संदर्भ:

हाल ही में केरल के वायनाड जिले में भूस्खलन हुआ, जिससे जान-माल की हानि हुई है।

अन्य संबंधित जानकारी:

  • इस विनाशकारी घटना के कारण बड़े क्षेत्र मलबे के नीचे दब गए, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 84 लोगों की मृत्यु हो गई तथा अनेक लोग घायल हो गए हैं।
  • 23 जुलाई को प्रारंभिक चेतावनी में संकेत दिया गया था कि केरल के पश्चिमी तटीय क्षेत्र में भारी वर्षा होगी, तथा 25 जुलाई को चेतावनी को “अत्यंत भारी” वर्षा में अद्यतन कर दिया गया।
  • जुलाई 2022 में संसद में पेश किए गए एक दस्तावेज़ के अनुसार, 2017 और 2022 के बीच केरल में 2,239 भूस्खलन हुए, जो उस दौरान भारत में हुए सभी भूस्खलनों का 59% से अधिक है। 

अनदेखी की गई चेतावनियाँ और अनियंत्रित विकास:

  • पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (WGEEP) के अध्यक्ष के रूप में, प्रसिद्ध पारिस्थितिकीविद् (ecologist ) माधव गाडगिल ने इस आपदा के लिए राज्य द्वारा महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी सिफारिशों की उपेक्षा को जिम्मेदार ठहराया है।
  • गाडगिल ने बताया कि प्रभावित क्षेत्रों को उनकी उच्च पारिस्थितिकी संवेदनशीलता के कारण “विकास-रहित क्षेत्र” घोषित किया गया है।
  • ब्रिटिश काल में चाय बागानों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले इन क्षेत्रों में  व्यापक विकास हुआ है, जिसमें रिसॉर्ट और कृत्रिम झीलें भी शामिल हैं, जिसे प्रतिबंधित किया जाना चाहिए था।
  • आस-पास की खदानों के कारण इस क्षेत्र की संवेदनशीलता और बढ़ गई थी। हालाँकि अब ये खदानें बंद हो चुकी हैं, लेकिन इनकी पूर्व गतिविधियों के कारण भूस्खलन हो सकता है, खासकर भारी बारिश के दौरान।

पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (WGEEP) की रिपोर्ट

  • प्रसिद्ध पारिस्थितिकीविद् माधव गाडगिल की अध्यक्षता में पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी विशेषज्ञ पैनल (WGEEP) ने 2011 में पश्चिमी घाट की पारिस्थितिक स्थिति पर एक व्यापक रिपोर्ट प्रस्तुत की  थी और इसके संरक्षण और सतत विकास के लिए उपायों की सिफारिश की थी।

प्रमुख निष्कर्ष और सिफारिशें:

  • पारिस्थितिक संवेदनशीलता क्षेत्र: रिपोर्ट ने पारिस्थितिक संवेदनशीलता के आधार पर पश्चिमी घाट को तीन क्षेत्रों में वर्गीकृत किया है:
  1. पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र 1 (ESZ 1): बहुत अधिक पारिस्थितिक संवेदनशीलता वाले क्षेत्र।
  2. पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र 2 (ESZ 2): उच्च पारिस्थितिक संवेदनशीलता वाले क्षेत्र।
  3. पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र 3 (ESZ 3): मध्यम पारिस्थितिक संवेदनशीलता वाले क्षेत्र।
  • विकास प्रतिबंध: रिपोर्ट में ESZ 1 और ESZ 2 में विकास गतिविधियों पर कड़े प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की गई है, जिसमें नए बांधों, खनन और बड़े पैमाने पर अवसंरचना परियोजनाओं पर प्रतिबंध शामिल है।
  • जन भागीदारी: ग्राम सभाओं के माध्यम से संरक्षण प्रयासों में स्थानीय समुदायों को शामिल करने के महत्व पर बल दिया गया है।
  • पश्चिमी घाट पारिस्थितिकी प्राधिकरण: पश्चिमी घाट के प्रबंधन और संरक्षण के लिए एक समर्पित प्राधिकरण की स्थापना का प्रस्ताव दिया गया है।

केरल में भूस्खलन बार-बार होने वाली घटना क्यों हैं?

  • भौगोलिक कारक: केरल की भौगोलिक स्थिति, ढलान और विविध भूभाग के कारण भूस्खलन के लिए अतिसंवेदनशील है। बीस डिग्री से अधिक ढलान वाले क्षेत्रों में भूस्खलन की संभावना अधिक होती है, और ये पश्चिमी घाट में व्यापक रूप से पाए जाते हैं।
  • जलवायु और पर्यावरणीय कारक: जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा में वृद्धि से मिट्टी में संतृप्ति और अस्थिरता उत्पन्न होती है। केरल में असामान्य गर्मी और वर्षा होती है, अनुमान लगाया जा रहा है कि सभी जिलों में तापमान और वर्षा में वृद्धि होगी।
    ये भूवैज्ञानिक विशेषताएं, विशेष रूप से भारी वर्षा के दौरान भूस्खलन की संवेदनशीलता को बढ़ाती हैं। 
  • मानवीय गतिविधियाँ: खनन, उत्खनन, वनों की कटाई, निर्माण आदि जैसी मानवीय गतिविधियाँ भूस्खलन के जोखिम को बढ़ाती हैं।
  • शोध और अवलोकन का अभाव: अत्यधिक बारिश 10-15 डिग्री की हल्की ढलान पर भी भूस्खलन के खतरे को बढ़ा सकती है। स्विट्जरलैंड जैसे देशों के विपरीत भारत में भूस्खलन प्रवाह मार्गों के लिए पूर्वानुमानित मानचित्रों का अभाव है।

समाधान और अनुशंसाएँ

  • तैयारी और रोकथाम : भूविज्ञान, इंजीनियरिंग, राजस्व और कृषि विभागों के बीच समन्वय सहित सक्रिय उपायों पर जोर।
  • अनुकूलित पर्यावरण नीतियाँ : ऊंचाई, मिट्टी के प्रकार और जलग्रहण क्षेत्र की विशेषताओं जैसे कारकों के आधार पर नीतियां तैयार करें।
  • जोखिम वर्गीकरण : बाहरी दबावों से मुक्त होकर जोखिम के आधार पर क्षेत्रों को वर्गीकृत करने के लिए विस्तृत सर्वेक्षण आयोजित करना।
  • एहतियाती और प्रदूषक भुगतान सिद्धांत : भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मान्यता प्राप्त इन सिद्धांतों से मार्गदर्शन।
  • सक्रिय बनाम प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण : सक्रिय उपायों के महत्व पर जोर दें, जिसमें सूचना तक सार्वजनिक पहुंच और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए विशेष कानून शामिल हैं।

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