संदर्भ: 

विश्व आयोडीन अल्पता दिवस को वैश्विक आयोडीन अल्पता विकार निवारण दिवस के रूप में भी जाना जाता है। इसे प्रत्येक वर्ष 21 अक्टूबर को मनाया जाता है।

विश्व आयोडीन अल्पता दिवस     

  • इसका उद्देश्य स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में आयोडीन की आवश्यक भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाना और आयोडीन की कमी के परिणामों से अवगत कराना  है।
  • वर्ष 2002 में, विभिन्न संगठनों द्वारा  जागरूकता कार्यक्रम को शुरू किया गया तथा समय के साथ-साथ अधिकांश  देश इस अभियान से जुडने लगे। आयोडीन आयोडीन थायरॉइड हार्मोन, थायरोक्सिन (T4) और ट्राईआयोडोथायरोनिन (T3) का एक आवश्यक घटक है, जो उपापचय को नियंत्रित करने के साथ-साथ भ्रूण और शिशु के विकास हेतु महत्वपूर्ण है।   
  • आयोडीन युक्त नमक विभिन्न खाद्य पदार्थों (जैसे, समुद्री भोजन, दुग्ध उत्पाद ) में पाया जाता है।   
  • आयोडीन कई रूपों में मौजूद होता है, जिसमें सोडियम और पोटेशियम लवण, अकार्बनिक आयोडीन (I2), आयोडेट और आयोडाइड शामिल हैं। 

आयोडाइड (सबसे आम रूप) जो पेट में जल्दी अवशोषित हो जाता है; इसकी अधिकांश मात्रा  मूत्र के माध्यम से उत्सर्जित होती है। आयोडीन की कमी     

लगभग 10-20 mcg/दिन से कम आयोडीन का सेवन करने पर हाइपोथायरायडिज्म ( गण्डमाला/ घेंघा रोग ) होता है।

  • गण्डमाला (GOI-tur) थायरॉयड ग्रंथि की अनियंत्रित वृद्धि है। थायरॉयड एक तितली के आकार की ग्रंथि है, जो गर्दन पर  कंठ (Adam’s apple) के ठीक नीचे स्थित होती है।

गर्भवती महिलाओं में आयोडीन का सेवन लगभग 10-20 mcg/दिन से कम होने पर भ्रूण में न्यूरोडेवलपमेंटल कमी और विकास मंदता के साथ-साथ 20वें सप्ताह से पहले  अचानक गर्भपात और मृत बच्चे का जन्म भी हो सकता है।

गर्भाशय में दीर्घकालिक, आयोडीन की कमी के कारण बौनापन  की  स्थिति उत्पन्न होती है। बौनापन (क्रेटिनिज्म) आयोडीन की कमी विशेषकर गर्भावस्था के आरंभिक चरण में थायरॉइड हार्मोन की कमी के कारण होने वाली गंभीर शारीरिक और मानसिक मंदता की स्थिति है। वयस्कों में, हल्की से मध्यम आयोडीन की कमी से गण्डमाला/घेंघा रोग हो सकता है। साथ ही, हाइपोथायरायडिज्म के कारण मानसिक  कार्य क्षमता में कमी आ सकती है। राष्ट्रीय स्तर पर आयोडीन की कमी को दूर करने हेतु किए गए प्रयास

राष्ट्रीय घेंघा नियंत्रण कार्यक्रम (NGCP), 1962: इसका उद्देश्य मानसिक और शारीरिक मंदता, बौनापन और मृत जन्म से जुड़ी आयोडीन की कमी को दूर करना है।

राष्ट्रीय आयोडीन अल्पता विकार नियंत्रण कार्यक्रम (NIDDCP): वर्ष 1992 में, राष्ट्रीय घेंघा नियंत्रण कार्यक्रम को व्यापक बनाने के उद्देश्य से इसका नाम बदलकर एनआईडीडीसीपी कर दिया गया, ताकि आयोडीन अल्पता विकार (IDD) की विस्तृत पहुँच  के साथ-साथ सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इसका क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जा सके।

  • देश में आईडीडी की व्यापकता को 5 प्रतिशत से कम करना। 
  • घरेलू स्तर परआयोडीन युक्त नमक (15 पीपीएम) का 100 प्रतिशत उपभोग सुनिश्चित करना।

सभी खाद्य नमक को आयोडीन युक्त बनाना   

  • वर्ष 1984 में भारत में सभी खाद्य नमक को आयोडीनयुक्त करने का एक प्रमुख नीतिगत निर्णय लिया गया, जिसके तहत वर्ष 1986 में चरणबद्ध तरीके से पहल शुरू की गई।
  • वर्ष 1992 तक देश का लक्ष्य पूर्णतः आयोडीन युक्त नमक का सेवन करना था।
  • वर्तमान में, भारत प्रतिवर्ष 65 लाख मीट्रिक टन आयोडीन युक्त नमक का उत्पादन करता है, जो जनसंख्या की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त है।

राष्ट्रीय आयोडीन अल्पता विकार नियंत्रण कार्यक्रम (NIDDCP) की उपलब्धियाँ    

  • कुल गण्डमाला दर (TGR) में कमी: इस कार्यक्रम के कारण देश भर में कुल गण्डमाला दर, आयोडीन की कमी का एक प्रमुख संकेतक, में अप्रत्याशित कमी देखने को मिली।
  • आयोडीन युक्त नमक का उत्पादन और खपत में वृद्धि: आयोडीन युक्त नमक का वार्षिक उत्पादन 65  मिलियन मीट्रिक टन (एमटी) तक पहुँच गया है, जो भारतीय आबादी की आहार संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त है।
  • विनियामक उपाय: खाद्य सुरक्षा और मानक (विक्रय प्रतिषेध और निर्बंधन) विनियम, 2011 के विनियम 2.3.12 के अंतर्गत,  मानव के प्रत्यक्ष उपभोग के लिए साधारण नमक की बिक्री प्रतिबंधित है, a अर्थात  नमक आयोडीनयुक्त होना चाहिए । 
  • निगरानी प्रयोगशालाओं की स्थापना: राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) को दिल्ली में आयोडीन की कमी से होने वाले विकारों की निगरानी के लिए स्थापित एक राष्ट्रीय संदर्भ प्रयोगशाला है।
  • राज्य स्तरीय क्रियान्वयन: इस कार्यक्रम का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए 35 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों ने अपने-अपने राज्य स्वास्थ्य निदेशालयों में आयोडीन अल्पता विकार (IDD) नियंत्रण प्रकोष्ठ और संबंधित राज्य आईडीडी निगरानी प्रयोगशालाएँ स्थापित की हैं।

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