संदर्भ:
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने केरल के 10 तटीय जिलों के लिए तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना को मंजूरी दी है।
अन्य संबंधित जानकारी
- कार्यान्वयन समय-सीमा: मंत्रालय ने केरल तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण की वेबसाइट पर हस्ताक्षरित प्रतियां उपलब्ध कराने के लिए एक महीने का समय दिया है।
- कानूनी ढांचा: यह योजना तटीय विनियमन क्षेत्र अधिसूचना, 2019 के प्रावधानों के अनुरूप है जिससे तटीय विनियमन क्षेत्र नियमों में ढील दी जा सकेगी।
तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना
- प्रमुख उद्देश्य: सतत विकास को बढ़ावा देते हुए अद्वितीय तटीय पर्यावरण का संरक्षण एवं सुरक्षा करना।
- वैज्ञानिक आधार: ग्लोबल वार्मिंग के कारण प्राकृतिक खतरों और समुद्री जल स्तर में वृद्धि को कम करने के लिए वैज्ञानिक सिद्धांतों को शामिल किया गया है।
- जनसांख्यिकी महत्व: केरल का उच्च जनसंख्या घनत्व 859 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर है जो राष्ट्रीय औसत से दोगुने से भी अधिक है।
- प्रशासनिक विस्तार : यह 10 जिलों के पांच निगमों, 36 नगर पालिकाओं और 245 ग्राम पंचायतों को प्रभावित करता है।
- कार्यान्वयन निकाय: इसके कार्यान्वयन की देखरेख केरल तटीय क्षेत्र प्रबंधन प्राधिकरण करेगा।
केरल के तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना के प्रमुख प्रावधान
क्षेत्र वर्गीकरण: सीआरजेड अधिसूचना 2019 के तहत समुद्र तट को निम्न चार क्षेत्र में वर्गीकृत किया गया है:
- तटीय विनियमन क्षेत्र-I (CRZ-I): पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र जहां किसी भी प्रकार के निर्माण की अनुमति नहीं है, जहां मैंग्रोव और आर्द्रभूमि जैसे नाजुक पारिस्थितिक तंत्रों को संरक्षण दिया जाता है।
- तटीय विनियमन क्षेत्र-II (CRZ-II): शहरी क्षेत्र जो मौजूदा संरचनाओं के निकट भूमि पर विनियमित विकास की अनुमति देते हैं, नियंत्रित शहरी विकास का समर्थन करते हैं।
- तटीय विनियमन क्षेत्र-III (CRZ-III): प्राकृतिक परिदृश्यों को प्राथमिकता देते हुए स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को सहायता देने हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में सीमित विकास की अनुमति।
- तटीय विनियमन क्षेत्र-IV (CRZ-IV): समुद्र और पश्चजल क्षेत्र, जहां पर्यावरणीय प्रभाव को न्यूनतम करने के लिए मछली पकड़ने, नौवहन और जलीय कृषि गतिविधियों को विनियमित किया जाता है।
विकास निषेध क्षेत्र (No Development Zone-NDZ): ज्वार-प्रभावित जल निकायों के आसपास विकास निषेध क्षेत्र को 100 मीटर से घटाकर 50 मीटर कर दिया गया है, जिससे आवश्यक तटीय बफर को संरक्षित करते हुए विकास किया जा सके।
भवन और ऊंचाई प्रतिबंध: तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना के तहत भवनों की ऊंचाई सीमाएं एवं तटरेखा अवरोध जो तटीय कटाव को कम करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि विकास और पारिस्थितिक संतुलन बना रहे।
कृषि के लिए विशेष प्रावधान: केरल में पोक्काली धान की खेती जैसी पारंपरिक कृषि पद्धतियों के लिए अनुकूलन व्यवस्थाएं की गई हैं। यहाँ पहले से मौजूद बाँधों को उच्च ज्वार रेखा माना जाता है जिससे विकास प्रतिबंधों में ढील मिलती है और सतत खेती को बढ़ावा मिलता है।
तटीय पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण: मैंग्रोव, आर्द्रभूमि और अन्य जैव विविधता वाले हॉटस्पॉट जैसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्रों की सुरक्षा के लिए विशिष्ट उपाय शामिल किए गए हैं जो प्राकृतिक तटीय बाधाओं के रूप में कार्य करते हैं।
- पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा और विकास आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाने हेतु मैंग्रोव बफर जोनों को घटाकर 2,500 हेक्टेयर कर दिया गया है (पहले यह 4,300 हेक्टेयर था), विशेष रूप से निजी भूमि पर।
सीआरजेड 2011 अधिसूचना की तुलना में प्रमुख बदलाव
- विकास निषेध क्षेत्र विस्तार में कमी: कुल विकास निषेध क्षेत्र (NDZ) 239.431 वर्ग किमी से घटकर 108.397 वर्ग किमी हो गया, जिससे अधिक नियंत्रित विकास की सुविधा मिली।
- मैंग्रोव बफर समायोजन: मैंग्रोव के आसपास बफर क्षेत्रों को कम किया गया है, विशेष रूप से निजी क्षेत्रों पर, जिससे इन महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी क्षेत्रों के लिए पर्याप्त सुरक्षा बनाए रखने के बारे में चिंताएं उत्पन्न होती हैं।
- लचीले नियम: कुछ क्षेत्रों के लिए आसान निर्माण नियम, परमिट (अनुमति) प्राप्त करने की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना तथा निर्दिष्ट क्षेत्रों में विकास संबंधी बाधाओं को कम करना।
लाभ:
- तटीय विस्तार: केरल के 590 किलोमीटर लंबे समुद्र तट पर इसका प्रभाव पड़ता है जो इसके 14 जिलों में से नौ तक विस्तृत है।
- जनसंख्या विस्तार: लगभग 10 लाख लोगों को प्रत्यक्ष लाभ मिलने की उम्मीद है। यह योजना उच्च घनत्व वाली तटीय आबादी और उनकी विकास आवश्यकताओं को प्रभावित करती है।
- आर्थिक निहितार्थ: तटीय विकास और निर्माण के नए अवसर खुलेंगे।
- प्रशासनिक दक्षता: निर्माण परमिट (अनुमति) प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल बनाया गया है।
चुनौतियां
- पर्यावरणीय क्षरण: विकास निषेध क्षेत्रों में कमी तथा मैंग्रोव बफर में ढील विशेष रूप से निजी भूमि पर प्राकृतिक आवासों के नुकसान को बढ़ा सकती है तथा प्राकृतिक अवरोधों को कम कर सकती है, जिससे तटीय कटाव और तूफानों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ सकती है।
- विकास दबाव: लचीले विनियमनों से शहरी (तटीय विनियमन क्षेत्र-II) और ग्रामीण (तटीय विनियमन क्षेत्र-III) क्षेत्रों में तेजी से शहरीकरण और वाणिज्यिक गतिविधियां बढ़ सकती हैं जिससे प्रदूषण, बुनियादी ढांचे और पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलन का खतरा हो सकता है।
- जलवायु संवेदनशीलता: सुरक्षात्मक क्षेत्रों में कमी के कारण केरल में जलवायु संबंधी प्रभाव जैसे समुद्र स्तर में वृद्धि, तूफानी लहरें और बाढ़ का खतरा बढ़ गया है जिसका घनी आबादी वाले तटीय क्षेत्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।
- स्थानीय आजीविका पर प्रभाव: विकास और पर्यटन का विस्तार पारंपरिक मछली पकड़ने और खेती करने वाले समुदायों को बाधित कर सकता है जिससे सामाजिक-आर्थिक विस्थापन और सांस्कृतिक क्षरण हो सकता है।
आगे की राह
- स्थानीय शासन और निगरानी तंत्र को मजबूत बनाना: विकास की प्रभावी निगरानी और तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना विनियमों को लागू करने के लिए स्थानीय निकायों को संसाधनों, प्रशिक्षण और प्रौद्योगिकी (जैसे- जीआईएस, उपग्रह निगरानी) उपलब्ध कराना ।
- मैंग्रोव और पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण में वृद्धि: मैंग्रोव पुनर्स्थापना परियोजनाओं को बढ़ावा देना तथा कटाव और तूफान के प्रभावों के खिलाफ प्राकृतिक अवरोधों को मजबूत करने हेतु निजी भूमि पर संरक्षण प्रयासों को प्रोत्साहित करना।
- एकीकृत अपशिष्ट प्रबंधन: प्रदूषण को कम करने के लिए तटीय अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को लागू करना विशेष रूप से पर्यटन और निर्माण स्थलों के लिए। नए विकास हेतु अपशिष्ट प्रबंधन व्यवस्था को अनिवार्य करना।
- सामुदायिक सहभागिता और जलवायु जागरूकता: कार्यशालाओं और मंचों के माध्यम से तटीय क्षेत्र प्रबंधन योजना में सामुदायिक भागीदारी बढ़ाना, सार्वजनिक समर्थन को बढ़ावा देना तथा दीर्धकालिक नीतियों और तटीय प्रबंधन के बारे में जागरूकता बढ़ाना।