संबंधित पाठ्यक्रम
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र-3: भारतीय अर्थव्यवस्था तथा योजना, संसाधनों को जुटाने, प्रगति, विकास तथा रोजगार से संबंधित विषय| उदारीकरण का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव, औद्योगिक नीति में परिवर्तन तथा औद्योगिक विकास पर इसका प्रभाव|
संदर्भ:
हर्फिंडाहल-हिर्शमैन सूचकांक (HHI) में उच्च स्कोर से परिलक्षित होता है कि महामारी के बाद भारत के लाभ में हुई वृद्धि, बढ़ते बाजार संकेन्द्रण से निकटता से जुड़ी हुई है।
HHI के बारे में
- HHI, बाज़ार संकेन्द्रण की व्यापक रूप से प्रयुक्त होने वाली माप है। मूलतः, यह मापने का एक तरीका है कि कोई उद्योग कितना प्रतिस्पर्धी (या एकाधिकारवादी) है।
- अल्बर्ट ओ. हिर्शमैन ने 1940 के दशक में इस सूचकांक का एक प्रारंभिक संस्करण विकसित किया था, जिसे बाद में ओरिस सी. हर्फ़िंडाहल ने परिष्कृत किया और लोकप्रिय बनाया।
- यह सूचकांक अब आम तौर पर एकाधिकारवाद-विरोधी नियामकों द्वारा उपयोग किया जाता है।
- यह आकलन करता है कि क्या किसी बाज़ार पर कुछ बड़े खिलाड़ियों का बहुत अधिक प्रभुत्व हो गया है। इसके साथ ही यह बाज़ार में फर्मों के सापेक्ष आकार वितरण (relative size distribution) को भी ध्यान में रखता है।
गणना और व्याख्या
- HHI किसी क्षेत्र में प्रत्येक फर्म के बाजार हिस्से का वर्गमूल निकालकर और परिणाम का योग करके बाजार संकेंद्रण को मापता है।
- स्कोर जितना अधिक होगा, उतना ही अधिक नियंत्रण कम खिलाड़ियों के हाथों में केंद्रित होगा।
- जब बाजार पर अपेक्षाकृत समान आकार की अधिक फर्मों का कब्जा होता है, तो यह शून्य के करीब पहुँच जाता है और जब बाजार पर एक ही फर्म (विशुद्ध एकाधिकार) का नियंत्रण होता है, तो यह अपने अधिकतम 10,000 अंकों तक पहुँच जाता है।
- स्कोर का ब्यौरा इस प्रकार है:
1,500 से कम स्कोर प्रतिस्पर्धी बाज़ार को दर्शाता है।
1,500 और 2,500 के बीच का स्कोर मध्यम रूप से संकेंद्रित को दर्शाता है।
2,500 से ऊपर का स्कोर बाज़ार के अत्यधिक संकेंद्रित होने का संकेत देता है। - बाज़ार जितना अधिक संकेन्द्रित होगा, HHI उतना ही अधिक होगा और फर्मों के पास मूल्य निर्धारण की शक्ति भी उतनी ही अधिक होगी।
- HHI बढ़ने के परिणामस्वरूप, एक या दो फर्मों का प्रभुत्व होता है, वे कीमतें निर्धारित कर सकती हैं, आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित कर सकती हैं, और प्रायः प्रतिस्पर्धा और नवाचार की कीमत पर उपभोक्ताओं के लिए विकल्पों को आकार दे सकती हैं।
भारत में सूचकांक का अवलोकन
- वित्त वर्ष 2025 में, आठ प्रमुख भारतीय क्षेत्रों में औसत HHI बढ़कर 2,532 (जोकि वित्त वर्ष 2015 में 1,980 और वित्त वर्ष 2020 में 2,167 था) हो गया। इस प्रकार यह एक दशक के भीतर पहली बार ‘अत्यधिक संकेन्द्रित’ क्षेत्र के स्तर पर पहुँच गया।
- ये आँकड़े बढ़ती मूल्य निर्धारण शक्ति, घटती प्रतिस्पर्धा और बढ़ते लाभ मार्जिन को दर्शाते हैं।
- अध्ययन किए गए आठ क्षेत्रों में बाज़ार संकेन्द्रण, सूचकांक द्वारा ‘उच्च’ मानी जाने वाली सीमा तक पहुँच गया है। क्षेत्रों में दूरसंचार, पेंट, विमानन, इस्पात, दोपहिया वाहन और सीमेंट शामिल हैं। पिछले एक दशक में केवल पेंट और दोपहिया वाहनों के संकेन्द्रण में हि मामूली गिरावट देखी गई है।
- बढ़ता HHI स्कोर आकस्मिक नहीं हैं, नियामक सुधारों और आर्थिक आघातों के संयोजन ने लगातार बड़े खिलाड़ियों की ओर इसे झुका दिया है, जो आम तौर पर जीवित रहने और प्रमुख आर्थिक और नीतिगत चुनौतियों से लाभ उठाने में कुशल हैं।
- बाजार आधारित नियामक सुधार निम्नलिखित रूपों में हुए गतिशील परिवर्तनों के माध्यम से दिखाई दे रहे हैं:
विलय और अधिग्रहण (M&As)
कोविड के बाद कमज़ोर/छोटी फर्मों का बाहर निकलना
बड़ी फर्मों का स्वाभाविक विकास
कुछ फर्मों द्वारा बाजार पर किए गए प्रभुत्व के निहितार्थ
- मूल्य निर्धारण शक्ति: जैसे-जैसे प्रतिस्पर्धा कम होती जाती है, प्रमुख खिलाड़ियों को कीमतें बढ़ाने और मार्जिन बचाकर रखने की शक्ति मिल जाती है। पर्याप्त प्रतिस्पर्धा के अभाव में, कीमतें वहनीय बनाए रखने का दबाव कम होता है।
- उपभोक्ता विकल्प में कमी: संकेन्द्रित कंपनियां बाजार हिस्सेदारी खोने के डर के बिना मूल्य वृद्धि को और बढ़ा सकती हैं, जिसके परिणामस्वरूप ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जहाँ उपभोक्ताओं को उच्च कीमतों के साथ-साथ सीमित विकल्पों से जूझना पड़ता है।
- नवाचार में बाधा: जब एक या दो कंपनियां का प्रभुत्व हो जाता है, तो वे कीमतें निर्धारित कर सकती हैं, आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित कर सकती हैं, और उपभोक्ता विकल्पों को आकार दे सकती हैं परन्तु ये सब प्रायः प्रतिस्पर्धा और नवाचार की कीमत पर होता है।
- प्रतिस्पर्धी इकोसिस्टम के लिए खतरा: नियामक सुधारों और आर्थिक आघातों के संयोजन ने लगातार बड़े खिलाड़ियों की ओर इसे झुका दिया है, जो आम तौर पर जीवित रहने और प्रमुख आर्थिक और नीतिगत चुनौतियों से लाभ उठाने में कुशल हैं। और यहां तक कि प्रमुख आर्थिक और नीतिगत चुनौतियों से भी लाभ उठाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप छोटी कंपनियों के लिए बाधाएं उत्पन्न होती हैं और प्रतिस्पर्धा भी कम होती है।