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सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2: विभिन्न घटकों के बीच शक्तियों का पृथक्करण, विवाद निवारण तंत्र तथा संस्थान।
संदर्भ:
हाल ही में, नंदिनी सुंदर बनाम छत्तीसगढ़ राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि उसके आदेश के बाद छत्तीसगढ़ द्वारा पारित कानून, न्यायालय की अवमानना नहीं है।
अन्य संबंधित जानकारी
- सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि कोई राज्य विधायिका न्यायालय के आदेश के बाद कोई कानून बनाती है, तो यह न्यायालय की अवमानना नहीं है, जब तक कि वह कानून अपने संवैधानिक प्राधिकार के दायरे में है और मौजूदा निर्णयों का उल्लंघन नहीं करता है। यह निर्णय विधानमंडलों द्वारा बनाए गए कानूनों पर न्यायालय की समीक्षा की सीमाओं को दर्शाता है।
- इसने इस विचार के प्रति समर्थन प्रदर्शित किया कि भारतीय लोकतंत्र में सरकार की विभिन्न शाखाओं को एक-दूसरे की भूमिकाओं का सम्मान करना चाहिए।
मामले की पृष्ठभूमि

- 2011 में सर्वोच्च न्यायालय ने छत्तीसगढ़ को विशेष पुलिस अधिकारियों (SPOs) का प्रयोग बंद करने तथा उनके सभी हथियार वापस लेने का आदेश दिया।
- इसने राज्य से सलवा जुडूम और कोया कमांडो जैसे समूहों को रोकने के लिए कहा और केंद्र सरकार से माओवादी विरोधी गतिविधियों के लिए विशेष पुलिस अधिकारियों भर्ती के वित्तपोषण को बंद करने का आदेश दिया।
- न्यायालय ने कहा कि बेहतर तरीके से प्रशिक्षित न होने और कम वेतन वाले विशेष पुलिस अधिकारियों का उपयोग करना समाता के अधिकार (अनुच्छेद 14) और जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन है।
छत्तीसगढ़ की विधायी प्रतिक्रिया
- सर्वोच्च न्यायालय के 2011 के आदेश के बाद, छत्तीसगढ़ ने माओवादी हिंसा से लड़ने में नियमित सुरक्षा बलों की सहायता के लिए सहायक सशस्त्र पुलिस बल के गठन हेतु एक नया कानून पारित किया।
- कानून में कहा गया है कि सहायक बल के सदस्यों को कम से कम छह महीने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए और उन्हें अग्रिम मोर्चे पर लड़ाई (front-line combat) के लिए नहीं भेजा जा सकता।
• उन्हें नियमित बलों की निगरानी में काम करना होगा। केवल योग्य एसपीओ का चयन स्क्रीनिंग प्रक्रिया के माध्यम से किया जाएगा।
- धारा 4(1) सहायक बलों को केवल गैर-सीमावर्ती भूमिकाओं में नियमित सुरक्षा बलों की सहायता करने के लिए अधिकृत करती है, जिससे उन्हें सीधे युद्ध में तैनात होने से रोका जा सके।
- धारा 5(2) इस प्रकार इसकी पुष्टि करती है कि सहायक कर्मियों को अग्रिम पंक्ति की स्थिति में नहीं रखा जाना चाहिए और उन्हें निगरानी के तहत काम करना चाहिए।
• याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह कानून सर्वोच्च न्यायालय के मूल आदेश के विरुद्ध है और दावा किया कि यह न्यायालय की अवमानना है।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नलिखित आधारों पर अवमानना के आरोपों को खारिज कर दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि छत्तीसगढ़ ने उसके सभी पूर्व निर्देशों का पालन किया है और आवश्यक रिपोर्ट प्रस्तुत की है।
- न्यायालय ने स्पष्ट किया कि राज्य विधानमंडल को कानून बनाने का पूरा अधिकार है, बशर्ते वे संविधान का पालन करें। नया कानून बनाना न्यायालय की अवमानना नहीं है।
- इंडियन एल्युमिनियम कंपनी बनाम केरल राज्य मामले का हवाला देते हुए न्यायालय ने कहा कि कानूनों को केवल तभी चुनौती दी जा सकती है, जब वे संविधान का उल्लंघन करते हों या विधानमंडल की शक्तियों के दायरे में न आते हों।
- यह विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच शक्तियों के पृथक्करण को बनाए रखता है।
मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:
शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत राज्य के तीनों अंगों के बीच संवैधानिक संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। छत्तीसगढ़ सहायक पुलिस मामले में सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियों के आलोक में, विधायी कार्रवाई पर न्यायिक समीक्षा की सीमाओं का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए|(15 अंक,250शब्द)