संबंधित पाठ्यक्रम:
सामान्य अध्ययन 3: सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा चुनौतियाँ और उनका प्रबंधन; संगठित अपराध का आतंकवाद के साथ संबंध।
संदर्भ:
हाल ही में गृह मंत्रालय, मणिपुर सरकार और 24 कुकी-ज़ो विद्रोही समूहों के बीच संशोधित सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन्स समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।
अन्य संबंधित जानकारी:
- सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन्स को पहली बार 2005 में पेश किया गया था। इस पर अगस्त 2008 में तत्कालीन केंद्र सरकार और मणिपुर सरकार द्वारा कुकी-ज़ो विद्रोही समूहों के साथ हस्ताक्षर किए गए थे तथा 28 फरवरी, 2024 तक प्रतिवर्ष इसका नवीनीकरण किया जा रहा था, परन्तु उसके बाद नवीनीकरण प्रक्रिया को स्थगित कर दिया गया।
- सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन्स समझौते के स्थगन को लेकर केंद्र सरकार का कहना है कि समूह के कार्यकर्ता मणिपुर के नृजातीय संघर्षों में शामिल है और उन्होंने ग्राम रक्षा स्वयंसेवकों को प्रशिक्षण प्रदान किया था जबकि समूह ने इस आरोप का खंडन किया है।
सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन्स (SoO) समझौते में प्रमुख बदलाव

- शिविरों का स्थानांतरण: नए समझौते के अनुसार, राजमार्गों, आबादी वाले क्षेत्रों या संघर्ष क्षेत्रों के पास स्थित शिविरों को स्थानांतरित किया जाएगा ताकि उन्हें सीमाओं और संवेदनशील क्षेत्रों से दूर स्थापित किया जा सके।
o समझौते में कहा गया है कि कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन (KNO) और यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट (UPF) अब वर्तमान में संचालित 14 शिविरों के स्थान पर छह शिविर का संचालन करेंगे। - हथियारों का त्याग: प्रमुख प्रावधानों में से एक यह है कि सुरक्षा बलों की निगरानी में छह महीने के लिए डबल लॉक वाले हथियारों का त्याग किया जाएगा।
- संयुक्त निगरानी समूह (JMG): एक नए परिचालन निलंबन खंड में संयुक्त निगरानी समूह द्वारा आधार-आधारित पंजीकरण और कैडरों के भौतिक सत्यापन की जाँच को अनिवार्य बनाया गया है।
o 2008 के परिचालन निलंबन समझौते के तहत, 2,200 कुकी नेशनल ऑर्गनाइजेशन और यूनाइटेड पीपुल्स फ्रंट कैडरों को 6,000 रुपये मासिक मिलते थे, जिन्हें मई 2023 की हिंसा के बाद रोक दिया गया था।
o संशोधित समझौते में मणिपुर पुलिस द्वारा जारी फोटो पहचान पत्रों के साथ सत्यापित कैडरों के लिए आधार से जुड़े खातों के माध्यम से इसे फिर से शुरू किया गया है। - राजनीतिक समझौता: 2008 के सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन्स समझौते में कहा गया था कि मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता अक्षुण्ण रहेगी। 2025 के नवीनीकरण में इसे बरकरार रखा गया है और संविधान के अंतर्गत राजनीतिक समझौते के लिए समयबद्ध प्रयास जोड़ा गया है।
- गतिविधि प्रतिबंध: समूह नए सदस्यों की भर्ती नहीं कर सकते, शिविरों के बाहर हथियार नहीं ले जा सकते, अन्य सशस्त्र संगठनों में शामिल नहीं हो सकते, या आक्रामक अभियान नहीं चला सकते।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- मणिपुर में अनुमानित 3.3 मिलियन लोग रहते हैं।
- इनमें से आधे से ज़्यादा लोग मैतेई हैं, जबकि लगभग 43% कुकी और नागा हैं, जोकि प्रमुख अल्पसंख्यक जनजातियाँ हैं।
समुदाय | क्षेत्र | धर्म | माँग/चिंता |
मैतेई | इम्फाल घाटी | अधिकांश हिंदू | भूमि और नौकरी के लाभ प्राप्त करने के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग |
कुकी | पहाड़ी जिले | अधिकांश ईसाई | मैतेई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिलने पर भूमि अधिकार छिनने और राजनीतिक हाशिए पर जाने का डर |
नागा | पहाड़ी जिले (उत्तरी मणिपुर) | अधिकांश ईसाई | उन क्षेत्रों को ग्रेटर नागालिम में शामिल करने की मांग जहाँ नागा जनजाति के लोग रहते हैं |
मणिपुर में हिंसा के प्रमुख कारण:
- औपनिवेशिक युग की फूट डालो और राज करो की नीति: ब्रिटिश नीतियों ने प्रशासनिक रूप से पहाड़ी और घाटी क्षेत्रों को अलग कर दिया, जिससे सामाजिक-राजनीतिक अलगाव उत्पन्न हुआ जो आज भी बरकरार है।
- जातीय संरचना और विभाजन: मणिपुर में तीन प्रमुख जनजातियाँ मैतेई (घाटी), नागा और कुकी (पहाड़ी) रहती हैं, जिनकी अपनी अलग-अलग जातीय, सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान है, जिसके कारण लंबे समय से वहाँ अंतर-सामुदायिक तनाव विद्यमान है।
- कुकी-नागा संघर्ष (1990 का दशक): क्षेत्रीय दावों को लेकर कुकी और नागा समूहों के बीच हिंसक झड़पें हुईं, जिससे हजारों लोग विस्थापित हुए और जातीय विभाजन गहरा हुआ।
- मैतेई समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग: मैतेई समुदाय लंबे समय से भूमि और नौकरी के लाभ प्राप्त करने के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहा है, जिसका अतिक्रमण के डर से पहाड़ी जनजातियां सख्त विरोध कर रही हैं उन्हें भय है कई इससे उनके अधिकार छिन सकते हैं।
o मणिपुर उच्च न्यायालय के अप्रैल 2023 के आदेश, जिसमें मैतेई के लिए अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने पर विचार करने का निर्देश दिया गया था, से संघर्ष ने और विकराल रूप ले लिया। - म्यांमार से गैर-कानूनी/अवैध प्रवास: इससे तनाव बढ़ गया है क्योंकि बढ़ती जनसंख्या के कारण भूमि संसाधनों पर दबाव बढ़ा है और बेरोजगारी ने युवाओं को विभिन्न मिलिशिया (नागरिक सेना) में शामिल होने को विवश कर दिया है।
- राजनीतिक सुलह की विफलता: सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन्स (SoO) पैक्ट जैसे युद्धविराम समझौतों के बावजूद, समावेशी राजनीतिक संवाद और विश्वास निर्माण के अभाव में बार-बार तनाव हुआ है और हिंसा भड़की है।