CoP 20 CITES कन्वेंशन का समरकंद में समापन

संदर्भ: वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES) के पक्षकारों के सम्मेलन की 20वीं बैठक (CoP20) 5 दिसंबर को संपन्न हुई और इसने वैश्विक वन्यजीव व्यापार शासन में एक महत्वपूर्ण प्रगति को रेखांकित किया।

अन्य संबंधित जानकारी

  • CoP20 ने CITES (वन्य जीव-जंतुओं और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन) की 50वीं वर्षगाँठ को चिह्नित किया।
  • इस कन्वेंशन को “समरकंद में 50 पर CITES: प्रकृति और लोगों को जोड़ना” (“CITES at 50 in Samarkand: Bridging Nature and People”) नारे के तहत मनाया गया, जो समरकंद, उज़्बेकिस्तान के सिल्क रोड समरकंद एक्सपो सेंटर में आयोजित किया गया था।

प्रमुख परिणाम

  • CoP (पक्षकारों का सम्मेलन) ने शार्क और रे (rays) की 70 से अधिक प्रजातियों के लिए सुरक्षा उपाय अपनाए, जिसमें अत्यधिक संकटग्रस्त प्रजातियों को परिशिष्ट I में सूचीबद्ध करना शामिल था।
  • वेजफ़िश (Wedgefish) और विशाल गिटारफ़िश (Giant Guitarfish) जैसी समुद्री प्रजातियों को “शून्य कोटा” प्रतिबंध (जंगली-पकड़े गए निर्यात पर रोक) प्राप्त हुआ।   जबकि अतिरिक्त शार्क प्रजातियों को परिशिष्ट II में रखा गया, जिसका अर्थ है कि उनके व्यापार को ऐसे नियमों के अधीन किया जाएगा जिनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यह कानूनी और स्थायी दोनों हो।
  • कई स्थलीय प्रजातियों (Terrestrial Species) के लिए भी नए सुरक्षा उपायों पर सहमति व्यक्त की गई।
    • ओकापी (Okapis) और सुनहरे पेट वाली मैंगबे (Golden-bellied Mangabey) (एक लुप्तप्राय प्राइमेट), ये दोनों प्रजातियाँ विशेष रूप से कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में पाई जाती हैं, इन्हें परिशिष्ट I में सूचीबद्ध करके अधिकतम सुरक्षा प्रदान की गई।
    • अफ्रीकी गिद्धों की दो गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों को भी परिशिष्ट I में शामिल किया गया है।
  • प्रसिद्ध प्रजातियों जैसे हाथियों और गैंडों के लिए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुविधाजनक बनाने हेतु सुरक्षा उपायों को कमजोर करने के प्रस्तावों को भारी मतों से अस्वीकार कर दिया गया।
  • जापानी और अमेरिकी ईल प्रजातियों (eel species) के लिए व्यापार नियमों को लागू करने, ईल संरक्षण में सामंजस्य स्थापित करने और संकटग्रस्त यूरोपीय ईल की अवैध तस्करी) को रोकने में CoP20 के प्रयास में कमी हुई।

सी. राजगोपालाचारी  की 147वीं जयंती

संदर्भ: प्रधान मंत्री ने स्वतंत्रता सेनानी, विचारक, बुद्धिजीवी और राजनेता के रूप में सी. राजगोपालाचारी (राजजी) को याद करते हुए उल्लेख किया कि राजजी 20वीं शताब्दी के महान व्यक्तित्वों में से एक हैं, जो मूल्य निर्माण और मानवीय गरिमा को बनाए रखने में विश्वास रखते थे।

राजाजी का जीवन और विरासत

  • चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म 10 दिसंबर, 1878 को मद्रास प्रेसीडेंसी में हुआ था। वे एक वकील और बुद्धिजीवी थे।
  • उन्हें महात्मा गांधी के प्रारंभिक राजनीतिक सहयोगी के रूप में माना जाता है, जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने के लिए अपनी कानूनी प्रैक्टिस छोड़ दी और बाद में ब्रिटिश ताज के खिलाफ विभिन्न विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया।
  • सबसे लोकप्रिय रूप से, राजगोपालाचारी ने रॉलेट एक्ट, असहयोग और सविनय अवज्ञा आंदोलन के खिलाफ विरोध किया था।
  •   वे भारत के अंतिम गवर्नर-जनरल थे। 1950 में भारत के गणतंत्र बनने के बाद इस पद को समाप्त कर दिया गया था।
  • उन्होंने मद्रास राज्य के मुख्यमंत्री (1952-54) के रूप में भी कार्य किया।
  • उन्हें 1954 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। वह 1947-48 में पश्चिम बंगाल के पहले राज्यपाल भी थे, जब बंगाल प्रांत को दो भागों में विभाजित किया गया था।
  • 1959 में, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की समाजवादी नीतियों के सीधे विरोध में स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की।

