संबंधित पाठ्यक्रम:
सामान्य अध्ययन प्रश्नपत्र 2: शासन व्यवस्था में पारदर्शिता एवं जवाबदेही के महत्वपूर्ण पक्ष।
संदर्भ:
हाल ही में, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2025 को अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष (IYC2025) घोषित किया, जो सतत विकास में सहकारी समितियों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करता है।
अन्य संबंधित जानकारी
- इस वर्ष का विषय “ Cooperatives Build a Better World ” सहकारिताओं के स्थायी वैश्विक प्रभाव को रेखांकित करता है, और उन्हें आज की वैश्विक चुनौतियों के लिए आवश्यक समाधान मानता है।
- यह सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय क्षेत्रों में सतत विकास में उनके योगदान पर प्रकाश डालता है, और दर्शाता है कि कैसे वर्ष 2030 तक संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने में सहकारिताएँ एक प्रमुख प्रेरकशक्ति होंगी।
- यह विषय समावेशी विकास को बढ़ावा देने और सामुदायिक भावना को सशक्त करने की सहकारी समितियों की अद्वितीय क्षमता पर भी प्रकाश डालता है।
वैश्विक सहकारिता में भारत की स्थिति
- शीर्ष 300 में सहकारी समितियों की संख्या (टर्नओवर/प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर):
- भारत की 15 सहकारी समितियाँ सूचीबद्ध हैं।
- भारतीय सहकारी समितियों में IFFCO शीर्ष स्थान पर है, उसके बाद अमूल का स्थान है।
- भारत की रैंकिंग:
- एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जापान के बाद दूसरे स्थान पर।
- विश्व स्तर पर अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, ब्राजील और जापान के बाद छठे स्थान पर।
- टर्नओवर के आधार पर (अमेरिकी डॉलर में):
- IFFCO –72वीं
- अमूल –90 वीं
- KRIBHCO –236वीं
- विश्व की सभी सहकारी समितियों में से लगभग 27% भारत में हैं। अनुमान है कि 20% से अधिक भारतीय जनसंख्या सहकारिता का हिस्सा है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष (IYC) 2025 के उपलक्ष्य में, सहकारिता मंत्रालय ने एक व्यापक वार्षिक कार्य योजना तैयार की और इसे मुंबई, महाराष्ट्र में लॉन्च किया।
- प्रभावी योजना और कार्यान्वयन के लिए, मंत्रालय ने निम्नलिखित की स्थापना की:
- IYC- राष्ट्रीय सहकारी समिति
- IYC- राष्ट्रीय निष्पादन समिति
- IYC- राज्य शीर्ष समितियाँ
IYC 2025 के तहत प्रमुख पहल:
- “एक पेड़ माँ के नाम” वृक्षारोपण अभियान: एक राष्ट्रव्यापी वृक्षारोपण अभियान जो लोगों को अपनी माँ के नाम पर एक पेड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे पर्यावरणीय जागरूकता और भावनात्मक जुड़ाव दोनों को बढ़ावा मिलता है।
- राज्यों में सहकारी सुधारों, सर्वोत्तम अभ्यासों और नीतिगत ढाँचों पर चर्चा के लिए राज्य सहयोग राष्ट्रीय सम्मेलन।
- गुजरात के आणंद में भारत के पहले सहकारी विश्वविद्यालय, “त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय” की आधारशिला।
- “स्वच्छता में सहकार” स्वच्छता अभियानों में राष्ट्रव्यापी स्वच्छता और सफाई अभियान शामिल हैं जो स्वच्छ भारत लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहकारी समितियों की भूमिका पर बल देते हैं।
सहकारिता

- सहकारी समितियां जन-केंद्रित उद्यम हैं, जिनका स्वामित्व, नियंत्रण और संचालन उनके सदस्यों द्वारा किया जाता है तथा वे अपनी सामान्य आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आवश्यकताओं और आकांक्षाओं को पूरा करते हैं।
- सहकारी समितियां लोगों को अपने आर्थिक भविष्य पर नियंत्रण रखने की अनुमति देती हैं| क्योंकि वे शेयरधारकों के स्वामित्व में नहीं होती हैं, इसलिए उनकी गतिविधि के आर्थिक और सामाजिक लाभ उन समुदायों में ही रहते हैं जहाँ वे स्थापित हैं।
- अर्जित लाभ का या तो उद्यम में पुनः निवेश कर दिया जाता है या सदस्यों को वापस कर दिया जाता है।
भारत में सहकारिता
- स्वतंत्रता-पूर्व युग में सहकारी आंदोलन:
- सहकारी ऋण समिति अधिनियम के माध्यम से 1904 में भारत में सहकारी समितियों को कानूनी दर्जा प्राप्त हुआ, जिसने उनके गठन, सदस्यता, पंजीकरण, देनदारियों, लाभ के उपयोग, नियमों और विघटन के लिए दिशानिर्देश निर्धारित किए।
- 1912 के सहकारी समिति अधिनियम ने 1904 के अधिनियम की कमियों को दूर किया तथा इसके दायरे का विस्तार करते हुए विपणन समितियों, हथकरघा बुनकरों और अन्य कारीगर समितियों को भी इसमें शामिल किया।
- 1919 के भारत सरकार अधिनियम ने प्रांतों को सहकारी समितियों के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया, जिसके परिणामस्वरूप 1925 में बॉम्बे सहकारी समिति अधिनियम पारित हुआ, जो किसी प्रांतीय सरकार द्वारा पारित पहला सहकारी कानून था।
- 1942 में, भारत सरकार ने कई प्रांतों की सदस्यता वाली सहकारी समितियों को विनियमित करने के लिए बहु-इकाई सहकारी समिति अधिनियम लागू किया और व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए सहकारी समितियों के केंद्रीय रजिस्ट्रार की शक्ति राज्य रजिस्ट्रार को सौंप दी।
- स्वतंत्रता के बाद के युग में सहकारी आंदोलन:

- 1963 में राष्ट्रीय सहकारी विकास निगम (NCDC) और 1982 में राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (NABARD) की स्थापना ग्रामीण ऋण और सहकारी विकास को बढ़ावा देने में निर्णायक कदम साबित हुई।
- 1984 में, भारतीय संसद ने राज्यों में सहकारी समितियों से संबंधित कानूनों को सुव्यवस्थित करने के लिए बहु-राज्यीयसहकारी संगठन अधिनियम पारित किया। 2002 में राष्ट्रीय सहकारी नीति की शुरुआत के साथ, कानूनी ढाँचे में सामंजस्य स्थापित करने के उद्देश्य से इसका सुदृढ़ीकरण किया गया।
- बहु-राज्यीय सहकारी समितियां (MSCS) संशोधन अधिनियम 2023 और संबंधित नियम बहु-राज्यीयसहकारी समितियों (MSCS) के भीतर शासन को सुचारू बनाने, पारदर्शिता बढ़ाने और संरचनात्मक परिवर्तनों को लागू करने का प्रयास करते हैं, जिससे सहकारी समितियों को अधिक स्वतंत्रता के साथ सशक्त बनाया जा सके।
- जब सहकारी समितियां बैंकिंग गतिविधियों में संलग्न होती हैं, तो वे भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के नियामक दायरे में आती हैं और उन्हें बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 के तहत लाइसेंस प्राप्त करना आवश्यक होता है।
सहकारी समितियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
- 97वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2011 ने सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया और निम्नलिखित प्रावधान किए, अर्थात्:
- संविधान के भाग III में अनुच्छेद 19(1)( c) में “सहकारी समितियां” शब्द जोड़कर सहकारी समितियां बनाने के अधिकार को मूल अधिकार के रूप में शामिल किया गया।
- सहकारी समितियों को बढ़ावा देने के लिए राज्य की नीति के निदेशक तत्व के रूप में संविधान के भाग IV में अनुच्छेद 43 B जोड़ा गया।
- सातवीं अनुसूची की राज्य सूची की प्रविष्टि 32
- भाग IX B ‘सहकारी समितियां’ को सहकारी समितियों के गठन, विनियमन और समापन के प्रावधानों के साथ शामिल किया गया।
स्रोत: PIB
https://www.pib.gov.in/PressReleasePage.aspx?PRID=2147173