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सामान्य अध्ययन-3: संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन।
संदर्भ: केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा जारी वार्षिक भूजल गुणवत्ता रिपोर्ट 2025 के अनुसार, भूजल के जिन नमूनों का परीक्षण किया गया उनमें से लगभग 28.3% एक या एक से अधिक मापदंडों पर भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा तय की गई स्वीकार्य सीमा का उल्लंघन करते हैं। नतीजतन, स्थानीय स्तर पर भूजल की गुणवत्ता को लेकर चिंताएँ बनी हुई है।
रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष
- प्रमुख योगदानकर्ता:
- नाइट्रेट: राजस्थान (50.5%), कर्नाटक (45.5%), तमिलनाडु (36.3) में उच्चतम स्तर जिसका कारण उर्वरक, सीवेज और पशु अपशिष्ट है।
- यूरेनियम: पंजाब (मानसून के बाद 62.5%), हरियाणा (40-50%), दिल्ली (13-15%) में उच्च स्तर जिसका कारण भूगर्भीय गतिविधि और भूजल का अत्यधिक निष्कर्षण है।
- फ्लोराइड: राजस्थान (41%), तेलंगाना, आंध्र प्रदेश; मुख्यतः चट्टानों से (प्राकृतिक रूप से)।
- लवणता/वैद्युत चालकता: शुष्क क्षेत्र जैसे राजस्थान (47%), दिल्ली (33.33%, दूसरा सबसे खराब स्तर); पीने/ सिंचाई के लिए अनुपयुक्त।
- भारी धातुएँ: गंगा के मैदानों (पश्चिम बंगाल, बिहार) में आर्सेनिक; दिल्ली में पारे का उच्च स्तर; असम, पूर्वी भारत में मैगनीज/लौह।

भूजल संदूषण के कारण
- भूगर्भीय कारक: चट्टानों के प्राकृतिक अपक्षयण से भूजल में फ्लोराइड, यूरेनियम और आर्सेनिक जैसे तत्व मिल जाते हैं। क्षारीय मृदा और बाइकार्बोनेट यूरेनियम की घुलनशीलता को बढ़ाते हैं।
- मानवजनित कारक: कृषि के लिए 87% भूजल निष्कर्षण होता है जिससे उर्वरक और कीटनाशकों का बहाव होता है और इससे नाइट्रेट का स्तर बढ़ता है। उद्योगों से सीसा (Lead) जैसी भारी धातुओं के निर्मुक्त होने, सीवेज का रिसाव, पशु अपशिष्ट से भी जल दूषित होता है। इसके अतिरिक्त शहरीकरण में पक्की सतहों के कारण जल पुनर्भरण (Recharge) क्षमता में कमी आती है, और अत्यधिक गहराई तक पम्पिंग करने से जल में दूषित पदार्थों का जमाव होता है।
सरकारी पहल
- जल जीवन मिशन (JJM): जल जीवन मिशन पीने योग्य नल के पानी के लिए BIS:10500 मानकों को प्राथमिकता देता है, रासायनिक संदूषक-प्रभावित क्षेत्रों के लिए 10% धनराशि का आवंटन करता है, और पेयजल गुणवत्ता निगरानी ढाँचा, 2021 का प्रसार करता है।
- परीक्षण अवसंरचना: देश भर में 2,180 प्रयोगशालाएँ कार्यरत हैं। प्रत्येक समुदाय में 5 ग्रामीण महिलाओं को फील्ड टेस्ट किट (Field Test Kits – FTKs) के उपयोग का प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वे नियमित परीक्षण और उपचारात्मक कार्रवाई में अपना योगदान दे सकें।
- सामुदायिक शुद्धिकरण: राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (UTs) द्वारा दूषित बस्तियों में CWPPs स्थापित किए जाते हैं जिससे स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति की जा सके।
- केंद्रीय भूजल बोर्ड निगरानी: केंद्रीय भूजल बोर्ड अपने डेटा को वार्षिक रिपोर्ट, बुलेटिन और अलर्ट के माध्यम से प्रसारित करता है। यह असुरक्षित/संवेदनशील क्षेत्रों में बार-बार नमूनाकरण के लिए एक नई मानक परिचालन प्रक्रिया (SoP) को अपनाता है।
- आर्सेनिक में कमी लाना: केंद्रीय भूजल बोर्ड, 525 आर्सेनिक-मुक्त कुओं (जैसे उत्तर प्रदेश में 294, पश्चिम बंगाल में 191) के लिए सीमेंट सीलिंग तकनीक विकसित कर रहा है।
- पुनर्भरण कार्यक्रम: जल शक्ति अभियान, जल संचय जन भागीदारी, टल भूजल योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना और मनरेगा (MGNREGS) कृत्रिम पुनर्भरण के माध्यम से संदूषकों के तनुकरण (Dilution) को बढ़ावा देते हैं।
- सतही जल की सफाई: राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन और राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना STPs और ETPs के लिए धन का आवंटन करती है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों (SPCBs) के माध्यम से जल अधिनियम, 1974 और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के मानकों को लागू करता है।
केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) के बारे में
- CGWB जल शक्ति मंत्रालय के अंतर्गत जल संसाधन विभाग के अधीन एक वैज्ञानिक विभाग है।
- पूर्ववर्ती अन्वेषी नलकूप संगठन का नाम बदलकर 1970 में केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) कर दिया गया था। इसके बाद, 1972 में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के भूजल प्रभाग को भी इसमें मिला दिया गया।
- CGWB का मुख्यालय फरीदाबाद में स्थित है। इसके 18 क्षेत्रीय कार्यालय हैं।
- राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन कार्यक्रम (NAQUIM) के एक भाग के रूप में, CGWB व्यापक जलभृत मानचित्रण का कार्य करता है और अध्ययन क्षेत्र के भूजल स्तरों और गुणवत्ता का विश्लेषण भी करता है।
- 1997 से केंद्रीय भूजल बोर्ड केंद्रीय भूजल प्राधिकरण के कार्यों का भी निर्वहन कर रहा है। CGWA का मुख्य कार्य देश में भूजल के विकास और प्रबंधन को विनियमित और नियंत्रित करना है।
