हेरॉन MK -2 ड्रोन
संदर्भ: हाल ही में, भारत ने इज़रायल से और अधिक हेरॉन MK II ड्रोन (Heron MK II drones) खरीदने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इन्हें खरीदने का निर्णय ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इन ड्रोनों की प्रभावी तैनाती और उनके सफल प्रदर्शन के बाद लिया गया है।
अन्य संबंधित जानकारी
- हेरॉन MK II ड्रोन पहले से ही भारतीय सेना और वायु सेना में सेवा दे रहे हैं।
- रक्षा मंत्रालय ने 87 मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्यूरेंस (MALE) ड्रोन की खरीद के लिए सितंबर में एक प्रस्ताव अनुरोध जारी किया।
- इज़रायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) का लक्ष्य हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) और एल्कोम सिस्टम्स प्राइवेट लिमिटेड (Elcom) जैसे स्थानीय भागीदारों के साथ सहयोग करके मेक इन इंडिया पहल का समर्थन करना है।
- इज़रायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज कंपनी भारत में हेरॉन MK II का एक भारतीय संस्करण निर्मित करना चाहती है।
हेरॉन MK II की मुख्य विशेषताएँ

- हेरॉन MK II एक मीडियम एल्टीट्यूड लॉन्ग एंड्यूरेंस (MALE) मानव रहित हवाई यान (UAV) है।
- UAV चौड़ा और मजबूत है जिसके कारण समग्र वजन बढ़े बिना ही इसका त्वरित और आसानी से रखरखाव किया जा सकता है।
- यह प्लेटफॉर्म हवाई और नौसैनिक दोनों डोमेन में विविध पेलोड वहन करने और रणनीतिक अभियानों का समर्थन करने में सक्षम है।
- यह मानव रहित हवाई यान (UAV) नए विन्यासों को सक्षम बनाता है।
वैश्विक हथियारों के राजस्व में तेज उछाल: SIPRI
संदर्भ: स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) की रिपोर्ट के अनुसार, 2024 में वैश्विक हथियारों के राजस्व में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है, जिसका मुख्य कारण यूक्रेन और गाजा में चल रहे युद्ध हैं।
SIPRI रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
- SIPRI के नवीनतम आकलन के अनुसार, वर्ष 2024 में विश्व की 100 सबसे बड़ी हथियार उत्पादक कंपनियों का राजस्व रिकॉर्ड $679 बिलियन तक पहुँच गया।
- 5.9% की वैश्विक वृद्धि मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में स्थित कंपनियों के कारण हुई थी।
- अमेरिकी कंपनियों ने कुल $334 बिलियन का राजस्व दर्ज किया और कुल 39 फर्मों में से 30 फर्मों ने अपने राजस्व में वृद्धि दर्ज की।
- इन कंपनियों ने संयुक्त रूप से $151 बिलियन का राजस्व हासिल किया जिनमें से कुल 26 कंपनियों में से 23 कंपनियों ने अपने राजस्व में वृद्धि दर्ज की।
- मध्य पूर्वी कंपनियों ने शीर्ष 100 में आने वाली नौ कंपनियों के साथ अपनी हिस्सेदारी साझा की।
- गाजा में चल रहे युद्ध और निरंतर विदेशी मांग के बीच इजरायली रक्षा कंपनियों ने राजस्व में तेज वृद्धि दर्ज की।
स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) के बारे में
- SIPRI एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय संस्थान है जिसकी स्थापना 1966 में की गई थी। इसका उद्देश्य संघर्ष, आयुध, हथियार नियंत्रण और निरस्त्रीकरण पर अनुसंधान करना है।
- यह एक अग्रणी वैश्विक थिंक टैंक है जो विश्वसनीय डेटा, विश्लेषण, और नीतिगत सिफारिशें देने के लिए जाना जाता है।
- SIPRI का मुख्यालय सोल्ना, स्वीडन में है।
PSLV-N1
