संदर्भ:
हाल ही में, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने 18 राज्यों में शहरी स्थानीय निकायों के कामकाज में महत्वपूर्ण कमियों को उजागर किया है।
रिपोर्ट की मुख्य बातें
- राजकोषीय स्थिति के बारे में चिंताएं: शहरी स्थानीय निकायों (Urban Local Bodies-ULBs) के कुल राजस्व का केवल 32% ही उनके स्वयं स्रोतों से आता है, शेष धनराशि राज्य और केंद्र सरकारों से अनुदान के रूप में प्राप्त होती है।
इसके अतिरिक्त, 18 राज्यों में शहरी स्थानीय निकायों के राजस्व संसाधनों और व्यय के बीच 42% का अंतर है। - कार्मिकों की कमी: तेजी से बढ़ती शहरी आबादी के बावजूद, अधिकांश राज्यों में शहरी स्थानीय निकायों को कर्मचारियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
- महिलाओं के लिए आरक्षण: 14 राज्यों में से छह में नगर परिषद की 50% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं, जो कि 33% आरक्षण के संवैधानिक आदेश से अधिक है।
- वार्ड परिसीमन: 15 राज्यों में से केवल चार राज्यों हिमाचल प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र और तमिलनाडु ने अपने राज्य चुनाव आयोगों को वार्ड परिसीमन का अधिकार दिया है। शेष 11 राज्यों में यह जिम्मेदारी राज्य सरकारों के पास है।
- महापौर का प्रत्यक्ष चुनाव: महापौर का प्रत्यक्ष चुनाव केवल पांच राज्यों में आयोजित किया जाता है: छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, तमिलनाडु और उत्तराखंडकार्यों का हस्तांतरण: 18 राज्यों में 18 में से 17 कार्य संचालन शहरी स्थानीय निकायों को हस्तांतरित कर दिए गए हैं, जबकि केवल चार कार्य अर्थात कब्रिस्तानों का प्रबंधन, सार्वजनिक सुविधाओं का प्रावधान, पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम और बूचड़खानों का विनियमन को पूर्ण स्वायत्तता के साथ पूर्ण रूप से हस्तांतरित किया गया है। इसके अलावा, केवल नौ राज्यों (छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, ओडिशा, पंजाब और त्रिपुरा) ने सभी 18 कार्यों का हस्तांतरण किया है।
74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992
- यह 1 जून, 1993 को प्रभावी हुआ,जो संविधान के भाग IX A (नगरपालिकाओं) के तहत शामिल किया गया, जो नगर पालिकाओं से संबंधित मुद्दों से संबंधित है।
- इस अधिनियम ने शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया।
- 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के अनुच्छेद 243W ने राज्य विधानसभाओं को स्थानीय निकायों को आवश्यक शक्तियाँ और अधिकार प्रदान करने के लिए कानून बनाने हेतु अधिकृत किया, ताकि वे स्वशासन की संस्थाओं के रूप में कार्य कर सकें और शक्तियों और जिम्मेदारियों के हस्तांतरण हेतु प्रावधान कर सकें।
रिपोर्ट की मुख्य सिफारिशें
- धन का निर्गमन: राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शहरी स्थानीय निकायों को आवंटित अनुदान प्रभावी निगरानी तंत्र के माध्यम से पूर्ण रूप से और समय पर जारी किया जाए।
- आवश्यक परिवर्तन: हर पाँच साल में नगर निगम चुनाव कराना ज़रूरी है। यह अनियोजित शहरीकरण को प्रबंधित करने के लिए योजना समितियों की स्थापना भी करता है और राज्य वित्त आयोगों को वित्तीय प्रबंधन में सुधार पर ध्यान केंद्रित करने का अधिकार देता है।
- शक्तियों का हस्तांतरण: राज्य सरकारों को शहरी स्थानीय निकायों को आवश्यक कर्मचारियों के मूल्यांकन और भर्ती सहित जनशक्ति प्रबंधन पर पर्याप्त अधिकार प्रदान करने पर विचार करना चाहिए।
- वैज्ञानिक बजट: शहरी स्थानीय निकायों कोवैज्ञानिक तरीके से बजट तैयार करने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिसमें वित्तीय नियोजन और प्रबंधन को बढ़ाने के लिए उपलब्ध निधियों के यथार्थवादी अनुमानों को शामिल किया जाना चाहिए।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक
- नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षकभारत के संविधान के अनुच्छेद 148 के तहत एक स्वतंत्र प्राधिकरण है।
- वह भारतीय लेखापरीक्षा एवं लेखा विभाग के प्रमुख होते हैं।
- नियुक्ति: भारत के राष्ट्रपति द्वारा अपने हस्ताक्षर और मुहर सहित एक आदेश द्वारा नियुक्त किया जाता है और वे छह वर्ष की अवधि या 65 वर्ष की आयु तक पद पर बने रहते हैं।
- हटाने की प्रक्रिया : राष्ट्रपति द्वारा विशेष प्रक्रिया (जैसे- उच्चमत न्यायाके न्यायाधीश को हटाया जाता है) के तहत हटाया जा सकता है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को हटाने के लिए सिद्ध दुर्व्यवहार और अक्षमता के आधार पर विशेष बहुमत के साथ विधेयक की स्वीकृति होनी आवश्यक है।