संपीड़ित बायोगैस संयंत्र
संदर्भ:
हाल ही में, भारत के प्रधानमंत्री ने ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में भारत के पहले आधुनिक, आत्मनिर्भर गोबर-आधारित संपीड़ित बायोगैस (Compressed Bio-Gas-CBG) संयंत्र का उद्घाटन किया।
संपीड़ित बायोगैस संयंत्र के बारें में:
- यह पहला संपीड़ित बायोगैस संयंत्र है जिसमें मवेशियों के गोबर और मंडियों (बाजारों) व घरों से एकत्रित सब्जी व फलों के अपशिष्ट पदार्थों जैसे कचरे से बायोगैस तैयार की जाएगी।
- यह अत्याधुनिक CBG संयंत्र ग्वालियर की सबसे बड़ी गौशाला (5 एकड़ में फैली) आदर्श गौशाला है, जो ग्वालियर के लालटिपारा में स्थित है।
- गौशाला या CBG संयंत्र ग्वालियर नगर निगम द्वारा संचालित है और इसे इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के सहयोग से विकसित किया गया है।
- यह संयंत्र गाय के गोबर को जैव CNG (संपीड़ित प्राकृतिक गैस) और जैविक खाद में परिवर्तित करता है, जिससे सतत विकास को बढ़ावा मिलता है।
- यह प्लांट मवेशियों के 100 टन गोबर से प्रतिदिन दो टन CBG उत्पन्न करेगा। इसके अतिरिक्त, यह प्रतिदिन 10-15 टन शुष्क जैविक खाद भी सृजित करता है, जो जैविक खेती के लिए एक मूल्यवान उपोत्पाद है।
इस संयंत्र को आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय के तहत ‘अपशिष्ट से संपदा’(वेस्ट टू वेल्थ) पहल के दृष्टिकोण के तहत विकसित किया गया है।
संयंत्र का महत्व:
- यह जीवाश्म ईंधन का एक पर्यावरण-अनुकूल विकल्प है और इससे कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी।
- इससे स्थानीय किसानों को लाभ मिलेगा और आस-पास के जिलों के किसानों को सस्ती कीमतों पर जैविक खाद आसानी से उपलब्ध हो सकेगी।
- इस तरह के संयंत्र जैविक कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करेंगे।
पूर्वी शाही चील (ईस्टर्न इंपीरियल ईगल)
संदर्भ:
हाल ही में केरल के पुल्लुझी कोले आर्द्रभूमि में एक दुर्लभ शाही चील देखा गया है।
पूर्वी शाही चील (एक्विला हेलियाकल)
- यह बड़ा, गहरे भूरे रंग का होता है, जिस पर सफेद स्कैपुलर (कंधे के हाड़) निशान होते हैं तथा इसकी गर्दन का रंग हल्का सुनहरा-क्रीम रंग का होता है तथा इसकी पूँछ का आधार धूसर होता है।
- यह चील मुख्य रूप से दक्षिण-पूर्वी यूरोप तथा पश्चिमी और मध्य एशिया में प्रजनन करता है।
- शीतकाल में यह पक्षी उत्तर-पूर्वी अफ्रीका, पश्चिम एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ भागों की ओर प्रवास करते हैं।
- आवास: पुराने जंगल तथा पहाड़ों, पहाड़ियों और नदियों के किनारे के जंगल आदि इनके सामान्य आवास स्थल हैं।
विशेषताएँ:
- इस विशाल चील के पंखों का फैलाव 1.76 से 2.2 मीटर तथा लंबाई 68 से 90 सेमी. होती है।
- विपरीत लैंगिक द्विरूपता: मादाएं आकार में नर से बड़ी होती हैं।
- तीव्र दृष्टि, शिकार को पकड़ने के लिए घुमावदार पंजों सहित मजबूत पैर।
- सुनहरा शिर और गर्दन, पूँछ का आधार भूरा, कंधे के हाड़ पर सफेद ‘ब्रेसेज़’।
आईयूसीएन संरक्षण स्थिति: सुभेद्य
खतरा: इनके प्रजनन स्थलों को मुख्य रूप से पहाड़ों में सघन वनीकरण, निचले इलाकों में बड़े देशी वृक्षों की कमी, आहार आवासों की हानि और परिवर्तन, छोटे और मध्यम आकार के शिकार प्रजातियों की कमी आदि से खतरा है।
कोले आर्द्रभूमि:
- कोले आर्द्रभूमि केरल के त्रिशूर और मलप्पुरम जिलों में विस्तृत है।
- यह मध्य एशियाई फ्लाईवे (प्रवासी पक्षी प्रजातियों की सहायता) का भाग है।
‘पुनर्योजी कृषि का संग्रह’
संदर्भ:
हाल ही में, ओडिशा सरकार और अर्द्ध-शुष्क उष्ण कटिबंधों के लिए अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT) ने पुनर्योजी कृषि को बढ़ावा देने के लिए ‘पुनर्योजी कृषि का संग्रह’ की शुरुआत की।
पुनर्योजी कृषि के संग्रह के बारें में :
- पुनर्योजी कृषि खेती का एक तरीका है जो मिट्टी की गुणवत्ता पर केंद्रित होता है।
- इसमें सतत खेती के लिए पांच प्रमुख सिद्धांतों की रूपरेखा दी गई है जैसे- मिट्टी की गड़बड़ी को कम करना, फसल विविधता को अधिकतम करना, मिट्टी के आवरण को बनाए रखना, वर्ष भर जीवित जड़ों को बनाए रखना और पशुधन को एकीकृत करना।
- इस संग्रह में समग्र कृषि तकनीकों पर बल दिया गया है जो मिट्टी की गुणवत्ता को बेहतर बनाती हैं, कार्बन अवशोषण को बढ़ाती हैं तथा जलवायु लचीलापन पैदा करती हैं। यह सतत कृषि को बढ़ावा देने के वैश्विक प्रयासों के अनुरूप है।
- यह पुनर्योजी कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण साधन होगा, विशेष रूप से मोटे अनाजों, दालों और तिलहन के लिए।
- यह एक लोचदार और सतत भविष्य की ओर एक कदम है। यह किसानों की आजीविका को पोषित करता है, पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्स्थापित करता है और समुदायों को मजबूत बनाता है।
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