संदर्भ:
हाल ही में, क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर के शोधकर्ताओं ने गंभीर हीमोफीलिया A के उपचार के लिए जीन थेरेपी का सफलतापूर्वक प्रयोग किया है।
अन्य संबंधित जानकारी
- अध्ययन के परिणाम न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन (NEJM) में प्रकाशित किये गये।
- यह परीक्षण क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर में आयोजित किया गया था और इसे केंद्रीय जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की गई थी।
हीमोफीलिया के बारे में
यह एक दुर्लभ विकार है, जिसमें रक्त सामान्य रूप से थक्का नहीं जमता, क्योंकि इसमें पर्याप्त मात्रा में रक्त का थक्का बनाने वाले प्रोटीन नहीं होते।
हीमोफीलिया के 3 मुख्य रूप हैं:
- हीमोफीलिया A: यह रक्त का थक्का बनाने वाले कारक VIII की कमी या निम्न स्तर के कारण होता है। यह हीमोफीलिया का सबसे आम प्रकार (क्लासिक) है।
- हीमोफीलिया B: यह रक्त का थक्का बनाने वाले फैक्टर IX की कमी या उसके निम्न स्तर के कारण होता है। इसे क्रिसमस रोग या फैक्टर IX की कमी भी कहा जाता है।
- हीमोफीलिया C: कुछ स्वास्थ्य सेवा प्रदाता इस शब्द का उपयोग थक्का बनाने वाले कारक XI की कमी को संदर्भित करने के लिए करते हैं । यह एक दुर्लभ स्थिति है।
हीमोफीलिया के उपचार के प्राथमिक दृष्टिकोण को रिप्लेसमेंट थेरेपी कहा जाता है। इस उपचार पद्धति में रक्तस्राव को रोकने के लिए नस में ‘क्लॉटिंग फैक्टर’ का सांद्रण इंजेक्ट किया जाता है।
थक्के बनाने वाले कारकों के साथ मुख्य चुनौती यह है कि शरीर के अपने एंटीबॉडीज, थक्के बनाने वाले कारक को सक्रिय होने से पहले ही नष्ट कर सकते हैं, जिससे रिप्लेसमेंट थेरेपी का पूरा विचार ही विफल हो जाता है।
हीमोफीलिया में जीन थेरेपी
इस चिकित्सा में एडेनोवायरस के स्थान पर लेन्टिवायरस का उपयोग वेक्टर के रूप में किया जाता है।
एडेनोवायरस संक्रमण आम है और कई लोगों में इसके प्रति एंटीबॉडीज मौजूद हैं, जो रॉक्टेवियन (एडेनोवायरस-आधारित जीन थेरेपी) जैसे उपचारों की प्रभावशीलता को कम कर सकता है।
लेन्टिवायरस संक्रमण कम कॉमन है, इसलिए कम लोगों में एंटीबॉडी होने की संभावना है, जिससे उपचार अधिक प्रभावी हो जाता है।
इस विधि में लेंटिवायरल वेक्टर का उपयोग करके वयस्क स्टेम कोशिकाओं में जीन स्थानांतरित किया जाता है, जो शरीर की कोशिकाओं के साथ एकीकृत हो जाता है।
- यह गैर-एकीकृत AAV वेक्टर का उपयोग करके यकृत कोशिकाओं में इन विवो स्थानांतरण से भिन्न है।
लेन्टिवायरस-आधारित दृष्टिकोण से बिना किसी दुष्प्रभाव के थक्के कारक का विश्वसनीय, आजीवन उत्पादन उपलब्ध होने की उम्मीद है।
स्टडी का महत्व
- लेन्टिवायरस का उपयोग करने वाली पद्धति को एडेनोवायरस-आधारित जीन थेरेपी की तुलना में अधिक सुरक्षित माना जाता है।
- यह विधि बच्चों के लिए जीन थेरेपी उपचार को सुलभ बना सकती है , क्योंकि यह अधिक सुरक्षित और प्रभावी है।
- अध्ययन से पता चलता है कि भारत जैसे संसाधन-सीमित वातावरण में भी उन्नत जीन थेरेपी अनुसंधान किया जा सकता है।
- भारत में जीन थेरेपी के विनिर्माण को स्थानीय बनाने की संभावना से उपचार लागत में कमी आ सकती है तथा भारत के भीतर और बाहर दोनों जगह जीन थेरेपी तक पहुंच में सुधार हो सकता है।
- यह सफलता यकृत के स्वास्थ्य और परिपक्वता जैसी चुनौतियों का समाधान कर सकती है, जो सफल उपचार के लिए महत्वपूर्ण हैं, तथा प्रतिरक्षादमनकारी चिकित्सा की आवश्यकता को समाप्त कर सकती है।
भारत में हीमोफीलिया
- प्रति 1,00,000 में 4 लोगों में हीमोफीलिया A की व्यापकता के आधार पर भारत में हीमोफीलिया के रोगियों की अनुमानित संख्या लगभग 50 हजार है। इस प्रकार, भारत में हीमोफीलिया A और B के 70,000 से अधिक रोगी हो सकते हैं।
- हीमोफीलिया एंड हेल्थ कलेक्टिव ऑफ नॉर्थ (HHCN) के अनुसार, भारत हीमोफीलिया के मामले दुनिया में दूसरे स्थान पर हैं।