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सामान्य अध्ययन-3: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी- विकास और अनुप्रयोग तथा रोजमर्रा के जीवन पर उनके प्रभाव।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ; देशज रूप से प्रौद्योगिकी का विकास और नई प्रौद्योगिकी का विकास।
संदर्भ: एक बड़ी सफलता हासिल करते हुए भारत की पहली सौर वेधशाला, आदित्य-L1 ने छह अमेरिकी उपग्रहों के साथ मिलकर यह पता लगाया है कि मई 2024 का सौर तूफान, जिसे ‘गैनन तूफान’ (Gannon’s storm) भी कहा जाता है, के असामान्य व्यवहार का क्या कारण था।
अध्ययन के मुख्य निष्कर्ष

- भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अनुसार, मई 2024 के सौर तूफान के दौरान, वैज्ञानिकों ने कुछ असामान्य स्थिति देखी। उन्होंने पाया कि सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र की रेखाएँ (जो सौर तूफान के भीतर मुड़ी हुई रस्सी जैसी होती हैं) तूफान के भीतर ही विखंडित और पुनर्संयोजित हो रही थीं।
- सामान्य परिस्थितियों में, एक कोरोनल मास इजेक्शन (CME) के साथ एक मुड़ी हुई “चुंबकीय रस्सी” सम्बद्ध होती है और जब यह पृथ्वी के नजदीक आती है, तो यह पृथ्वी के चुंबकीय कवच के साथ परस्पर क्रिया करती है।
- इस बार, स्थिति असामान्य थी। दो कोरोनल मास इजेक्शन (CME) अंतरिक्ष में आपस में टकरा गए और उन्होंने एक-दूसरे पर इतना अधिक दबाव डाला कि उनमें से एक CME के भीतर ही चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ विखंडित हो गईं और नए सिरे से फिर से जुड़ गईं| इस प्रक्रिया को चुंबकीय पुनर्संयोजन कहा जाता है।
- उपग्रहों ने यह भी पता लगाया कि कणों की गति एकाएक बढ़ रही थी, जो उनकी ऊर्जा में वृद्धि का संकेत देता है और चुंबकीय पुनर्संयोजन की परिघटना की पुष्टि करता है।
- अध्ययन में एक महत्वपूर्ण खोज यह रही कि कोरोनल मास इजेक्शन (CME) का वह क्षेत्र जहाँ चुंबकीय क्षेत्र विखंडित होकर पुनर्संयोजित हो रहा था, वह अत्यधिक विशाल था अर्थात पृथ्वी के आकार का लगभग 100 गुना था। यह एक अभूतपूर्व अवलोकन था, क्योंकि किसी CME के आंतरिक भाग में पहली बार इतने बड़े पैमाने पर चुंबकीय क्षेत्रों में विखंडन और पुनर्संयोजन देखा गया।

निष्कर्षों का महत्त्व
- एक से अधिक अवलोकन: पहली बार, शोधकर्ता अंतरिक्ष में कई प्रेक्षण बिंदुओं से एक ही चरम सौर तूफान का अध्ययन कर सके।
- सौर तूफान के बारे में जानकारी: इस खोज से यह बेहतर तरीके से समझा जा सकता है कि सौर तूफान, सूर्य से पृथ्वी की ओर यात्रा करते समय कैसे विकसित होते हैं और तीव्र होते हैं, और इससे अंतरिक्ष-मौसम गतिकी के मॉडलों में सुधार होगा।
- विशिष्ट क्लब में भारत का प्रवेश: आदित्य-L1 का योगदान वैश्विक अंतरिक्ष विज्ञान और सूर्यभौतिकी (Heliophysics) अनुसंधान में भारत के बढ़ते नेतृत्व को दर्शाता है।
आदित्य-L1के बारे में
- आदित्य-L1, सूर्य का अध्ययन करने वाला भारत का पहला अंतरिक्ष-आधारित मिशन है।
इस अंतरिक्ष यान को सूर्य-पृथ्वी प्रणाली के ‘लैंग्रेंज बिंदु 1 (L1)’ के चारों ओर एक ‘हेलो कक्षा’ (Halo Orbit) में रखा गया है। L1 पृथ्वी से लगभग 1.5 मिलियन किलोमीटर दूर है।
- लैग्रेंज बिंदु अंतरिक्ष में वे विशिष्ट स्थान होते हैं जहाँ दो बड़े परिक्रमा करने वाले पिंडों (जैसे सूर्य और पृथ्वी) का संयुक्त गुरुत्वाकर्षण बल और अपकेन्द्री बल एक-दूसरे को संतुलित कर देते हैं। इस संतुलन के कारण गुरुत्वाकर्षण स्थिरता बनी रहती है। नतीजतन, इन बिंदुओं पर रखे गए अंतरिक्ष यान को अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए बार-बार अपनी कक्षा बदलने की आवश्यकता नहीं होती है|
- किसी भी दो-पिंड प्रणाली के लिए कुल पाँच लैग्रेंज बिंदु (L1 से L5) होते हैं।
- आदित्य-L1 में 7 अलग-अलग पेलोड हैं जिन्हें स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है।
- विशेष प्रेक्षण बिंदु L1 का उपयोग करते हुए, चार पेलोड सीधे सूर्य का अवलोकन करते हैं, और शेष तीन पेलोड लैग्रेंज बिंदु L1 पर कणों और क्षेत्रों का स्वस्थाने अध्ययन करते हैं।
- इस प्रकार, अंतरग्रहीय माध्यम में सौर गतिकी के संचरण सम्बन्धी प्रभाव (Propagatory Effect) का वैज्ञानिक अध्ययन किया जा सकता है।
