संदर्भ:

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission – NHRC) ने संस्तुति किया है कि भारत के सभी राज्य एक “मानव तस्करी-रोधी नोडल अधिकारी” नियुक्त करें।

अन्य संबंधित जानकारी

  • यह नोडल अधिकारी राज्य सरकार के सचिव या पुलिस महानिरीक्षक स्तर से नीचे का नहीं होना चाहिए।
  • यह संस्तुति मानव तस्करी, विशेषकर यौन शोषण (Sexual Exploitation) हेतु, के प्रचलन को देखते हुए की गई है।
  • इस खतरे को रोकने हेतु, आयोग ने संस्तुति की है कि सभी राज्यों में एक मानव तस्करी-रोधी नोडल अधिकारी हो, जो जिला मानव तस्करी-रोधी इकाइयों (District Anti-Human Trafficking Units – DAHTUs) के माध्यम से प्रभावी कदम और उपाय के माध्यम से सरकार के साथ समन्वय स्थापित करेगा।
  • आयोग ने यह भी कहा है कि जिला मानव तस्करी-रोधी इकाइयों (DAHTUs) का नेतृत्व एक राजपत्रित अधिकारी द्वारा किया जाना चाहिए, जो उप-पुलिस अधीक्षक (DEPUTY SUPERINTENDENT OF POLICE) के स्तर से नीचे का न हो।

भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) 

यह मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत वर्ष 1993 में स्थापित एक सांविधिक निकाय है। 

  • कार्य: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) भारत में मानवाधिकारों के लिए एक निगरानी संस्था के रूप में कार्य करता है। यह राज्य और गैर-राज्य दोनों प्रकार के संस्थाओं के द्वारा की गई मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों की जाँच करता है।

जिला मानव तस्करी-रोधी इकाइयाँ (DAHTUs) 

  • जिला मानव तस्करी विरोधी इकाइयाँ (DAHTUs) भारत में जिला स्तर पर मानव तस्करी संबंधी कृत्यों के रोकथाम हेतु स्थापित विशेष पुलिस इकाइयाँ हैं।
  • इसे केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा अधिसूचित एक व्यापक योजना के तहत स्थापित किया गया था।

वित्तपोषण:

  • भारत सरकार दिल्ली सामूहिक बलात्कार (गैंगरेप) पीड़िता के नाम पर “निर्भया फंड” के तहत जिला मानव तस्करी विरोधी इकाइयों (DAHTUs) की स्थापना और इसके सुदृढ़ीकरण के लिए राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है।  

नोडल अधिकारियों का महत्व  

  • बेहतर समन्वय: समर्पित नोडल अधिकारी मानव तस्करी के रोकथाम से संबद्ध विभिन्न सरकारी विभागों के बीच बेहतर समन्वय की सुविधा प्रदान करेंगे।
  • केंद्रीकृत प्रयास: नोडल अधिकारी राज्य स्तर पर तस्करी के रोकथाम हेतु एक केंद्रीकृत संपर्क पॉइंट स्थापित करेंगे।

अपेक्षित फायदे:

  • रोकथाम संबंधी प्रक्रिया में तेजी: तस्करी-रोधी कानूनों और नीतियों का अधिक प्रभावी क्रियान्वयन होने की संभावना है।
  • पीड़ितों के बचाव प्रक्रिया में सुधार: तस्करी की घटनाओं पर त्वरित कार्यवाही करने और बेहतर ढंग से पीड़ितों की पहचान करने में मदद मिलेगी।
  • पुनर्वास प्रक्रिया में सुधार: बचाए गए पीड़ितों के लिए सुव्यवस्थित समर्थन, जिसमें चिकित्सा देखभाल, कानूनी सहायता और पुनर्वास कार्यक्रम शामिल हैं, में मदद मिलेगी।

विचारणीय चुनौतियाँ:

  • क्रियान्वयन: यह सुनिश्चित करना कि सभी राज्य प्रभावी रूप से नोडल अधिकारियों की नियुक्ति करें और उन्हें सशक्त बनाये।
  • संसाधन की कमी: नोडल अधिकारियों को कुशलतापूर्वक कार्य करने के लिए पर्याप्त संसाधन (प्रशिक्षण, स्टाफ, बजट) उपलब्ध कराना।

भारत में मानव तस्करी विरोधी पहल

  • मानव तस्करी की रोकथाम हेतु राष्ट्रीय कार्य योजना (2016): यह सरकारी योजना रोकथाम, बचाव और पुनर्वास के लिए रणनीतियों की रूपरेखा तैयार करती है। यह कानून-प्रवर्तन, पीड़ितों की सहायता, जागरूकता अभियान और अंतर-सरकारी सहयोग पर केंद्रित है।
  • अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956: यौन तस्करी के विरुद्ध भारत का प्राथमिक कानून अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956 है, जो वेश्यालय चलाने और वेश्यावृत्ति से लाभ कमाने जैसे कृत्यों को अपराध मानता है।
  • सम्मेलन: भारत क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों समझौतों के माध्यम से मानव तस्करी से निपटता है। इसने वेश्यावृत्ति के लिए महिलाओं और बच्चों पर केंद्रित SAARC सम्मेलन और व्यापक संगठित अपराध सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र के तस्करी-रोधी प्रोटोकॉल की पुष्टि की है।
  • तस्करी-रोधी प्रकोष्ठ: इसे राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर तस्करी-रोधी प्रयासों के समन्वय हेतु गृह मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा स्थापित किया गया है।
  • उज्ज्वला स्कीम (Ujjawala Scheme): यह पीड़ितों की सहायता के लिए केंद्र सरकार की एक योजना है, जो बचाए गए पीड़ितों को वित्तीय और विधिक सहायता के साथ-साथ आश्रय प्रदान करती है।
  • केंद्रीय सलाहकार समिति: तस्करी-रोधी नीतियों को तैयार करने और उसके क्रियान्वयन पर सरकार को सलाह देती है।

Also Read:

WSIS+20 फोरम और ‘AI फॉर गुड’ वैश्विक शिखर सम्मेलन

Shares: