संदर्भ:

30 जून को संथाल हुल (संथाल विद्रोह) की 169वीं वर्षगाँठ मनाई जाती है, जो ब्रिटिश शासन के विरुद्ध किसानों द्वारा किए गए प्रारंभिक विद्रोहों में से एक था।

संथालों के बारे में 

  • संथाल भारत में गोंड और भीलों के बाद तीसरा सबसे बड़ा अनुसूचित जनजाति समुदाय है।
  • वर्तमान समय में, वे मुख्य रूप से ओडिशा, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में पाए जाते हैं, और भारत में उनकी जनसंख्या छह मिलियन से अधिक है।
  • वे पंडित रघुनाथ मुर्मू द्वारा विकसित ‘ओल चिकी’ (Ol Chiki) लिपि का उपयोग करके संथाली भाषा बोलते हैं।
  • इस जनजाति समूह में दामोदर नदी का विशेष महत्व है, इस समुदाय के मृतक की अस्थियों और राख को उनकी आत्मा की शांति हेतु इसमें विसर्जित किया जाता है।
  • संथाल लोग सरना धर्म (Sarna religion) को मानते हैं, तथा जाहेर (Jaher) नामक पवित्र उपवनों में प्रकृति की पूजा करते हैं।
  • संथाली भाषा को भारत में अनुसूची VIII में आधिकारिक आदिवासी भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसे 92 वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के माध्यम से शामिल किया गया।
  • इसके अतिरिक्त, वर्ष 2022 में, सिद्धो-कान्हो-बिरसा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्रीपति टुडू (Sripati Tudu) द्वारा पहली बार भारत के संविधान का ओल चिकी (Ol Chiki) लिपि में अनुवाद किया गया था।

संथाल विद्रोह (1855) के बारे में:

  • चार भाइयों, सिद्धो, कान्हो, चाँद और भैरव मुर्मू, तथा उनकी बहनों फूलो और झानो द्वारा संथाल हुल का नेतृत्व किया गया, यह ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ किया गया था।
  • उन्होंने गुरिल्ला रणनीति अपनाई और लगभग छह महीने तक संघर्ष करते रहे, अंततः जनवरी, 1856 में उनकी हार हुई।
  • अगस्त, 1855 में सिद्धू को फाँसी दे दी गई, उसके बाद कान्हू को फरवरी 1856 में फाँसी दे दी गई।
  • यह ब्रिटिश औपनिवेशिक उत्पीड़न का प्रतिरोध करने के उद्देश्य से किये गए शुरुआती किसान विद्रोहों में से एक था।
  • संथालों ने अपने आर्थिक, सांस्कृतिक और धार्मिक हितों की रक्षा के लिए ऊँची जातियों, जमींदारों, स्थानीय अधिकारियों और साहूकारों (जिन्हें सामूहिक रूप से ‘दिकू’ कहा जाता था) का भी सामना किया।

विद्रोह के पीछे का प्रमुख कारण:

  • संथालों ने पहली बार 1793 में लागू किए गए स्थायी भूमि बंदोबस्त के विरोध में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया और उसके बाद लगातार इसका विरोध करते रहे।
  • वर्ष 1832 में अंग्रेजों ने कुछ विशिष्ट क्षेत्रों को ‘संथाल परगना’ या ‘दामिन-ए-कोह’ (Damin-i-Koh) नाम दिया।
    इन क्षेत्रों को संथालों को आवंटित किया गया था, जो बंगाल प्रेसीडेंसी के बीरभूम, मुर्शिदाबाद, भागलपुर, छोटानागपुर आदि से विस्थापित हुए थे।
  • संथालों से दामिन-ए-कोह में रहने और खेती के लिए ज़मीन देने का वादा किया गया था। हालाँकि, इन वादों को पूरा करने के बजाय, संथालों को ज़मीन हड़पने जैसी दमनकारी प्रथाओं का सामना करना पड़ा।
  • उनसे बेगारी (बंधुआ मजदूरी) भी करवाई जाती थी, जिसके दो प्रकार: कमियोती (Kamioti) और हरवाही (Harwahi) थे।

संथाल परगना काश्तकारी (SPT) और छोटा नागपुर काश्तकारी (CNT) अधिनियम

इस विद्रोह के परिणामस्वरूप निम्नलिखित अधिनियम लागू किये गये: –

  • संथाल परगना काश्तकारी (SPT) अधिनियम, 1876: अंग्रेजों ने आदिवासियों की भूमि को गैर-आदिवासियों को हस्तांतरित करने पर रोक लगाने वाले कानून बनाए। यह कानून इस बात को सुनिश्चित करता है कि आदिवासियों की भूमि, शहरी और ग्रामीण दोनों, केवल अधिनियम के अनुसार ही विरासत में प्राप्त की जा सकती है, जिससे संथालों की अपनी भूमि पर शासन करने की स्वायत्तता बनी रहे।
  • छोटा नागपुर काश्तकारी (CNT) अधिनियम, 1908: बिरसा मुंडा द्वारा शुरू किए गए आंदोलन के परिणामस्वरूप, एक अधिनियम पेश किया गया, जिसके तहत जिला कलेक्टर की मंजूरी के बाद एक ही जाति और विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों के बीच भूमि हस्तांतरण की अनुमति दी गई, जो कि एक ही पुलिस स्टेशन क्षेत्र में आने वाले आदिवासियों के बीच और एक ही जिले में आने वाले दलितों के बीच भूमि हस्तांतरण की अनुमति दी। 

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