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सामान्य अध्ययन: 2 महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं

संदर्भ: 

हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) ने “द रियल फर्टिलिटी क्राइसिस: द पर्सूट ऑफ रिप्रोडक्टिव एजेंसी इन अ चेंजिंग वर्ल्ड” शीर्षक से विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट 2025 जारी की है।    

रिपोर्ट के मुख्य बिन्दु                      

  • वैश्विक जनसंख्या: वैश्विक जनसंख्या 8.2 बिलियन तक पहुँच गई है, यद्यपि इसकी वृद्धि दर अब मंद पड़ रही है। हालाँकि संपन्न और निर्धन देशों के बीच जनसंख्या की प्रवृत्तियों में गहरी विषमताएँ विद्यमान हैं।     
  • प्रजनन संकट: असली चुनौती अधूरी प्रजनन आकांक्षाओं में निहित है – जहां व्यक्ति अपने वांछित परिवार के आकार को प्राप्त करने में असमर्थ हैं।  
  • प्रजनन स्वायत्तता: प्रजनन से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि व्यक्तियों को यह स्वायत्तता प्राप्त हो कि वे प्रजनन, गर्भनिरोध तथा संतान जन्म की समय-सीमा से संबंधित सूचित एवं स्वैच्छिक निर्णय ले सकें।        
  • जनसांख्यिकीय लाभांश: चूंकि विश्व जनसंख्या का 60% से अधिक हिस्सा 15 से 64 वर्ष की आयु वर्ग में आता है, अतः आर्थिक विकास और उत्पादकता को गति देने के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण अवसर प्रदान करता है।  
  • वृद्ध होती जनसंख्या: विश्व भर में 65 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या में तेज़ी से हो रही वृद्धि, स्वास्थ्य प्रणाली और पेंशन समर्थन तंत्रों पर तत्काल ध्यान देने की मांग करती है।  
  • दुनिया भर में हर पांच में से एक व्यक्ति को यह उम्मीद नहीं है कि वह उतने बच्चे पैदा कर सकेगा जितने वह चाहता है।

              इसके मूल कारणों में शामिल हैं—बच्चों के पालन-पोषण की बढ़ती लागत, रोजगार की असुरक्षा, आवास संबंधी चुनौतियाँ, विश्व की अनिश्चित परिस्थितियों को लेकर चिंता, तथा सही जीवनसाथी का न मिलना। इसके अतिरिक्त, आर्थिक दबाव और लैंगिक असमानता भी इस स्थिति को और जटिल बना देते हैं।  

भारत के लिए मुख्य निष्कर्ष              

  • वास्तविक मुद्दा बहुत अधिक या बहुत कम बच्चे पैदा करना नहीं है, बल्कि वांछित प्रजनन लक्ष्य हासिल करने में असमर्थता है।
  • रिपोर्ट में प्रजनन क्षमता में गिरावट से घबराने की बजाय अधूरे प्रजनन लक्ष्यों पर ध्यान देने का आग्रह किया गया है। 
  • अवांछित गर्भधारण और अधूरे प्रजनन लक्ष्य:   

               लगभग 36% वयस्क भारतीयों ने अवांछित गर्भधारण का अनुभव किया है। 

              लगभग 30% ने अधिक या कम बच्चे पैदा करने की इच्छा पूरी न होने की बात कही।

              23% लोगों को दोनों चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जो कि सर्वेक्षण में शामिल 14 देशों में सर्वाधिक दरों में से एक है।   

भारत में प्रजनन स्वायत्तता में बाधाएं

  • यह रिपोर्ट, जिसमें भारत सहित 14 देशों में UNFPA-YouGov सर्वेक्षण शामिल है, ‘जनसंख्या विस्फोट’ बनाम ‘जनसंख्या पतन’ के बारे में वैश्विक आख्यानों को चुनौती देती है।

भारत में प्रजनन प्रवृत्तियाँ  

  • राष्ट्रीय प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता प्राप्ति: प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता को सामान्यतः प्रति महिला 2.1 जन्म के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो कि वह दर है जिस पर जनसंख्या का आकार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक समान रहता है।            

              भारत ने प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन दर (TFR 2.0) प्राप्त कर ली है, लेकिन इसमें व्याप्त क्षेत्रीय एवं सामाजिक विषमताएँ अभी भी बरकरार हैं।  

