संबंधित पाठ्यक्रम:
सामान्य अध्ययन 3: आईटी, अंतरिक्ष, कंप्यूटर, रोबोटिक्स, नैनो-टेक्नोलॉजी, जैव-टेक्नोलॉजी और बौद्धिक संपदा अधिकारों से संबंधित मुद्दों के क्षेत्र में जागरूकता।
संदर्भ:
हाल ही में, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने CRISPR-Cas9 तकनीक का उपयोग करके दुनिया की पहली दो जीनोम-संपादित (GE) चावल किस्में विकसित की हैं।
अन्य संबंधित जानकारी
- ICAR से संबद्ध दो संस्थानों – हैदराबाद स्थित भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान (IIRR) और भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) – ने लोकप्रिय सांबा मसूरी (BPT-5204) और कोंडाडोरा सन्नल्लू (MTU-1010) किस्मों के बेहतर GE उत्परिवर्ती CRISPR-Cas SDN-1 (साइट-डायरेक्टेड न्यूक्लीज-1) प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके विकसित किए हैं।
- दो नई जी.ई. चावल किस्मों को डी.आर.आर. धान 100 ( कमला) और पूसा डी.एस.टी. चावल 1 नाम दिया गया है ये दोनों किस्में जलवायु-अनुकूल, जल संरक्षण, बेहतर उपज और उच्च नाइट्रोजन दक्ष गुणों वाली हैं।
- इस उपलब्धि को वैज्ञानिकों और किसानों द्वारा जीनोम संपादन का उपयोग करके सटीक प्रजनन में भारत की पहली बड़ी सफलता के रूप में मनाया जा रहा है।
डीआरआर धन 100 (कमला)
- इस किस्म को ICAR-भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान (ICAR-IIRR), हैदराबाद द्वारा विकसित किया गया है।
- यह किस्म अपने मूल किस्म, सांबा महसूरी (बीपीटी 5204 ) की तुलना में काफी अधिक उपज, बेहतर सूखा सहिष्णुता और शीघ्र परिपक्वता प्रदान करती है।
- साइटोकाइनिन ऑक्सीडेज 2 (OsCKX2) जीन जिसे Gn1a के रूप में भी जाना जाता है, को लक्षित करके जीनोम संपादन के माध्यम से इस किस्म को विकसित किया, ताकि प्रति पैनिकल में अनाज की संख्या बढ़ाई जा सके।
• इस OsCKX2-कमी वाले उत्परिवर्ती एलील को साइट-निर्देशित न्यूक्लिऐस 1 (SDN1 ) जीनोम संपादन के माध्यम से संशोधित किया गया, ताकि चावल के पुष्पगुच्छ के ऊतकों में साइटोकाइनिन का स्तर बढ़ाया जा सके।
- चावल में OsCKX2 नामक जीन (जो साइटोकाइनिन के विघटन में शामिल साइटोकाइनिन ऑक्सीडेज एंजाइम को एनकोड करता है) के नष्ट होने से चावल के पुष्पगुच्छ के ऊतकों में वृद्धि को बढ़ावा देने वाले साइटोकाइनिन हार्मोन को बढ़ावा मिलता है, जिसके परिणामस्वरूप अनाज की उपज में वृद्धि होती है और उत्पादकता बेहतर होती है।
- यह तकनीक किसी भी विदेशी डीएनए को शामिल किए बिना सटीक उत्परिवर्तन लाती है ।

• कमला किस्म को प्रमुख चावल उत्पादक राज्यों में खेती के लिए अनुशंसित किया गया है, जिनमें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल (जोन VII), छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश (जोन V), ओडिशा, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल (जोन III) शामिल हैं।
पूसा डीएसटी चावल 1
• इस नई जीनोम-संपादित (GE) किस्म को ICAR-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा व्यापक रूप से खेती की जाने वाली बारीक-अनाज किस्म MTU 1010 के आधार पर विकसित किया गया है, जिसमें CRISPR-Cas9 की SDN-1 तकनीक का उपयोग करके DST जीन को संपादित करना शामिल है।
- तनाव प्रतिरोध को दबाने के लिए जिम्मेदार जीन को नष्ट करके, पुनः SDN-1 प्रौद्योगिकी का उपयोग करके, वैज्ञानिकों ने कम रंध्र घनत्व और जल उपयोग वाले पौधे प्राप्त किए, साथ ही साथ बेहतर कल्ले, अनाज की उपज और लवण सहनशीलता भी प्राप्त की।
• यह नई किस्म सूखा और लवण सहिष्णुता (DST) जीन को लक्षित करती है, ताकि पौधे की कठोर मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों के प्रति लचीलापन में सुधार हो सके।
• यह नई किस्म लवणीय और क्षारीय मिट्टी वाले किसानों के लिए प्रासंगिक है, जहां पारंपरिक किस्में खराब प्रदर्शन करती हैं।
• चावल की इस किस्म को प्रमुख चावल उत्पादक राज्यों में खेती के लिए अनुशंसित किया गया है, जिनमें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु, पुडुचेरी, केरल (जोन VII), छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश (जोन V), ओडिशा, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल (जोन III) शामिल हैं।
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अनुप्रयुक्त जैव प्रौद्योगिकी में अनुसंधान और विकास संबंधी उपलब्धियाँ क्या हैं? ये उपलब्धियाँ समाज के गरीब वर्गों के उत्थान में कैसे मदद करेंगी? (2021)
मुख्य परीक्षा अभ्यास प्रश्न
हाल ही में विकसित जीनोम-संपादित चावल किस्मों के संदर्भ में भारतीय कृषि में जीन संपादन तकनीक के महत्व पर चर्चा करें। इसके व्यापक रूप से अपनाए जाने से जुड़े संभावित लाभ और चिंताएँ क्या हैं?