संदर्भ:
हाल ही में, मद्रास उच्च न्यायालय ने एक निर्णय में कहा है कि सहकारी समितियाँ सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 के दायरे में नहीं आती हैं।
सहकारी समिति क्या है?
- सहकारी समिति व्यक्तियों द्वारा मिलकर काम करने तथा आपसी सहयोग के माध्यम से अपने आर्थिक हितों को आगे बढ़ाने हेतु गठित एक स्वैच्छिक समूह है।
- इसमें समाज के सदस्य सामूहिक लाभ के उद्देश्य से संसाधनों को एकत्रित करते हैं तथा यह सुनिश्चित करते हैं कि सभी को लाभ प्राप्त हो।
पृष्ठभूमि
- ‘माधनम प्राथमिक कृषि सहकारी ऋण सोसायटी’ (Madhanam Primary Agriculture Cooperative Credit Society) के एक सदस्य ने यह साबित करने हेतु सूचना माँगी थी कि सोसायटी ने जाली संपत्ति दस्तावेजों के आधार पर बड़ी संख्या में फसल ऋण प्रदान किए थे तथा बाद में राज्य सरकार द्वारा गरीब किसानों की सहायता प्रदान करने हेतु लिए गए निर्णयों के आधार पर उन ऋणों को माफ कर दिया था।
- हालाँकि, संतोषजनक जवाब नहीं मिलने पर उन्होंने आरटीआई अधिनियम के तहत तमिलनाडु सूचना आयोग (Tamil Nadu Information Commission-TNIC) में अपील दायर की।
- मई, 2022 में, तमिलनाडु सूचना आयोग (TNIC) ने अपने निर्णय में सहकारी समिति को याचिकाकर्ता द्वारा माँगे गए सभी विवरण प्रदान करने का निर्देश दिया।
- इसके बाद सहकारी समिति ने टीएनआईसी के निर्देशात्मक आदेश को मद्रास उच्च न्यायालय में चुनौती दी।
भारत में सहकारी समितियों की स्थिति
- 97वें संविधान संशोधन अधिनियम 2011 के माध्यम से सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा और संरक्षण प्रदान किया गया।
- अनुच्छेद 19(1)(c) सहकारी समितियों के गठन का मौलिक अधिकार प्रदान करता है।
- सहकारी समितियों को प्रोत्साहित करने वाले राज्य के नीति-निर्देशक तत्व में संविधान के भाग IV में अनुच्छेद 43B को जोड़ा गया।
- सहकारी समितियों के निगमन, विनियमन और समापन के प्रावधानों के साथ भाग IX B में ‘सहकारी समितियाँ’ को शामिल किया गया था।
- भारतीय राष्ट्रीय सहकारी संघ (NCUI) और राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC) भारत में सहकारी संगठनों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
भारत में सहकारी समितियों के कामकाज को निम्नलिखित विधि यानी कानून द्वारा नियंत्रित किया जाता हैं:
- अलग-अलग राज्यों हेतु राज्य सहकारी समिति अधिनियम।
- बहुराज्य सहकारी सोसाइटी अधिनियम, 2002 एक से अधिक राज्यों में संचालित बहु-राज्य सहकारी समितियों को नियंत्रित करता है।
मद्रास उच्च न्यायालय का निर्णय
- मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सूचना आयोग (TNIC) के उस निर्देश को खारिज कर दिया, जिसमें ‘ माधनम प्राथमिक कृषि सहकारी ऋण सोसायटी’ को वर्ष 2015 से लेकर वर्ष 2021 तक फसल ऋण वितरण और सोसायटी के जेवेल ऋण (Jewel Loan) माफी के लाभार्थियों की सूची के बारे में जानकारी देने को कहा गया था।
- उच्च न्यायालय ने माना कि सहकारी समिति एक स्वायत्त निकाय है, न कि आरटीआई अधिनियम की धारा 2(एच) के तहत परिभाषित सार्वजनिक प्राधिकरण है, तथा यह आरटीआई अधिनियम, 2005 से बाध्य नहीं है।
- उच्च न्यायालय ने इस तथ्य से सहमत हुई कि सहकारी समिति सार्वजनिक कार्य करने वाली कोई सांविधिक निकाय नहीं है, इसलिए यह संविधान के अनुच्छेद 12 के तहत परिभाषित ‘राज्य’ की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आती है।
- उच्च न्यायालय ने ‘थलप्पलम (Thalappalam) सर्विस को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड एवं अन्य बनाम केरल राज्य एवं अन्य’ (2013) मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय को मान्यता दिया, जिसमें कहा गया था कि सहकारी समिति आरटीआई अधिनियम के अंतर्गत नहीं आती है।