संदर्भ: भारत 2026 की शुरुआत में अपने पहले निजी तौर पर निर्मित ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV) को लॉन्च करेगा। यह कदम अंतरिक्ष परिवहन के व्यावसायीकरण की दिशा में बड़ी उपलब्धि होगा।
अन्य संबंधित जानकारी
- प्रक्षेपण में समुद्र विज्ञान (Oceanographic studies) संबंधी अध्ययन के लिए पृथ्वी अवलोकन उपग्रह EOS-10 के साथ-साथ सह-यात्रियों के रूप में भारत-मॉरीशस संयुक्त उपग्रह (IMJS) और भारतीय न्यूस्पेस एंटरप्राइज (Indian NGE) का लीप-2 उपग्रह (Leap-2 Satellite) ले जाया जाएगा।
- यह मिशन पहले 2025 की शुरुआत के लिए योजनाबद्ध था, लेकिन उपग्रह तैयार न होने के कारण इसमें देरी हुई।
- PSLV-N1 2022 में शुरू हुई इसरो की व्यावसायीकरण योजना के तहत एक निजी कंसोर्टियम द्वारा निर्मित पहला PSLV रॉकेट होगा।
- लार्सन एंड टुब्रो (L&T) और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) एक कंसोर्टियम मॉडल के तहत इस रॉकेट का निर्माण कर रहे हैं।
- यह रॉकेट न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के स्वामित्व में है।
- NSIL भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की वाणिज्यिक शाखा है और भारत सरकार के अंतरिक्ष विभाग (DoS) के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत एक पूर्ण स्वामित्व वाली केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम (CPSE) है।
ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (PSLV)
- PSLV एक विस्तार योग्य मध्यम-उत्थापन प्रक्षेपण यान (expendable medium-lift launch vehicle) है। इसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा डिज़ाइन और संचालित किया जाता है।
- इसे इसकी उच्च विश्वसनीयता और विभिन्न उपग्रहों को विभिन्न कक्षाओं में, विशेष रूप से सूर्य-तुल्यकालिक ध्रुवीय कक्षाओं (Sun-Synchronous Polar Orbits – SSPOs) में स्थापित करने की बहुमुखी प्रतिभा के कारण इसरो के “वर्कहॉर्स” (workhorse) के रूप में जाना जाता है।
अलकनंदा आकाशगंगा
संदर्भ: पुणे स्थित नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स – टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (NCRA–TIFR) के भारतीय खगोलविदों ने एक विशाल सर्पिल आकाशगंगा अलकनंदा की खोज की है।
अन्य संबंधित जानकारी
- भारतीय शोधकर्ताओं ने जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप का उपयोग करके अलकनंदा नामक एक पूर्णतः निर्मित सर्पिल आकाशगंगा की पहचान की, जो 12 अरब वर्ष पुरानी है।
- JWST अब तक लॉन्च की गई सबसे बड़ी और सबसे शक्तिशाली अंतरिक्ष वेधशालाओं में से एक है। इसे मुख्य रूप से अवरक्त खगोल विज्ञान और प्रारंभिक ब्रह्मांड के बारे में पता लगाने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- यह आकाशगंगा हमारी आकाशगंगा (मिल्की वे) के समान दिखती है, भले ही यह उस समय मौजूद थी जब ब्रह्मांड केवल 1.5 अरब वर्ष पुराना था।
- इस खोज से उन मौजूदा सिद्धांतों को चुनौती मिलती है जिनमें यह माना जाता था कि प्रारंभिक आकाशगंगाएँ छोटी, अनियमित और अव्यवस्थित थीं।
खोज के प्रमुख निष्कर्ष

- शोधकर्ताओं ने एक सुव्यवस्थित डिस्क और सममितीय भुजाओं वाली एक सर्पिल आकाशगंगा को देखा। यह खोज उन अपेक्षाओं के विपरीत है कि प्रारंभिक आकाशगंगाओं में व्यवस्थित संरचनाओं की कमी होती थी।
- यह आकाशगंगा लगभग 30,000 प्रकाश-वर्ष तक फैली हुई है। यह आकार में मिल्की वे का लगभग एक तिहाई है। यह उसी अवधि की अन्य आकाशगंगाओं की तुलना में कहीं अधिक व्यवस्थित है।
