संदर्भ: 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने बैंकिंग प्रणाली में सख्त तरलता स्थितियों को कम करने के लिए खुले बाजार परिचालन (OMO) और विदेशी मुद्रा स्वैप के माध्यम से ₹1.9 लाख करोड़ का अंत:क्षेपण (Inject) करने की घोषणा की है।

अन्य संबंधित जानकारी

  • खुले बाजार परिचालन नीलामी के तहत, RBI ₹1 ट्रिलियन (1 लाख करोड़) की सरकारी प्रतिभूतियों को ₹50,000 करोड़ की दो किस्तों में खरीदेगा। 

खुले बाजार परिचालन (OMO)

  • खुले बाजार परिचालन (OMO) का उपयोग अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। 
  • OMO अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और मौद्रिक नीति उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण हैं। 
  • बाजार में तरलता की कमी को कम करने के लिए आरबीआई प्रतिभूतियां खरीद सकता है (मुद्रा की आपूर्ति बढ़ाकर)
  • मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए आरबीआई प्रतिभूतियां बेच सकता है (अतिरिक्त रुपए को अवशोषित कर सकता है)
  • इन परिचालनों के माध्यम से, आरबीआई बैंकों द्वारा रखे गए धन की मात्रा को समायोजित कर सकता है, जिससे उनके उधार और ऋण लेने पर प्रभाव पड़ता है।

करेंसी-स्वैप नीलामी

  • यह दो पक्षों के बीच एक ऋण के मूलधन और ब्याज को विभिन्न मुद्राओं में विनिमय करने का समझौता है।
  • स्वैप नीलामी आरबीआई द्वारा तरलता प्रबंधन और वित्तीय बाजारों को स्थिर करने के लिए उपयोग किया जाने वाला एक उपकरण है। 
  • बदले में, आरबीआई बैंकिंग प्रणाली में रुपया तरलता डालेगा।
  • इसके अतिरिक्त, RBI 36 महीने की अवधि के साथ $10 बिलियन (0.9 लाख करोड़) के लिए खरीद/बिक्री USD/INR मुद्रा स्वैप नीलामी भी आयोजित करेगा।
  • इससे पहले, RBI ने फरवरी में सफलतापूर्वक $10 बिलियन का अमेरिकी डॉलर-रुपया स्वैप आयोजित किया था।
  • RBI का यह निर्णय फरवरी में, 25 आधार अंकों की दर कटौती और 31 मार्च, 2026 तक नए तरलता कवरेज अनुपात (LCR) मानदंडों के कार्यान्वयन को एक वर्ष के लिए स्थगित करने के माध्यम से तरलता की स्थिति को आसान बनाने के अपने पहले के उपायों के बाद आया है।

वर्तमान तरलता घाटा और इसके कारण

बैंकिंग प्रणाली में लगातार तरलता घाटा बना हुआ है, जिसमें नवंबर 2024 में ₹1.35 ट्रिलियन से जनवरी 2025 में ₹2.1 ट्रिलियन तक की वृद्धि हुई है।

RBI की विभिन्न कार्रवाइयों ने बैंकिंग प्रणाली में लगभग ₹3.2 ट्रिलियन का अंत:क्षेपण किया है, लेकिन तरलता की स्थिति तंग बनी रही, और विशेषज्ञों का सुझाव है कि इस से ज्यादा हस्तक्षेप की आवश्यकता है।

तरलता संकट में योगदान करने वाले कारकों में कर बहिर्वाह और रुपये को स्थिर करने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर की बिक्री शामिल है।

“जस्ट-इन-टाइम” (JIT) तरलता तंत्र का कार्यान्वयन, जो बैंकिंग प्रणाली में निष्क्रिय सरकारी निधियों की मात्रा को सीमित करता है, ने भी तरलता में कमी को बढ़ाया है। 

  • JIT  तंत्र के तहत, सरकार के बिना खर्च किए गए नकद शेष को RBI द्वारा रेपो के माध्यम से नीलाम किया जाता है (रेपो एक विशिष्ट प्रकार का OMO है जिसमें सरकारी प्रतिभूतियों को खरीदना और बेचना शामिल है)।
  • इन शेष निधियों का उपयोग तरलता को स्थायी रूप से आसान बनाने के लिए नहीं किया जा सकता है, क्योंकि इन्हें वर्तमान JIT प्रणाली के अंतर्गत बैंकिंग प्रणाली में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता है।

SBI रिसर्च द्वारा सिफारिशें

  • भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की एक शोध रिपोर्ट ने RBI के तरलता प्रबंधन ढांचे पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
  • रिपोर्ट ने भारित औसत मांग दर (WACR)को अधिक प्रभावी नीति दर से बदलने का सुझाव दिया क्योंकि WACR अपने इच्छित उद्देश्य को पूरा नहीं करता है।
  • SBI ने सिफारिश की कि RBI को नकद आरक्षित अनुपात (CRR) का उपयोग केवल तरलता प्रबंधन उपकरण के बजाय एक प्रतिचक्रीय तरलता बफर के रूप में करना चाहिए।
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