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सामान्य अध्ययन-2: सरकारी नीतियाँ और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप, उनके अभिकल्पन और कार्यान्वयन से संबंधित विषय।   

संदर्भ: हाल ही में दूरसंचार विभाग (DoT) ने अपने पूर्ववर्ती आदेश को रद्द करते हुए यह घोषणा की है कि मोबाइल फोन निर्माताओं के लिए सरकार के स्वामित्व वाले  ‘संचार साथी’ ऐप्लिकेशन को डिवाइसों में पहले से इनस्टॉल करना अब अनिवार्य नहीं होगा।

संचार साथी ऐप

  • ‘संचार साथी’ भारत सरकार के दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा विकसित एक साइबर सुरक्षा (Cybersecurity) ऐप/पोर्टल है।
  • यह नागरिक-भागीदारी पर आधारित एक सुरक्षा प्लेटफॉर्म है, जिसके माध्यम से आम उपयोगकर्ता भी सामूहिक रूप से दूरसंचार और मोबाइल धोखाधड़ी की रोकथाम में अपना योगदान दे सकते हैं।
  • इसका कार्य धोखाधड़ी वाले कॉल और संदेशों की रिपोर्ट करने, खोए या चोरी हुए फोन को ट्रैक और ब्लॉक करने (IMEI के माध्यम से), यह जांचने कि क्या उनकी जानकारी के बिना उनके नाम पर कोई सिम कार्ड जारी किया गया है, और नकली या संदिग्ध दूरसंचार गतिविधियों को चिह्नित करने में उपयोगकर्ताओं की सहायता करना है।
  • संचार साथी ऐप को 2025 की शुरुआत में लॉन्च किया गया था और सरकारी आँकड़ों के अनुसार अब तक 1.4 करोड़ उपयोगकर्ता इसे डाउनलोड कर चुके हैं जबकि इसमें प्रतिदिन 2,000 धोखाधड़ी की घटनाएँ दर्ज की गई हैं।

प्री-इनस्टॉलेशन की अनिवार्यता

  • साइबर सुरक्षा और धोखाधड़ी की रोकथाम: संचार साथी ऐप्लिकेशन को साइबर धोखाधड़ी,फर्जी कनेक्शन लेना, नकली IMEIs की सहायता से चोरी किए गए डिवाइस की पुनः बिक्री, और सिम का दुरूपयोग जैसी बढ़ती घटनाओं में कमी लाने के लिए लॉन्च किया गया था।
  • बड़े पैमाने पर स्वीकार्यता और पहुंच में आसानी: सरकार का लक्ष्य ऐप को प्री-इंस्टॉल करके “हर किसी तक पहुँचना” था, ताकि सभी स्मार्टफोन उपयोगकर्ताओं को इसे स्वयं डाउनलोड न करना पड़े और वे स्वतः ही इसकी सुरक्षा सुविधाओं लका लाभ उठा सकें।
  • साइबर सुरक्षा में जन भागीदारी: सरकार ने ‘संचार साथी’ का वर्णन केवल एक सुरक्षात्मक उपकरण के रूप में नहीं, बल्कि एक सहभागी मंच के रूप में भी किया। इसके उपयोग से उपयोगकर्ता अपने साथ हुई धोखाधड़ी या चोरी हुए उपकरणों का पता लगाने में अपना योगदान दे सकते हिन्।

मुख्य चिंताएँ

  • निजता का उल्लंघन और निगरानी संबंधी चिंताएं: भारत में सभी स्मार्टफोन पर ‘संचार साथी’ ऐप को प्री-इंस्टॉल करने के हालिया आदेश की बड़े पैमाने पर आलोचना इसलिए हुई क्योंकि संभवतः यह सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक के.एस. पुट्टस्वामी (2017) निर्णय में स्थापित निजता के मूल अधिकार का उल्लंघन कर सकता था।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही का अभाव : ऐप की प्राइवेसी पॉलिसी और यूजर डेटा एक्सेस की आवश्यकताओं को लेकर सवाल उठ रहे हैं; इन चिंताओं का जिक्र कम से कम एक स्वतंत्र ओपन-सोर्स ऐप्लिकेशन टेस्टिंग सर्विस ने भी मुखरता से किया है।
  • उपयोगकर्ता की सहमति से समझौता: डिलीट करने के विकल्प के साथ प्री-इंस्टॉलेशन भी सूचित सहमति के मानदंडों का उल्लंघन करता है। वैश्विक स्तर पर, संवेदनशील सरकारी ऐप्स को आमतौर पर डिवाइसों पर पहले से इनस्टॉल नहीं किया जाता है।
  • प्रभावशीलता पर प्रश्नचिह्न: साइबर अपराधी ऐसे फोन का उपयोग करके, जिनमें यह ऐप नहीं है, IMEI की नकल (स्पूफिंग) करके, या सेकंड-हैंड फोन खरीदकर ऐप से अपना बचाव कर सकते हैं क्योंकि कानूनी ढाँचे तो मौजूद हैं, परन्तु प्रवर्तन अंतराल बना हुआ है।
  • उद्योगों द्वारा विरोध और चुनौतियाँ : आईओएस (iOS) और एंड्रॉइड (Android) जैसे प्रमुख मोबाइल प्लेटफॉर्म पर ऐप के प्री-इनस्टॉलेशन की अनिवार्यता से संगतता, नियामक अनुपालन, और व्यावसायिक रूप से व्यवहार्यता से जुड़ी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

आगे की राह

  • अनिवार्य के स्थान पर स्वैच्छिक उपयोग: उपयोगकर्ताओं की स्वायत्ता को देखते हुए सुरक्षा तंत्र वैकल्पिक होने चाहिए। अनिवार्य इनस्टॉलेशन के बजाय सरकार को जागरूकता, प्रोत्साहन और पारदर्शिता के माध्यम से संचार साथी ऐप का प्रचार करना चाहिए।
  • पारदर्शिता और ऑडिट: विश्वास बनाए रखने के लिए स्रोत के कोड और डेटा को सार्वजनिक किया जाना चाहिए या स्वतंत्र रूप से उसका ऑडिट होना चाहिए।
  • कानून प्रवर्तन और ढाँचों को सुदृढ़ करना: साइबर धोखाधड़ी और चोरी के लिए तकनीक के साथ ही सशक्त कानून प्रवर्तन की आवश्यकता है। जन जागरूकता के साथ एन्क्रिप्शन और ब्लैकलिस्टिंग जैसे मौजूद कानून और प्रक्रियाओं को प्रभावी तौर पर लागू किया जाना चाहिए।
  • जन परामर्श और सहमति: विशेष रूप से अनिवार्य इनस्टॉलेशन डिजिटल नीतियां निजता का उल्लंघन कर सकती हैं। ऐप के अनिवार्य इनस्टॉलेशन के लिए हितधारकों के सहयोग और सहमति के स्पष्ट नियम बनाए जाने आवश्यक हैं।

Sources:
Indian Express
The Hindu
PIB

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