अल्पसंख्यक अधिकार दिवस
संदर्भ:
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने 18 दिसंबर को अल्पसंख्यक अधिकार दिवस मनाया।
इस दिवस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- अल्पसंख्यक अधिकार दिवस प्रतिवर्ष 18 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिवस 1992 में “राष्ट्रीय या जातीय, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की घोषणा” को अपनाने की स्मृति में मनाया जाता है।
- यद्यपि यह घोषणापत्र बाध्यकारी नहीं है, लेकिन यह वैश्विक स्तर पर अल्पसंख्यक अधिकारों की चर्चा को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा करने और इन समुदायों के सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाने के लिए, भारत ने 2013 में आधिकारिक तौर पर अल्पसंख्यक अधिकार दिवस को मान्यता दी।
- इस दिन का उद्देश्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाना, भारतीय समाज में उनके योगदान को स्वीकार करना और उनके संरक्षण व सशक्तिकरण की दिशा में कार्य करना है।
भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकार
अनुच्छेद 29: अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण
- यह अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों की रक्षा करता है। यह प्रावधान करता है कि नागरिकों के किसी भी वर्ग को अपनी विशिष्ट संस्कृति, भाषा या लिपि को संरक्षित करने का अधिकार है।
अनुच्छेद 30: अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार
- सभी अल्पसंख्यकों को, चाहे वे धर्म या भाषा पर आधारित हों, अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उनका प्रशासन करने का अधिकार है।
- राज्य किसी भी शैक्षणिक संस्थान को अनुदान देते समय उसके अल्पसंख्यक दर्जे के आधार पर उसके साथ भेदभाव नहीं कर सकता। अल्पसंख्यक संस्थानों को बहुसंख्यक समुदाय द्वारा स्थापित संस्थानों के समान ही व्यवहार और संरक्षण प्राप्त होना चाहिए।
अनुच्छेद 350B: भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए विशेष अधिकारी
- इसमें राष्ट्रपति द्वारा भाषाई अल्पसंख्यकों के लिए एक विशेष अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान है।
SLINEX 2024
संदर्भ:
भारत के पूर्वी नौसैनिक कमान ने विशाखापट्टनम में श्रीलंका-भारत द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास (SLINEX) के 11वें संस्करण की मेजबानी की।
अन्य संबंधित जानकारी
इस अभ्यास का उद्देश्य भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री संबंधों को और मजबूत करना और एक सुरक्षित, संरक्षित एवं नियम-आधारित समुद्री वातावरण को बढ़ावा देना है।
यह अभ्यास दो चरणों में आयोजित हुआ:
- बंदरगाह (हार्बर) चरण (17-18 दिसंबर): इसमें पेशेवर और सामाजिक आदान-प्रदान के माध्यम से आपसी समझ को मजबूत करने पर बल दिया गया।
- समुद्री चरण (19-20 दिसंबर): इसमें विशेष बल संचालन, गन फायरिंग, संचार अभ्यास, नाविक कला अभ्यास, नेविगेशन विकास, और हेलीकॉप्टर संचालन शामिल थे।
अभ्यास में भाग लेने वाली इकाइयाँ:
- भारत से : INS सुमित्रा (पूर्वी बेड़े का नौसैनिक अपतटीय गश्ती पोत) और एक विशेष बल टीम।
- श्रीलंका से : SLNS सयूरा (अपतटीय गश्ती पोत) और विशेष बल टीम।
SLINEX की शुरुआत 2005 में हुई थी और यह द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यासों की एक महत्वपूर्ण श्रृंखला है, जिसने पिछले कुछ वर्षों में भारत और श्रीलंका के बीच समुद्री सहयोग को मजबूत किया है।
डार्क कॉमेट (धूमकेतु)
संदर्भ:
हाल ही में, नासा के शोधकर्ताओं ने सात नए “डार्क कॉमेट्स” खोजे हैं, जिससे इस खगोलीय पिंडों के वर्ग में कुल 14 धूमकेतु (कॉमेट) शामिल हो गए हैं।
डार्क कॉमेट (धूमकेतु)
ये विचित्र खगोलीय पिंड, क्षुद्रग्रहों जैसे दिखते हैं लेकिन अंतरिक्ष में धूमकेतुओं की तरह गति करते हैं।
डार्क कॉमेट का पहला संकेत 2016 में मिला, जब क्षुद्रग्रह 2003 RM ने असामान्य कक्षीय विचलन प्रदर्शित किया, जिससे संकेत मिला कि यह सामान्य पूंछ के बिना एक धूमकेतु (कॉमेट) हो सकता है।
डार्क कॉमेट्स, पारंपरिक चमकीले धूमकेतुओं की तुलना में अधिक धुंधले होते हैं, और उनकी चमकदार पूंछ नहीं होती। तथा इसके बजाय ये क्षुद्रग्रहों जैसे दिखते हैं, जो अंतरिक्ष के विशाल अंधकार के सामने प्रकाश के एक धुंधले बिंदु के रूप में दिखाई देते हैं।
डार्क कॉमेट, लम्बे दीर्घवृत्ताकार पथों का अनुसरण करते हैं जिससे वे सूर्य के निकट आते हैं तथा उसके बाद सौरमंडल के दूरस्थ क्षेत्रों की ओर वापस चले जाते हैं।
डार्क कॉमेट्स प्रायः छोटे आकार के होते हैं, जिनकी चौड़ाई कुछ मीटर से लेकर कुछ सौ मीटर तक हो सकती है।
डार्क कॉमेट दो प्रकार के होते हैं:
- बाह्य डार्क कॉमेट्स: इनमें बृहस्पति-परिवार के धूमकेतुओं जैसे गुण होते हैं। इनकी कक्षाएँ अत्यधिक दीर्घवृत्ताकार होती हैं और ये बड़े आकार (सैकड़ों मीटर या उससे अधिक व्यास) के होते हैं।
- आंतरिक डार्क कॉमेट्स: ये आंतरिक सौरमंडल (जिसमें बुध, शुक्र, पृथ्वी और मंगल शामिल हैं) में रहते हैं, और ये लगभग वृत्ताकार कक्षाओं में गति करते हैं, तथा आकार (दस मीटर या उससे कम व्यास) में छोटे होते हैं।