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सामान्य अध्ययन-2: सरकारी नीतियाँ और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए हस्तक्षेप और उनके अभिकल्पन तथा कार्यान्वयन से संबंधित विषय।
संदर्भ: हाल ही में, सरकार ने लोकसभा में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 (मनरेगा/MGNREGA) के स्थान पर ‘विकसित भारत – रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) की गारंटी’ विधेयक, 2025 पेश किया।
विधेयक की मुख्य विशेषताएँ

- लक्ष्य: यह ग्रामीण विकास के एक ऐसे ढांचे की स्थापना करेगा जो भविष्योन्मुखी, योजनाओं के एकीकरण पर केंद्रित होगा और शत-प्रतिशत लाभ (संतृप्ति) सुनिश्चित करेगा।
- रोजगार की गारंटी: यह योजना उन वयस्कों के लिए, जो अकुशल शारीरिक श्रम हेतु स्वेच्छा से आगे आते हैं, प्रति ग्रामीण परिवार वैधानिक मजदूरी रोजगार की गारंटी को प्रति वित्तीय वर्ष 100 दिनों से बढ़ाकर 125 दिन करती है।
- ग्रामीण सार्वजनिक कार्यों के लिए एकीकृत राष्ट्रीय ढांचा: इस विधेयक के अधीन समस्त कार्यों का उद्गम उप-धारा (3) द्वारा निर्धारित ‘विकसित ग्राम पंचायत योजनाओं’ से होगा। इन योजनाओं को ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर पर एकीकृत करते हुए अंततः ‘विकसित भारत राष्ट्रीय ग्रामीण अवसंरचना स्टैक’ में समाहित किया जाएगा, जो राष्ट्रीय विकास प्राथमिकताओं के अनुरूप परियोजनाओं की एक विस्तृत सूची होगी।
• विषयगत प्राथमिकता: विकसित भारत राष्ट्रीय ग्रामीण अवसंरचना स्टैक चार विषयगत क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करेगा:
(i) जल सुरक्षा
(ii) ग्रामीण अवसंरचना
(iii) आजीविका-संबंधी अवसंरचना
(iv) चरम मौसमी घटनाओं का न्यूनीकरण
- इन योजनाओं को पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के साथ एकीकृत किया जाएगा और राष्ट्रीय स्तर पर भी समेकित किया जाएगा।
• पूर्ण पारदर्शी कार्य प्रणाली: यह डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे (DPI) पर आधारित होगा, जिसमें बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण, स्थानिक-प्रौद्योगिकी आधारित योजना और निगरानी, रियल टाइम डैशबोर्ड के साथ मोबाइल-आधारित रिपोर्टिंग, एआई-सक्षम विश्लेषण और सुदृढ़ सामाजिक अंकेक्षण तंत्र शामिल होंगे, जो पारदर्शी, कुशल और निष्पक्ष कार्यान्वयन सुनिश्चित करेंगे।
• कार्यान्वयन और निगरानी: यह एक राष्ट्रीय स्तर की संचालन समिति का गठन करता है, जो उच्च स्तरीय देखरेख प्रदान करेगी और मानक आवंटन की सिफारिश करेगी।
• यह प्रत्येक राज्य के लिए एक संचालन समिति के गठन का भी प्रावधान करता है। राज्य समिति के मुख्य कार्यों में शामिल हैं:
(i) अन्य कार्यक्रमों के साथ अभिसरण की निगरानी करना।
(ii) जिला योजनाओं को राज्य योजनाओं में समेकित करना।
(iii) राष्ट्रीय समिति के साथ समन्वय स्थापित करना।
• एकीकृत, संपूर्ण-सरकार ग्रामीण विकास ढांचा: सभी कार्यों की पहचान विकसित ग्राम पंचायत योजनाओं (VGPPs) के माध्यम से की जाएगी, जो ‘बॉटम-अप’, अभिसरण-आधारित और संतृप्ति-उन्मुख (शत-प्रतिशत लाभ) होंगी।
- इन योजनाओं को ब्लॉक, जिला और राज्य स्तर पर समेकित किया जाएगा ताकि व्यापक क्षेत्रीय प्राथमिकताओं के साथ उनका संरेखण सुनिश्चित किया जा सके।
- विकसित ग्राम पंचायत योजनाएं (VGPPs) स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करके तैयार की जाएंगी और समन्वित एवं कुशल योजना बनाने के लिए इन्हें पीएम गति शक्ति के साथ एकीकृत किया जाएगा।
- साप्ताहिक प्रकटीकरण बैठकें: ग्राम पंचायतों द्वारा ग्राम पंचायत भवनों में इन बैठकों का आयोजन किया जाएगा, जिनमें कार्यों की स्थिति, भुगतान, शिकायतों, कार्य की प्रगति, मस्टर रोल आदि का विवरण प्रस्तुत किया जाएगा। यह विवरण स्वचालित रूप से तैयार किया जाएगा और सार्वजनिक रूप से सुलभ भौतिक तथा डिजिटल प्रारूपों में प्रदर्शित किया जाएगा।
• राज्यों को शक्तियाँ:
- राज्यों को एक वित्तीय वर्ष में कुल 60 दिनों तक की ऐसी अवधियाँ पहले से अधिसूचित करने का अधिकार होगा, जिसके दौरान इस विधेयक के तहत कार्य नहीं किए जाएंगे। ऐसा बुआई और कटाई के व्यस्त सत्रों के दौरान कृषि श्रमिकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए किया जाएगा।
- प्रत्येक राज्य सरकार के लिए यह आवश्यक है कि वह इस अधिनियम के लागू होने के छह महीने के भीतर, इसमें प्रस्तावित गारंटी को प्रभावी बनाने के लिए एक योजना तैयार करे।
• फंडिंग पैटर्न (वित्तपोषण का स्वरूप): यह एक केंद्र प्रायोजित योजना (CSS) के रूप में संचालित की जाएगी, जिसमें उत्तर-पूर्वी और हिमालयी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए वित्त साझाकरण अनुपात 90:10 होगा और अन्य सभी राज्यों के लिए यह अनुपात 60:40 होगा।
• बेरोजगारी भत्ता: यदि आवेदन के 15 दिनों के भीतर रोजगार प्रदान नहीं किया जाता है, तो राज्य सरकारों द्वारा निर्धारित दरों पर बेरोजगारी भत्ते का भुगतान किया जाएगा।
विधेयक का महत्व:
- ग्रामीण विकास ढाँचा: ग्रामीण अवसंरचना निर्माण में खंडित व्यवस्थाओं के स्थान पर एक सुसंगत और भविष्योन्मुखी दृष्टिकोण अपनाना, ताकि असमानताओं को कम किया जा सके और समावेशी विकास को बढ़ावा मिले।
- पुनर्गठित दृष्टिकोण : यह विधेयक ग्रामीण आकांक्षाओं के विकासवादी स्वरूप को संबोधित करता है। यह तकनीकी नवाचारों का लाभ उठाते हुए केंद्र, राज्य और स्थानीय स्तर की योजनाओं के मध्य अभिसरण सुनिश्चित करता है।
- विकसित भारत के विजन का समर्थन: यह विधेयक ‘विकसित भारत @2047’ के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ग्रामीण श्रमशक्ति का कुशल नियोजन सुनिश्चित करता है। आजीविका सुरक्षा के माध्यम से यह ग्रामीण कार्यबल को सशक्त बनाकर उन्हें राष्ट्र के आर्थिक भविष्य का मुख्य आधार बनाता है।
