संदर्भ:
केंद्रीय गृह मंत्री ने हाल ही में राज्यसभा में कहा कि सत्तारूढ़ पार्टी अपने द्वारा शासित प्रत्येक राज्य में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करेगी।
अन्य संबंधित जानकारी
- गृह मंत्री ने उत्तराखंड सरकार द्वारा राज्य में समान नागरिक संहिता लागू करने की पहल को एक मॉडल के रूप में बताया।
- उन्होंने तर्क दिया कि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में सभी धार्मिक समुदायों के लिए एक समान कानून होना चाहिए।
समान नागरिक संहिता (UCC) क्या है?
- UCC का तात्पर्य भारत के लिए एक कानून के निर्माण से है, जो विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने जैसे मामलों में सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होगा।
- अनुच्छेद 44 में कहा गया है: “राज्य भारत के सम्पूर्ण क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।”
- अनुच्छेद 44 राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (भाग IV) के अंतर्गत आता है जिसके प्रावधान गैर-न्यायोचित हैं , अर्थात, न्यायालय द्वारा लागू नहीं किए जा सकते हैं।
भारत में समान नागरिक संहिता की वर्तमान स्थिति
वर्तमान में गोवा भारत का एकमात्र राज्य है,जहाँ समान नागरिक संहिता लागू है।
- गोवा नागरिक संहिता की उत्पत्ति पुर्तगाली नागरिक संहिता 1867 से हुई।
उत्तराखंड विधानसभा ने फरवरी , 2024 में समान नागरिक संहिता (UCC ) 2024 विधेयक पारित किया।
- स्वतंत्रता के बाद समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला भारतीय राज्य बन जाएगा ।
- हालाँकि, कानून आदिवासी समुदायों को इसके दायरे से छूट देता है।
UCC से संबंधित मामले
- शाह बानो केस (1985): सर्वोच्च न्यायालय ने CrPC की धारा 125 के तहत मुस्लिम महिला के भरण-पोषण के अधिकार को बरकरार रखा। इसने खेद व्यक्त किया कि अनुच्छेद 44 एक ‘मृत पत्र’ बना हुआ है और सरकार से समान नागरिक संहिता लाने का आह्वान किया।
- सरला मुद्गल केस (1995): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 44 धर्म और पर्सनल लॉ के बीच अंतर के विचार पर आधारित है, और इसलिए समान नागरिक संहिता अनुच्छेद 25, 26 और 27 द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं करती है।
- शबनम हाशमी केस (2014): सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह किसी भी धर्म का हो, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 के तहत बच्चे को गोद ले सकता है।
- शायरा बानो मामला (2017): सर्वोच्च न्यायालय ने तीन तलाक की प्रथा को असंवैधानिक घोषित किया और समान नागरिक संहिता पर बहस को फिर से छेड़ दिया।