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सामान्य अध्ययन2: भारतीय संविधान—ऐतिहासक पृष्ठभूमि, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्वपूर्ण प्रावधान और मूल ढाँचा।
सामान्य अध्ययन 3: समावेशी विकास और इससे संबंधित विषय।
संदर्भ: हाल ही में, राज्यसभा ने “सबका बीमा सबकी रक्षा (बीमा कानून संशोधन) विधेयक, 2025” पारित किया है, जिसका उद्देश्य बीमा उद्योग का आधुनिकीकरण करना और “2047 तक सभी के लिए बीमा” के लक्ष्य को प्राप्त करना है।
अन्य संबंधित जानकारी
- यह विधेयक 16 दिसंबर, 2025 को लोकसभा में पेश किया गया था। इसका उद्देश्य बीमा अधिनियम, 1938, भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) अधिनियम, 1956 और भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI) अधिनियम, 1999 में संशोधन करना है।
- इस विधेयक का लक्ष्य व्यापार सुगमता में सुधार करना, वैश्विक पूंजी को आकर्षित करना, पॉलिसीधारकों का संरक्षण करना और बीमा तक पहुंच का विस्तार करना है।
- “2047 तक सभी के लिए बीमा” IRDAI का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य है। IRDAI को 2023 में लॉन्च किया गया था।
सबका बीमा सबकी रक्षा विधेयक, 2025की मुख्य विशेषताएँ
- इस विधेयक के माध्यम से भारतीय बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अधिकतम सीमा को चुकता इक्विटी पूंजी के 74% से बढ़ाकर 100% करने का प्रावधान किया गया है।
- चुकता पूँजी उस इक्विटी पूंजी को संदर्भित करती है जो शेयरधारकों द्वारा पूरी तरह भुगतान की जा चुकी होती है, और जो उन्हें स्वामित्व हित (Ownership Interest) के बदले में प्राप्त होती है।
- यह पुनर्बीमा (Re-insurance) व्यवसाय में संलग्न विदेशी संस्थाओं के लिएशुद्ध-स्वामित्व निधि की आवश्यकता को₹5,000 करोड़ से घटाकर ₹1,000 करोड़ करता है।
- बीमा अधिनियम, 1938 के तहत, बीमा व्यवसाय में संलग्न कोई सार्वजनिक कंपनी अपने शेयरों के हस्तांतरण को केवल IRDAI के अनुमोदन के बाद ही पंजीकृत कर सकती है।
- बीमा व्यवसाय से तात्पर्य बीमा अनुबंधों के निष्पादन तथा केंद्र सरकार द्वारा प्राधिकरण से परामर्श करके अधिसूचित किए गए अन्य किसी अनुबंध से है।IRDAI से पंजीकरण का अनुमोदन उन सभी मामलों में लेना आवश्यक होता है जिनमें हस्तांतरित किए जाने वाले शेयरों का मूल्य, बीमाकर्ता की चुकता शेयर पूंजी (Paid-up Share Capital) के 1% से अधिक हो।
- यह विधेयक इस सीमा को बढ़ाकर बीमाकर्ता की चुकता शेयर पूंजी के 5% तक करने का प्रस्ताव करता है।
- यह विधेयक बीमा सहकारी समिति की परिभाषा में संशोधन करता है ताकि जीवन, सामान्य और स्वास्थ्य बीमा व्यवसायों के लिए 100 करोड़ रुपये की न्यूनतम चुकता शेयर पूंजी की अनिवार्यता को समाप्त किया जा सके।
- बीमा सहकारी समिति से तात्पर्य ऐसे बीमाकर्ता से है जो एक सहकारी समिति के रूप में बीमा (संशोधन) अधिनियम, 2002 के प्रारंभ के बाद गठित और पंजीकृत की गई हो।
- यह विधेयक केंद्र सरकार के अधिकारों का दायरा बढ़ाता है। अब सरकार न केवल विशेष आर्थिक क्षेत्रों (SEZs) के लिए, बल्कि अन्य बीमाकर्ताओं के लिए भी नियमों में ढील देने, बदलाव करने या उन्हें परिस्थितियों के अनुसार समायोजित करने के लिए स्वतंत्र होगी।
- यह विशेष आर्थिक क्षेत्र के भीतर स्थित अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्रों (IFSCs) में कार्यरत संस्थाओं के लिए भी है, और ये शक्तियाँ दोनों क्षेत्रों में काम करने वाले बीमा मध्यस्थों पर लागू होती है।
- विधेयक मध्यस्थों की परिभाषा का विस्तार करता है और इसमें ब्रोकरों, बीमा सलाहकारों और थर्ड-पार्टी एडमिनिस्ट्रेटर (TPA) के अलावा, मैनेजिंग जनरल एजेंटों और बीमा रिपॉजिटरी को भी शामिल किया गया है।
- यह विधेयक ‘पॉलिसीधारक शिक्षा और संरक्षण कोष’ के गठन का प्रावधान करता है, जिसका संचालन IRDAI द्वारा किया जाएगा।
- IRDAI की प्रवर्तन शक्तियों का और अधिक विस्तार किया जा रहा है, जिससे अब प्राधिकरण के पास बीमाकर्ताओं या बिचौलियों द्वारा अनुचित रूप से अर्जित धन को वसूलने का अधिकार होगा।
- यह IRDAI को किसी बीमा कंपनी के निदेशक मंडल का अतिक्रमण करने की शक्ति भी देता है, जहाँ वह एक प्रशासक की नियुक्ति कर सकता है।
भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (IRDAI)के बारे में
- IRDAI एक स्वायत्त सांविधिक निकाय है, जिसकी स्थापना भारत में बीमा क्षेत्र के समग्र पर्यवेक्षण और विकास के लिए बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1999 के तहत की गई है।
- इसका गठन भारत में बीमा क्षेत्र की देखरेख और विकास के लिए मल्होत्रा समिति (1994) की सिफारिशों के बाद किया गया था।
- प्राधिकरण की शक्तियों और कार्यों का उल्लेख IRDA अधिनियम, 1999 और बीमा अधिनियम, 1938 में है।
- इसका मुख्यालय हैदराबाद, भारत में स्थित है।
