संदर्भ:
हाल ही में, विश्व जूनोसिस दिवस पर पशुपालन और डेयरी विभाग (Department of Animal Husbandry and Dairying-DAHD) ने एक बातचीत सत्र का आयोजन किया।
जूनोसिस/ जूनोटिक रोगो:
- जूनोसिस बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी या कवक के कारण होने वाला एक प्रकार का संक्रामक रोग हैं, जो कि जानवरों से मनुष्यों में संचरित हो सकता हैं।
- इसके प्रमुख उदाहरण : – रेबीज, एंथ्रेक्स, इन्फ्लूएंजा (H1N1 और H5N1), निपाह, कोविड-19, ब्रुसेलोसिस और क्षय रोग ।
- सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) के एक अध्ययन के अनुसार, लगभग 60 प्रतिशत रोग जूनोटिक हैं तथा लगभग 70 प्रतिशत संक्रमण पशुओं से उत्पन्न होते हैं।
विश्व जूनोसिस दिवस
- यह दिवस लुई पाश्चर के सम्मान में प्रतिवर्ष मनाया जाता है, जिन्होंने 6 जुलाई, 1885 को एक जूनोटिक रोग, रेबीज का पहला सफल टीका लगाया था।
- यह दिवस जूनोटिक रोगों के बारे में जागरूक करने, साथ ही ऐसे रोगों जो जानवरों से मनुष्यों में फैल सकती हैं और इनके निवारक और नियंत्रण उपायों को बढ़ावा के प्रति समर्पित है।
जूनोटिक और गैर-जूनोटिक रोगों में अंतर
- यद्यपि जूनोटिक रोग पशु और मानव स्वास्थ्य दोनों के लिए खतरा पैदा करते हैं, फिर भी मुख्य रूप से पशुओं को प्रभावित करने वाले गैर-जूनोटिक रोगों का वर्गीकरण बेहद महत्वपूर्ण है।
- कई पशुधन रोग जैसे खुरपका-मुँहपका रोग, पी.पी.आर, लम्पी स्किन डिजीज, क्लासिकल स्वाइन फीवर और रानीखेत रोग प्रजाति-विशिष्ट होते हैं तथा ये मनुष्यों को प्रभावित नहीं करते हैं।
- लक्षित सार्वजनिक स्वास्थ्य रणनीतियों हेतु इस अंतर को समझना महत्वपूर्ण है, ताकि पशुओं के प्रति अनावश्यक पूर्वाग्रह से बचा जा सके।
अफ़्रीकी स्वाइन फीवर (African Swine Fever-ASF)
- हाल ही में, केरल के त्रिशूर में पाया गया अफ़्रीकी स्वाइन फीवर (ASF) गैर-जूनोटिक रोग है और इसके लिए अभी तक कोई टीका उपलब्ध नहीं है।
- पहली बार वर्ष 2020 में असम और अरुणाचल प्रदेश में अफ़्रीकी स्वाइन फीवर की पुष्टि की गई थी। यह रोग अब देश के लगभग 24 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में फैल चुका है।
- इसके नियंत्रण हेतु राज्यों के पशुपालन विभाग ने त्वरित प्रतिक्रिया दल गठन किया हैं।
रोकथाम हेतु सरकारी द्वारा की गई पहल
जूनोटिक रोगों की प्रभावी रोकथाम निम्नलिखित कई प्रमुख रणनीतियों पर निर्भर करती है:
- टीकाकरण कार्यक्रम: मनुष्यों और पशुओं दोनों के लिए सुव्यवस्थित टीकाकरण कार्यक्रम लागू करना आवश्यक है।
- उत्तम स्वच्छता पद्धति: समुदायों में उत्तम स्वच्छता पद्धतियों को बढ़ावा देने से रोगाणुओं के प्रसार को सीमित करने में मदद मिलती है।
- उन्नत पशुपालन व्यवस्था: पशुपालन पद्धतियों को बेहतर बनाने से पशुधन आबादी में रोग फैलने का खतरा कम हो जाता है।
- रोगवाहक नियंत्रण: रोग फैलाने वाले कीटों और अन्य जीवों को नियंत्रित करना एक और महत्वपूर्ण कदम है।
वन हेल्थ दृष्टिकोण: मानव, पशु और पर्यावरणीय स्वास्थ्य के बीच अंतर्संबंध को पहचानते हुए, जूनोटिक रोगों से व्यापक स्तर पर निपटने के लिए वन हेल्थ दृष्टिकोण तैयार किया गया है।
- इसके तहत राष्ट्रीय संयुक्त प्रकोप प्रतिक्रिया दल (National Joint Outbreak Response Team-NJORT) का गठन किया गया है। राष्ट्रीय संयुक्त प्रकोप प्रतिक्रिया दल भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय तथा पर्यावरण मंत्रालय का एक संयुक्त प्रयास है।
- यह टीम अत्यधिक रोगजनक एवियन इन्फ्लूएंजा (Highly Pathogenic Avian Influenza-HPAI) के सहयोगात्मक प्रकोप की जाँच में सक्रिय रूप से शामिल रही है।
- पशुपालन और डेयरी विभाग (DAHD) ने ब्रुसेला और रेबीज टीकाकरण के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान के साथ-साथ प्रमुख पशु रोगों के लिए व्यापक निगरानी योजनाओं के साथ इन प्रयासों को और मजबूत किया है।
जागरूकता का प्रभाव
- जन जागरूकता अभियान, जूनोटिक रोगों का शीघ्र पता लगाने और रोकथाम करने के साथ-साथ पशु स्वास्थ्य और सुरक्षा हेतु ज्ञात पद्धतियों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- जूनोटिक और गैर-जूनोटिक रोगों के बीच के अंतर संबंधी जानकारी को संबंधित समुदायों तक पहुँचाने से पशुओं के साथ समुचित व्यवहार को बढ़ावा मिलने के साथ-साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य लचीलापन भी बढ़ता है।