर्ताओं ने नागालैंड के लाइसोंग फॉर्मेशन से जीवाश्म पत्तियों का अध्ययन किया।
- पुराविज्ञान पुराजलवायु विज्ञान, पुरापारिस्थितिकी पर प्रकाशित एक अध्ययन में जीवाश्म पत्तियों के आकार, आकृति और संरचना का विश्लेषण करने हेतु क्लाइमेट लीफ एनालिसिस मल्टीवेरिएट प्रोग्राम (CLAMP) की शुरूआत की गई।
- यह अध्ययन पिछले जलवायु प्रभावों को समझने और भविष्य के मानसून पूर्वानुमानों को बेहतर बनाने में सहायता करता है।
अध्ययन के मुख्य परिणाम
- अंटार्कटिक हिमनदीकरण और मानसून में बदलाव: अंटार्कटिक बर्फ में हो रही वृद्धि ने अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (आईटीसीजेड) को उत्तर की ओर स्थानांतरित करके वैश्विक पवन और वर्षा प्रतिरूप को नया रूप दिया।
o इस बदलाव के कारण पूर्वोत्तर भारत में तीव्र मानसूनी वर्षा हुई, जिससे घने जंगल विकसित हुए। - वैश्विक बदलाव का कारण: नागालैंड में आज की तुलना में एक समय बहुत अधिक गर्मी पड़ती थी और नमी रहती थी। इसका कारण वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका में पहली बार वृहत स्तर पर हुए बर्फ के निर्माण के साथ हुए वैश्विक बदलाव को माना।
- पृथ्वी की जलवायु प्रणाली का वैश्विक अंतर्संबंध: उदाहरण के लिए, पृथ्वी के एक हिस्से में परिवर्तन, जैसे अंटार्कटिका की बर्फ की चादरों का बढ़ना या पिघलना, हज़ारों किलोमीटर दूर की जलवायवीय दशाओं (जैसे नागालैंड के जंगलों में वर्षा) को प्रभावित कर सकता है।
- भविष्य के लिए चेतावनियाँ: जैसे-जैसे आधुनिक जलवायु परिवर्तन के कारण अंटार्कटिका की बर्फ पिघलती है, आईटीसीज़ेड दक्षिण की ओर स्थानांतरित होता है, जिससे उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में मानसून प्रतिरूप में संभावित रूप से व्यवधान आ सकता है।
अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ)

- आईटीसीजेड भूमध्य रेखा पर स्थित एक निम्न दाब क्षेत्र है, जहाँ दोनों गोलार्धों से चलने वाली व्यापारिक पवनें मिलती हैं, और इसलिए यह एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ हवा ऊपर उठती है जिसके परिणामस्वरूप वर्षा होती है।
- जुलाई में, आईटीसीजेड 20°N-25°N अक्षांशों (गंगा के मैदान पर) के आसपास स्थित होता है, जिसे कभी-कभी मानसून गर्त (monsoon trough) भी कहा जाता है।
o यह मानसून गर्त उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत में एक निम्न ताप क्षेत्र के विकास को प्रेरित करता है। - ITCZ शिफ्ट के कारण, दक्षिणी गोलार्ध की व्यापारिक पवनें 40°-60° पूर्व के बीच भूमध्य रेखा को पार करती हैं और दक्षिण-पश्चिम-उत्तर-पूर्व की ओर मुड़कर दक्षिण-पश्चिम मानसून का कारण बनती हैं, और कोरिओलिस बल द्वारा विक्षेपित हो जाती हैं।