महाकवि सुब्रमण्यम भारती

संदर्भ: प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने महाकवि सुब्रमण्यम भारती को उनकी जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की, और भारत की सांस्कृतिक, साहित्यिक और राष्ट्रीय चेतना को आकार देने में उनकी अद्वितीय भूमिका का स्मरण किया।

अन्य संबंधित जानकारी

  • प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी कविताओं  ने साहस  को प्रज्वलित किया और उनके विचारों में अनगिनत लोगों के मन पर एक अमिट छाप छोड़ने का सामर्थ्य था। उन्होंने यह भी कहा कि उनके विचारों ने भारत की सांस्कृतिक और राष्ट्रीय चेतना को जागृत किया।
  • प्रधानमंत्री ने यह भी टिप्पणी की कि श्री भारती ने एक ऐसे समाज के निर्माण की दिशा में काम किया जो न्यायपूर्ण और समावेशी हो। इसके अलावा, तमिल साहित्य को समृद्ध बनाने में भी उनका योगदान अतुलनीय है।

महाकवि सुब्रमण्यम भारती के बारे में

  • सुब्रमण्यम भारती का जन्म 11 दिसंबर 1882 को मद्रास प्रेसीडेंसी (वर्तमान-दिवस तूतीकोरिन जिला, तमिलनाडु) के तिरुनेलवेली जिले में स्थित एट्टायपुरम शहर में हुआ था। वे एक भारतीय लेखक, कवि, संगीतकार, पत्रकार, शिक्षक, भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता, समाज सुधारक और बहुभाषाविद थे।
  • उन्हें उनके काव्य के लिए ‘भारती’ की उपाधि दी गई थी और वे आधुनिक तमिल काव्य के अग्रदूत थे।
  • उन्होंने स्वदेशमित्रन, द हिंदू, बाल भारत, विजय, चक्रवर्तिनी और इंडिया सहित कई समाचार पत्रों में एक पत्रकार के रूप में काम किया।
  • उन्होंने स्वामी विवेकानंद की शिष्या, सिस्टर निवेदिता को अपना गुरु माना।
  • भारत की बहुभाषी भावना के प्रतीक, भारती 32 भाषाएँ जानते थे, जिनमें तीन विदेशी भाषाएँ भी शामिल थीं।
  • उनकी उत्कृष्ट कृतियों में पांचाली शबथम, कन्नन पाट्टु, कुयिल पाट्टु, पापा पाट्टु, चिन्नंचिरु किलिएम, विनायगर ननमनियमालै और पतंजलि के योग सूत्र तथा भगवद गीता के तमिल अनुवाद शामिल हैं।
  • भारती पहले कवि थे जिनके साहित्य का 1949 में राष्ट्रीयकरण किया गया था।

86वाँ  नुपी लान दिवस

संदर्भ: भारत की राष्ट्रपति ने 86वें नुपी लान दिवस के अवसर पर इम्फाल में नुपी लान स्मारक परिसर में पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।

नुपी लान दिवस के बारे में

  • मणिपुरी में नुपी लान (मैतेई भाषा में ‘महिलाओं का युद्ध’) इम्फाल जिले और मणिपुर के अन्य क्षेत्रों में हुए विरोध प्रदर्शनों और बहिष्कार की एक श्रृंखला थी, जिनमें पहला 1904 में और दूसरा 1939-1940 में हुआ था।
  • हालांकि नुपी लान दिवस दोनों विद्रोहों की याद में मनाया जाता है, लेकिन यह 12 दिसंबर को मनाया जाता है, जिस दिन दूसरे आंदोलन की शुरुआत हुई थी ।
  • इस आंदोलन को महिलाओं के नेतृत्व वाले सबसे महत्वपूर्ण जन आंदोलनों में से एक के रूप में याद किया जाता है।
  • इसका दूसरा आंदोलन मणिपुर में मारवाड़ी एकाधिकारवादियों और महाराजा की आर्थिक नीतियों के खिलाफ मणिपुरी महिलाओं के नेतृत्व में एक बलपूर्वक विरोध के रूप में शुरू हुआ।
  • इसमें ब्रिटिश-स्वामित्व वाले व्यवसायों का बहिष्कार, हड़तालें और सविनय अवज्ञा के अन्य रूप शामिल थे।
  • यह आंदोलन अंततः मणिपुर के प्रशासनिक और संवैधानिक सुधारों के लिए एक अभियान में बदल गया।
  • महिलाओं की प्राथमिक माँगें मुख्य रूप से चावल के निर्यात पर प्रतिबंध और प्रशासनिक व्यवस्था में तत्काल बदलाव करना थीं।
  • मणिपुर ब्रिटिशों द्वारा निर्यात की जा रही चावल की भारी मात्रा को वहन करने में सक्षम नहीं था।
  • इसके परिणामस्वरूप, यह क्षेत्र विदेशों में बने माल के लिए एक बाजार बन गया, जिसने अंततः स्थानीय कुटीर उद्योगों के पतन में योगदान दिया।
  • इस कारण महिलाओं में आक्रोश फैल गया और वे सैकड़ों की संख्या में इम्फाल की सड़कों पर विरोध के लिए उतरीं।
  • नुपी लान आंदोलन 1940 के दशक में एक नए मणिपुर के लिए आर्थिक और राजनीतिक सुधारों का आधार बना।