- खगोलविदों ने पाया कि इस आकाशगंगा में लगभग 10 अरब सौर द्रव्यमान के तारे मौजूद हैं। यह कुछ सौ मिलियन वर्षों के भीतर अत्यधिक तेज़ तारकीय संयोजन को इंगित करता है।
- इस प्रारंभिक आकाशगंगा (अलकनंदा) में तारों के निर्माण की दर हमारी आकाशगंगा (मिल्की वे) की वर्तमान दर से लगभग 20 से 30 गुना अधिक है।
- गैलेक्सी अलकनंदा की पहचान जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप से प्राप्त डेटा का विश्लेषण करके की गई थी। JWST ने प्रारंभिक ब्रह्मांड (early Universe) में तेजी से जटिल होती संरचनाओं को उजागर किया है।
- यह आकाशगंगा (अलकनंदा) हमें ऐसी दिखती है जैसी वह 12 अरब साल पहले अस्तित्व में थी क्योंकि इसके प्रकाश ने पृथ्वी तक पहुँचने में उतना ही समय (12 अरब साल) लिया।
- शोधकर्ता गैलेक्सी अलकनंदा की सर्पिल भुजाओं के निर्माण को समझने के लिए जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप या चिली में स्थित अटाकामा लार्ज मिलिमीटर/सबमिलिमीटर ऐरे (ALMA) का उपयोग करके अनुवर्ती अवलोकन करने की योजना बना रहे हैं।
मौद्रिक नीति समिति ने रेपो दर में कटौती की
संदर्भ: मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने दिसंबर 2025 में पॉलिसी रेपो दर को 25 आधार अंकों से घटाकर 5.25 प्रतिशत कर दिया है।

अन्य संबंधित जानकारी
- मौद्रिक नीति समिति ने एक तटस्थ नीतिगत रुख़ बनाए रखा। केवल एक सदस्य ने दर में कटौती के के पक्ष में मतदान किया। यह वर्तमान नीति दिशा पर सर्वसम्मति को दर्शाता है।
- मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने पॉलिसी रेपो दर को 5.25% करने के साथ ही, अन्य प्रमुख दरों में भी बदलाव किया है: स्थायी जमा सुविधा दर (SDF) को घटाकर 5.00 प्रतिशत कर दिया गया और सीमांत स्थायी सुविधा दर (MSF) तथा बैंक दर को घटाकर 5.50 प्रतिशत कर दिया गया है।
- समिति ने हेडलाइन मुद्रास्फीति (headline inflation) और कोर मुद्रास्फीति (core inflation) दोनों में एक सामान्य गिरावट दर्ज की। इस गिरावट के कारण, वित्तीय वर्ष 2026 (FY2026) के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति पूर्वानुमान को घटाकर 2.0 प्रतिशत कर दिया गया।
- समिति ने वित्त वर्ष 2026 की तीसरी तिमाही के लिए मुद्रास्फीति अनुमान को संशोधित कर 0.6 प्रतिशत कर दिया और चौथी तिमाही के लिए अनुमान 2.9 प्रतिशत कर दिया गया।
- समिति ने पहली तिमाही के लिए मुद्रास्फीति अनुमान को घटाकर 3.9 प्रतिशत कर दिया। समिति ने पहली तिमाही के लिए मुद्रास्फीति अनुमान को घटाकर 3.9 प्रतिशत कर दिया जो अपेक्षित सामान्यीकरण को दर्शाते हैं।
- समिति ने वित्तीय वर्ष 2026 (FY2026) के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) मुद्रास्फीति पूर्वानुमान को घटाया और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) वृद्धि अनुमान को बढ़ाया। यह सुधरी हुई समष्टि आर्थिक स्थितियों का संकेत है।

मौद्रिक नीति समिति (MPC)
- भारत में मौद्रिक नीति समिति भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है।
- अधिनियम की धारा 45ZB केंद्र सरकार को इस छह-सदस्यीय समिति का गठन करने का अधिकार देती है। यह समिति वह नीतिगत ब्याज दर निर्धारित करती है, जो भारत सरकार द्वारा निर्धारित मुद्रास्फीति लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है।
