संदर्भ:

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने आनुवंशिक रूप से संशोधित (GM) सरसों के “पर्यावरणीय रीलीज” की अनुमति देने के लिए दी गई सशर्त मंजूरी की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर विभाजित फैसला सुनाया।

फैसले के मुख्य निष्कर्ष 

न्यायमूर्ति नागरत्ना द्वारा दिया गया फैसला

  • स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लंघन: जीएम सरसों की अनुमोदन प्रक्रिया को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन माना गया, जो स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार की गारंटी देता है।
  • एहतियाती सिद्धांत की अवहेलना: न्यायमूर्ति नागरत्ना ने एहतियाती सिद्धांत का पालन करने में विफल रहने के लिए सरकार की आलोचना की, जो संभावित खतरनाक प्रौद्योगिकियों को प्रदर्शित करने से पहले संपूर्ण जोखिम मूल्यांकन को अनिवार्य करता है।
  • अपर्याप्त वैज्ञानिक आधार: जीएम सरसों को मंजूरी देने का निर्णय मुख्यतः विदेशी शोध पर आधारित पाया गया, जिसमें भारत की विशिष्ट कृषि -पारिस्थितिक स्थितियों पर पर्याप्त विचार नहीं किया गया था।
  • व्यापक मूल्यांकन का अभाव: अनुमोदन प्रक्रिया सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरण और भावी पीढ़ियों पर संभावित प्रभावों का पर्याप्त आकलन करने में विफल रही।

मामले की पृष्ठभूमि

  • सितंबर 2015 में, दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर जेनेटिक मैनिपुलेशन ऑफ क्रॉप प्लांट्स (CGMCP) ने आनुवंशिक रूप से इंजीनियर संकर सरसों – धारा मस्टर्ड हाइब्रिड -11 (DMH-11) के पर्यावरणीय रिलीज के लिए जीईएसी की मंजूरी मांगी।
  • मई 2017 में, GEAC ने GM सरसों को पर्यावरण के अनुकूल बनाने की सिफारिश की थी।
  • हालाँकि, कई अभ्यावेदन प्राप्त होने के बाद, पर्यावरण मंत्रालय ने मार्च 2018 में प्रस्ताव को पुनः परीक्षण के लिए GEAC को वापस भेज दिया।
  • विषाक्तता, एलर्जी, फील्ड ट्रायल और पर्यावरण सुरक्षा अध्ययनों पर सभी आंकड़ों का अध्ययन करने के बाद, GEAC ने अक्टूबर 2022 में GM सरसों को पर्यावरणीय रीलीज करने की सिफारिश की, जिसे केंद्र सरकार ने स्वीकार किया।
  • हालाँकि, पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का हवाला देते हुए जी.एम. मुक्त भारत गठबंधन (विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों, किसानों और कार्यकर्ताओं के गठबंधन) द्वारा इस अनुमोदन को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई।

न्यायमूर्ति संजय करोल द्वारा दिया गया फैसला

  • विनियामक निकाय को कायम रखना लेकिन स्वतंत्र मूल्यांकन पर जोर देना
    न्यायमूर्ति करोल ने कहा कि GEAC की प्रक्रिया “स्वतंत्र” और “तर्कसंगत” थी। उन्होंने यह भी कहा कि पर्यावरणीय रीलीज और उसके बाद की जाँच और परीक्षण “वैज्ञानिक मनोवृत्ति के विकास” के अनुरूप थे और इस दौरान एहतियाती सिद्धांत का पालन किया गया था।

सामान्य अनुशंसाएँ

  • राष्ट्रीय नीति और सार्वजनिक भागीदारी: न्यायालय ने GM फसलों पर एक व्यापक राष्ट्रीय नीति विकसित करने, जिसमें सार्वजनिक परामर्श भी शामिल हो, के दिशा निर्देश दिए।  इस नीति में विविध दृष्टिकोणों को शामिल किया जाना चाहिए और जीएम प्रौद्योगिकियों का कठोर मूल्यांकन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • पारदर्शिता और अनुपालन: न्यायालय ने सभी प्रासंगिक अध्ययनों को सार्वजनिक रूप से सुलभ बनाए जाने का निर्देश दिया और हितों के टकराव को प्रबंधित करने के लिए वैधानिक नियमों के बेहतर क्रियान्वयन के लिए कहा। न्यायालय ने खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 की धारा 23 के अनुपालन पर भी जोर दिया।
    धारा 23 मुख्य रूप से खाद्य उत्पादों की पैकेजिंग और लेबलिंग से संबंधित है । इसमें खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग तथा लेबल पर जानकारी प्रदर्शित के लिए विशिष्ट मानक निर्धारित किए गए हैं।

GM सरसों के बारे में

  • जीएम सरसों आनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीकों के माध्यम से विकसित सरसों की आनुवंशिक रूप से संशोधित किस्म को संदर्भित करती है।
  • विशेष रूप से, इसमें सरसों के संकर उत्पादन के लिए बार्नेस-बारस्टार जीन प्रणाली का उपयोग शामिल है।
  • इस तकनीक का उद्देश्य सरसों की स्व-परागण प्रकृति पर काबू पाना तथा उच्च उपज देने वाली संकर किस्मों के निर्माण को सुगम बनाना है।
  • बैसिलस थुरिंजिएंसिस कपास (या बीटी कपास) को 2002 में पेश किया गया था और यह भारत में एकमात्र स्वीकृत व्यावसायिक GM फसल है।

जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC)

  • GEAC भारत में आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (जीएमओ) से संबंधित गतिविधियों को विनियमित करने के लिए जिम्मेदार शीर्ष निकाय है।
  • इसकी स्थापना पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत अधिसूचित “खतरनाक सूक्ष्म जीवों / आनुवंशिक रूप से इंजीनियर जीवों या कोशिकाओं के निर्माण, उपयोग / आयात / निर्यात और भंडारण के नियमों” के तहत की गई थी।

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