संदर्भ:
हाल ही में, केरल सरकार ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर केंद्र सरकार के खिलाफ शुद्ध उधार की सीमा के मुद्दे पर दायर अपने मुकदमे की सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के शीघ्र गठन का अनुरोध किया है।
अन्य संबंधित जानकारी
- केरल सरकार ने उच्चतम न्यायालय में एक संविधान पीठ के गठन के बारे में मौखिक उल्लेख किया, जो यह जांच करेगी कि क्या किसी राज्य को अनुच्छेद 293 के तहत केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक उधार लेने की अपनी सीमा बढ़ाने का “लागू करने योग्य अधिकार” है।
- पंद्रहवें वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार वित्त वर्ष 2023-24 के लिए राज्यों हेतु सामान्य शुद्ध उधार सीमा सकल राज्य घरेलू उत्पाद (Gross State Domestic Product-GSDP) के 3% पर निर्धारित की गई।
अनुच्छेद 293 (राज्यों द्वारा उधार लेना)
- किसी राज्य की कार्यपालिका शक्ति, राज्य की संचित निधि की प्रतिभूति पर भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर (ऐसी सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों) उधार लेने तक विस्तारित होती है, जो उस राज्य के विधानमंडल द्वारा समय-समय पर विधि द्वारा नियत की जाए।
- यदि भारत सरकार से पिछले ऋण का कोई हिस्सा अभी भी बकाया है तो कोई राज्य भारत सरकार की सहमति के बिना ऋण नहीं ले सकता है।
- केरल द्वारा दायर मूल मुकदमे के आधार पर इस वर्ष अप्रैल में दो न्यायाधीशों की पीठ द्वारा मामले को संविधान पीठ को संदर्भित किया गया था।
- संदर्भ में इस बात पर मौलिक प्रश्न उठाए गए थे कि क्या “राजकोषीय विकेन्द्रीकरण” भारतीय संघवाद का एक पहलू है और क्या राज्यों पर शुद्ध उधार सीमा तय करने वाले केंद्रीय नियम संघवाद के सिद्धांतों का उल्लंघन हैं।
- दो न्यायाधीशों की पीठ ने संविधान पीठ से यह भी जांच करने को कहा कि क्या केंद्र द्वारा लगाए गए उधार प्रतिबंध भारतीय रिजर्व बैंक को “सार्वजनिक ऋण प्रबंधक” के रूप में सौंपी गई भूमिका के साथ विवाद में हैं।
राजकोषीय विकेंद्रीकरण
- राजकोषीय विकेंद्रीकरण उप-राष्ट्रीय/स्थानीय सरकारों को व्यय और वित्तपोषण के बारे में निर्णय लेने के लिए अधिक कर लगाने और व्यय करने की शक्ति देने की प्रक्रिया है।
- इसने वर्ष 1990 के बाद ही विभिन्न देशों का ध्यान आकर्षित किया और यह स्थानीय स्तर पर आर्थिक मूल्य, सुशासन, बढ़ी हुई राजनीतिक भागीदारी आदि को बढ़ावा देता है।
- भारत में राजकोषीय संघवाद की विशेषता सरकार के तीन स्तरों के बीच राजस्व और व्यय शक्तियों के संवैधानिक सीमांकन से है।
- पीठ ने यह प्रश्न भी तैयार किया था कि क्या वित्त आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए केंद्र हेतु राज्यों के साथ पूर्व परामर्श करना अनिवार्य है।
संवैधानिक पीठ क्या है?
- अनुच्छेद 145(3) के तहत, जब भी कोई कानूनी मामला उठता है जिसके लिए संविधान के किसी प्रावधान की व्याख्या की आवश्यकता होती है या कोई “महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न” होता है, तो उसे उच्चमत न्यायालय के कम से कम पांच न्यायाधीशों वाली पीठ द्वारा तय किया जाना आवश्यक होता है। ऐसी पीठ को संविधान पीठ कहा जाता है।