              यह राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 और राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 (TFR 2.1) के अनुरूप है।   

  • भारत की किशोर प्रजनन दर 15-19 वर्ष की आयु की प्रति 1,000 महिलाओं पर 14.1 है, जो चीन (6.6), श्रीलंका (7.3) और थाईलैंड (8.3) की तुलना में कहीं अधिक है। यह स्थिति मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

भारत के लिए UNFPA की सिफारिशें

  • अधिकार-आधारित जनसांख्यिकीय लचीलापन :

             मानवाधिकारों से समझौता किए बिना, जनसंख्या परिवर्तनों के अनुरूप अनुकूलन पर ध्यान केंद्रित करना। 

नीति और सेवा हस्तक्षेप :

      यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार :

           गर्भनिरोधक, सुरक्षित गर्भपात, मातृ स्वास्थ्य, प्रजनन अक्षमता उपचार तक सार्वभौमिक पहुंच

      संरचनात्मक बाधाओं को दूर करना:

          बच्चों की देखभाल, शिक्षा, आवास, कार्यस्थल लचीलेपन में निवेश करना 

      समावेशी नीतियों को बढ़ावा देना:

         अविवाहित व्यक्तियों, LGBTQIA+ व्यक्तियों और हाशिए पर पड़े समूहों तक सेवाओं का विस्तार 

      डेटा सिस्टम को बेहतर करना और जवाबदेही को बढ़ाना:

          केवल प्रजनन दर नहीं, बल्कि अपूर्ण आवश्यकताओं और शारीरिक स्वायत्तता जैसी बातों पर भी निगरानी रखना।   

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA)    

  • 1967 में स्थापित UNFPA, संयुक्त राष्ट्र की यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य एजेंसी है।
  • UNFPA का मिशन एक ऐसा विश्व बनाना है जहां हर गर्भावस्था वांछित हो, हर प्रसव सुरक्षित हो और प्रत्येक युवा अपनी पूर्ण क्षमता को प्राप्त कर सके।   
  • 1987 में, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या गतिविधि कोष (UNFPA) का आधिकारिक नाम बदलकर संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष कर दिया गया। हालाँकि, मूल संक्षिप्त नाम UNFPA को बरकरार रखा गया।
  • UNFPA का मुख्यालय संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में है।      

विषय से संबंधित मुख्य शब्द

  • सकारात्मक जनसंख्या वृद्धि: जब किसी निश्चित अवधि के दौरान जन्म दर मृत्यु दर से अधिक होती है, या जब अन्य देशों से लोग किसी क्षेत्र में स्थायी रूप से प्रवास करते हैं, तो इसे सकारात्मक जनसंख्या वृद्धि कहा जाता है।  
  • नकारात्मक जनसंख्या वृद्धि: जब किसी निश्चित अवधि के दौरान जन्म दर मृत्यु दर से कम हो जाती है या लोग अन्य देशों की ओर प्रवास कर जाते हैं, जिससे जनसंख्या में कमी आती है, तो इसे नकारात्मक जनसंख्या वृद्धि कहा जाता है। 
  • जनसंख्या घनत्व : प्रति इकाई क्षेत्रफल में निवास करने वाले व्यक्तियों की संख्या को जनसंख्या घनत्व कहा जाता है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत का जनसंख्या घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है, और राज्यों में, बिहार का घनत्व सबसे अधिक 1106 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है। 1951 में, यह 117 व्यक्ति/वर्ग किलोमीटर था।
  • जनसंख्या विस्फोट की अवधि: किसी देश की जनसंख्या में अचानक वृद्धि को जनसंख्या विस्फोट कहा जाता है। भारत में 1951-1981 के दशक को जनसंख्या विस्फोट की अवधि कहा जाता है। इस अवधि के दौरान औसत वार्षिक वृद्धि दर 2.2 प्रतिशत तक थी।      

मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न       

“वास्तविक प्रजनन संकट अधिक जनसंख्या या कम जनसंख्या के बारे में नहीं है, बल्कि प्रजनन स्वायत्तता की कमी के बारे में है।” संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की विश्व जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट 2025 के संदर्भ में, भारत की जनसंख्या नीति और सामाजिक-आर्थिक नियोजन के लिए इस परिप्रेक्ष्य के निहितार्थों पर चर्चा कीजिए।

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