पहला नुपी लान

  • पहला नुपी लान जुलाई 1904 में कर्नल मैक्सवेल द्वारा ‘लल्लूप’ (Lallup) प्रणाली को फिर से शुरू करने के कारण हुआ।  ‘लल्लूप’ प्रणाली  के तहत पुरुषों को हर 30 दिनों में दस दिन का अवैतनिक श्रम करने के लिए मजबूर किया जाता था।
  • 3 सितंबर 1904 को, हजारों महिलाओं ने लल्लूप प्रणाली को वापस लेने की मांग करते हुए मैक्सवेल के निवास तक मार्च किया।
  • हालाँकि ब्रिटिशों ने आदेशों को रद्द करने का वादा किया था, लेकिन वे ऐसा करने में विफल रहे। इसके कारण 5 अक्टूबर को ख्वायरमबंद बाजार में लगभग 5,000 महिलाओं द्वारा एक और विरोध प्रदर्शन किया गया।
  • हिंसक दमन के बावजूद, महिलाओं ने हार नहीं मानी और वे डटी रहीं। अंततः, उन्होंने ब्रिटिशों को आदेश वापस लेने और अपनी खर्चे पर पर बंगलों का पुनर्निर्माण करने के लिए विवश कर दिया।

पारंपरिक चिकित्सा पर द्वितीय WHO वैश्विक शिखर सम्मेलन

संदर्भ: भारत नई दिल्ली में पारंपरिक चिकित्सा पर द्वितीय विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) वैश्विक शिखर सम्मेलन की सह-मेज़बानी करने जा रहा है।  

अन्य संबंधित जानकारी

  • यह शिखर सम्मेलन 17 से 19 दिसंबर तक भारत मंडपम, नई दिल्ली में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के सहयोग से आयोजित किया जाएगा।
  • 2025 का विषय: “संतुलन की पुनर्स्थापना: स्वास्थ्य एवं कल्याण का विज्ञान और व्यवहार”
  • इस शिखर सम्मेलन का उद्देश्य पारंपरिक चिकित्सा के आधार पर मानव और पृथ्वी के लिए संतुलन की पुनर्स्थापना हेतु एक वैश्विक आंदोलन को प्रोत्साहित करना है।
  • यह शिखर सम्मेलन WHO की वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा रणनीति 2025–2034 के अनुरूप तथा उसके मार्गदर्शन में आयोजित किया जा रहा है।
  • “अश्वगंधा: पारंपरिक ज्ञान से वैश्विक प्रभाव तक – अग्रणी वैश्विक विशेषज्ञों के दृष्टिकोण” शीर्षक से एक केंद्रित सह-आयोजित कार्यक्रम (साइड इवेंट) आयोजित किया जाएगा।
    • इसका आयोजन WHO वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा केंद्र (WHO-GTMC) द्वारा आयुष मंत्रालय के सहयोग से किया जाएगा।
    • इस सत्र में अश्वगंधा के अनुकूलनशील (एडैप्टोजेनिक), तंत्रिका-संरक्षणकारी (न्यूरोप्रोटेक्टिव) और प्रतिरक्षा-नियामक (इम्यूनोमॉड्यूलेटरी) गुणों से संबंधित वैज्ञानिक साक्ष्यों के साथ-साथ सुरक्षा आकलन पर भी चर्चा की जाएगी।    
  • पारंपरिक चिकित्सा पर प्रथम WHO वैश्विक शिखर सम्मेलन 2023 में गांधीनगर, गुजरात में आयोजित किया गया था।
  • प्रथम शिखर सम्मेलन से पूर्व WHO वैश्विक पारंपरिक चिकित्सा केंद्र (WHO-GTMC) की स्थापना जामनगर, गुजरात में की गई थी। 

WHO के बारे में

  • इसकी स्थापना 1948 में हुई थी और यह संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है।
  • इसमें 194 सदस्य देश हैं और इसका मुख्यालय जेनेवा, स्विट्जरलैंड में स्थित है।
  • WHO वैश्विक स्वास्थ्य प्राथमिकताओं पर सामूहिक रूप से कार्य करने के लिए राष्ट्रों, भागीदारों और लोगों को जोड़ता है।
  • विश्व स्वास्थ्य सभा (World Health Assembly – WHA) इसकी सर्वोच्च निर्णय लेने वाली संस्था है, जहाँ सभी सदस्य देश प्रतिवर्ष जेनेवा में नीतियों को निर्धारित करने, बजट को मंजूरी देने, महानिदेशक की नियुक्ति करने और वैश्विक स्वास्थ्य प्राथमिकताओं पर विचार विमर्श के लिए मिलते हैं।     
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