- अधिनियम की धारा 45ZA के तहत केंद्र सरकार द्वारा पाँच वर्ष में एक बार भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के परामर्श से उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के संदर्भ में मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारित किया जाता है।
- MPC में छह सदस्य शामिल होते हैं। इनमें से तीन सदस्य भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) से होते हैं। तीन सदस्य केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते हैं।
- भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर समिति के पदेन अध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं।
हॉर्नबिल महोत्सव 2025
संदर्भ: हॉर्नबिल महोत्सव का 26वां संस्करण नागालैंड की राजधानी कोहिमा के पास, किसामा (Kisama) में स्थित नागा हेरिटेज विलेज में चल रहा है।
अन्य संबंधित जानकारी
- इस महोत्सव को “उत्सवों का उत्सव” के नाम से भी जाना जाता है। ह उत्सव 10 दिनों (1 दिसंबर से 10 दिसंबर, 2025) तक मनाया जाता है।
- इसका आयोजन राज्य के पर्यटन और कला एवं संस्कृति विभागों द्वारा किया जाता है।हॉर्नबिल महोत्सव सांस्कृतिक प्रदर्शनों के संगम (लोककथाएँ, शिल्क, संगीत, व्यंजन) को प्रदर्शित करता है।
- इसकी शुरुआत एक पर्यटन पहल के रूप में नागालैंड के राज्य स्थापना दिवस के साथ हुई थी। यह अब दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित सांस्कृतिक त्योहारों में से एक के रूप में विकसित हो गया है।
- नागालैंड राज्य दिवस राज्य निर्माण की तिथि 1 दिसंबर, 1963 को चिन्हित करता है। इस दिन नागालैंड राज्य अधिनियम, 1962 लागू हुआ था। इस अधिनियम के साथ ही नागालैंड भारतीय संघ का 16वां राज्य बना।
- महोत्सव में क्षेत्रीय सहयोग को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से छह देश भागीदार देश हैं: ऑस्ट्रिया, फ्रांस, आयरलैंड, माल्टा, स्विट्जरलैंड, यूनाइटेड किंगडम । अंतर्राष्ट्रीय देशों को भागीदार के रूप में शामिल करने का उद्देश्य क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है।
- अरुणाचल प्रदेश इस महोत्सव का राज्य भागीदार (state partner) है।
- हॉर्नबिल रंग-बिरंगे उष्णकटिबंधीय पक्षी हैं जो अफ्रीका, एशिया और मेलेनेशिया में पाए जाते हैं।
- दुनिया भर में पाई जाने वाली हॉर्नबिल की 62 प्रजातियों में से नौ को भारत में देखा जा सकता है।
- ग्रेट हॉर्नबिल (Buceros Bicornis) केरल और अरुणाचल प्रदेश का राजकीय पक्षी (state bird) है।
INS अरिदमन
संदर्भ: राष्ट्रीय नौसेना दिवस के अवसर पर, नौसेना प्रमुख ने घोषणा की कि परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी आईएनएस अरिदमन को जल्द ही कमीशन किया जाएगा।
अन्य संबंधित जानकारी
- आईएनएस अरिदमन (S4) अरहंत श्रेणी (Arihant class) की तीसरी पनडुब्बी होगी। यह परमाणु-सशस्त्र मिसाइलों के लिए एक अभेद्य प्रक्षेपण प्लेटफॉर्म के रूप में कार्य करेगी।

- आईएनएस अरिदमन की कमीशनिंग के बाद, एक चौथी शिप सबमर्सिबल बैलिस्टिक न्यूक्लियर (SSBN) पनडुब्बी, जिसका कोडनाम S4* है, के 2027 में बेड़े में शामिल होने की उम्मीद है।
- यह एक परमाणु पनडुब्बी है जो प्रणोदन के लिए एक परमाणु रिएक्टर का उपयोग करती है। यह इसे असीमित रेंज और धीरज (endurance) प्रदान करता है।
- यह पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत (S2) से बड़ी और अधिक उन्नत (more advanced) है जिसने एडवांस्ड टेक्नोलॉजी वेसल (ATV) कार्यक्रम के तहत एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शक के रूप में कार्य किया था।
