संबंधित पाठ्यक्रम  

सामान्य अध्ययन-1: 18वीं सदी के लगभग मध्य से लेकर वर्तमान समय तक का आधुनिक भारतीय इतिहास–महत्त्वपूर्ण घटनाएँ, व्यक्तित्व, विषय। 

प्रसंग: 

भारत हर वर्ष 15 नवंबर को जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी और उपनिवेशवाद-विरोधी नेता बिरसा मुंडा की जयंती के स्मरण में जनजातीय गौरव दिवस मनाता है।

अन्य संबंधित जानकारी     

  • बिरसा मुंडा के वीरतापूर्ण साहस और पराक्रम के सम्मान में, भारत सरकार ने वर्ष 2021 में उनकी जयंती 15 नवंबर को “जनजातीय गौरव दिवस” के रूप में घोषित किया।
  • वर्ष 2024-25 को उनके जन्म के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में जनजातीय गौरव वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है।
  • जनजातीय कार्य मंत्रालय ब्रिटिश शासन के विरुद्ध विभिन्न जनजातीय आंदोलनों और विद्रोहों के इतिहास को संरक्षित करने हेतु 11 संग्रहालय स्थापित कर रहा है। साथ ही, आदि संस्कृति और आदि वाणी जैसी डिजिटल पहलों के माध्यम से जनजातीय संस्कृति व इतिहास के प्रसार को बढ़ावा दे रहा है।

बिरसा मुंडा

  • उन्हें “धरती आबा” अर्थात “धरती के पिता” के रूप में जाना जाता है।
  • उनका जन्म 15 नवंबर, 1875 को झारखंड के वर्तमान रांची शहर के पास उलिहातु गांव में हुआ था।
    • मुंडा समुदाय मूलतः खानाबदोश शिकारी थे, जो बाद में खेती करने लगे और आज के झारखंड के छोटानागपुर क्षेत्र में रहते थे।
  • बिरसा ने वर्ष 1886 में मात्र 12 वर्ष की आयु में ईसाई धर्म अपना लिया था, परन्तु बाद में उन्होंने औपनिवेशिक मिशनरियों के प्रभाव को अस्वीकार कर दिया।
  • वे लगातार यह देखते हुए बड़े हुए कि ब्रिटिश शासन के दौर में किस प्रकार जनजातियों का शोषण होता था और उनकी भूमि दिकुओं (बाहरी लोग जो उनका शोषण करते थे), ठिकदारोंजमींदारों और साहूकारों द्वारा हड़प ली जाती थी।
  • बाद में, उन्होंने बिरसाइत नामक एक नए संप्रदाय की स्थापना की और उनके अनुयायी उन्हें भगवान कहने लगे।
  • 1895 में अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उन पर दंगा फैलाने का आरोप लगाया और बाद में उन्हें दो साल के लिए जेल में डाल दिया।
  • उन्होंने “महारानी राज टुंडू जाना, अबुआ राज एते जाना” का नारा दिया अर्थात जनजातियों से ब्रिटिश शासन को समाप्त करने और अपना शासन (स्वशासन) बहाल करने का आह्वान किया।    
  • उन्होंने उलगुलान या “महाविद्रोह” (1899-1900) का नेतृत्व किया – यह जनजातीय स्वशासन और खूंटकट्टी(सामुदायिक भूमि अधिकार) की पुनर्स्थापना के लिए एक उग्र आंदोलन था। इसमें हथियारों और गुरिल्ला युद्ध का उपयोग किया गया था।
  • 3 मार्च, 1900 को चक्रधरपुर के जामकोपाई जंगल में मुंडा को उनकी जनजातीय गुरिल्ला सेना के साथ ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। बाद में, 9 जून, 1900 को 25 वर्ष की आयु में बीमारी के कारण रांची जेल में उनकी मृत्यु हो गई।
  • इस आंदोलन ने सरकार द्वारा बेगार प्रथा को निरस्त करने में भी योगदान दिया और इसके कारण काश्तकारी अधिनियम (1903) पारित हुआ, जिसने खूंटकट्टी प्रथा को मान्यता दी। बाद में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम (1908) ने जनजातीय भूमि को गैर-जनजातीय लोगों को देने पर प्रतिबंध लगा दिया।   

बिरसा मुंडा की विचारधारा

  • धरती आबा के रूप में प्रसिद्ध बिरसा मुंडा ने अबुआ राज” की परिकल्पना की थी – एक नैतिक, स्व-शासित समाज जो औपनिवेशिक प्रभाव से मुक्त हो।
  • उनका मानना था कि जनजातियों को अपनी पैतृक भूमि पर पूर्ण स्वामित्व बनाए रखना चाहिए तथा भूमि हस्तांतरण के सभी रूपों का विरोध करना चाहिए।
  • उन्होंने दिकुओंठिकदारोंजमींदारों और साहूकारों के शोषण का कड़ा प्रतिरोध किया और जनजातियों को आर्थिक उत्पीड़न से बचाने के लिए संघर्ष किया।
  • उन्होंने जनजातियों को अपनी सांस्कृतिक पहचान पर गर्व करने तथा अपने पारंपरिक रीति-रिवाजों और मूल्यों को संरक्षित करने के लिए लिए प्रेरित किया।
  • उन्होंने जनजातीय समाज में शराबखोरी और कर्ज़ में डूबने जैसी प्रवृत्तियों को हतोत्साहित किया, क्योंकि इससे समुदाय की सामूहिक शक्ति क्षीण होती थी।

Source:
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