- भारत, परमाणु-संचालित पनडुब्बियों वाले देशों के एक विशिष्ट समूह में शामिल है जिसमें पहले से अमेरिका, रूस, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और चीन शामिल हैं।
- भारत की पहली परमाणु-संचालित बैलिस्टिक मिसाइल पनडुब्बी है:
- INS अरिहंत (S2) और INS अरिघाट (S3):
- आईएनएस अरिहंत (S2) को अगस्त 2016 में कमीशन किया गया था और यह भारत के एडवांस्ड टेक्नोलॉजी वेसल (Advanced Technology Vessel – ATV) कार्यक्रम की आधारशिला के रूप में कार्य करती है।
- आईएनएस अरिघाट (S3) को अगस्त 2024 में कमीशन किया गया था और यह आईएनएस अरिहंत (Arihant) का एक परिमार्जित (refined) और अधिक सक्षम संस्करण है।
- 2018 में आईएनएस अरिहंत की पहली सफल निवारक गश्त से भारत का न्यूक्लियर ट्रायड (nuclear triad) पूरा हो गया है।
- INS अरिहंत (S2) और INS अरिघाट (S3):
राष्ट्रीय नौसेना दिवस
- यह दिवस हर साल 4 दिसंबर को भारतीय नौसेना की उपलब्धियों और भूमिका के महत्त्व को दर्शाने के लिए मनाया जाता है।
- इसी दिन (4 दिसंबर) 1971 में ऑपरेशन ट्राइडेंट (Operation Trident) के दौरान भारतीय नौसेना ने पाकिस्तानी नौसेना के जहाज (PNS) खैबर सहित चार पाकिस्तानी जहाजों को डुबो दिया था।
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विश्व का प्रथम गतिशील तैरता हुआ कृत्रिम द्वीप
संदर्भ: रिपोर्ट के अनुसार, चीन विश्व का पहला गतिशील तैरता हुआ कृत्रिम द्वीप बना रहा है।
अन्य संबंधित जानकारी:

- इसका आधिकारिक नाम डीप-सी ऑल-वेदर रेज़िडेंट फ़्लोटिंग रिसर्च फ़ैसिलिटी है, जिसे “फ़ार-सी फ़्लोटिंग मोबाइल आइलैंड” भी कहा जाता है।
- इस परियोजना में GJB 1060.1-1991 का उल्लेख किया गया है, जो परमाणु विस्फोट से सुरक्षा हेतु निर्धारित एक चीनी सैन्य मानक है और जिसका उपयोग सैन्य तथा नागरिक—दोनों प्रकार की आवश्यकताओं के लिए किया जाता है।
- सभी मौसम परिस्थितियों में लंबे समय तक उपयोग के लिए निर्मित यह प्लेटफ़ॉर्म आपात ऊर्जा आपूर्ति, संचार व्यवस्था और नौवहन जैसे अहम तंत्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है।
- 78,000 टन की यह अर्ध-जलमग्न संरचना गहरे समुद्री शोध के उद्देश्य से विकसित की गई है और इसके 2028 तक परिचालन में आने की उम्मीद है।
- अपनी गतिशीलता के कारण यह समुद्र में स्थानांतरित होते हुए भी गहरे समुद्र की निगरानी और उपकरण परीक्षण जैसी वैज्ञानिक गतिविधियों को लगातार जारी रखने में सक्षम है।
द्वीप की प्रमुख विशेषताएँ
- यह बाहरी संसाधनों पर निर्भर हुए बिना लगभग चार महीनों तक 238 व्यक्तियों को ठहराने की क्षमता रखता है।
- द्वीप की लंबाई 138 मीटर और चौड़ाई 85 मीटर है।
- यह 15 नॉट्स की चाल से संचालित हो सकता है।
- इसकी द्विपतवार (ट्विन-हुल) संरचना इसे कठिन समुद्री परिस्थितियों में बेहतर स्थिरता प्रदान करती है।
- यह परमाणु विस्फोट और तीव्र तूफानों में भी सुरक्षित रहने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
- इस प्लेटफ़ॉर्म की परमाणु-रोधी संरचना में मेटामटेरियल से बने “सैंडविच” पैनल का उपयोग किया गया है।
प्रबल विस्फोटों में भी, जो इमारतों को ध्वस्त कर सकते हैं, यह मेटामटेरियल, संरचना की गति को 58.53% और अधिकतम तनाव को 14.25% तक कम कर देती है, जिससे पतवार स्थिर और सुरक्षित बनी रहती है।
