संबधित पाठ्यक्रम: 

सामान्य अध्ययन -2: सरकारी नीतियां और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए और हस्तक्षेप तथा उनके अभिकल्पन और कार्यान्वयन से संबंधित विषय।

संदर्भ: 

हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने अप्रैल में पारित वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 पर पूर्णतः रोक लगाने से तो इनकार कर दिया, परन्तु इस अधिनियम के कई प्रावधानों के संचालन को निलंबित करने का अंतरिम आदेश दिया।

मामले की पृष्ठभूमि

  • वक्फ अधिनियम, 1995 को 2013 में संशोधित किया गया था। इसने वक्फ संपत्तियों के प्रशासन और राज्य वक्फ बोर्डों की स्थापना के लिए वैधानिक ढाँचे का प्रावधान किया।
  • संसद ने अप्रैल में वक्फ संशोधन अधिनियम, 2025 पारित किया। इसके तहत भविष्य की संपत्तियों के लिए वक्फ बाय यूज़र (Waqf by user) की अवधारणा को समाप्त कर दिया गया, और वक्फ प्रबंधन पर सरकारी नियंत्रण बढ़ा दिया गया। इसके साथ ही वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने का प्रावधान किया गया।
  • कई याचिकाकर्ताओं ने इस कानून को इस आधार पर चुनौती दी कि यह संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत मुस्लिम समुदाय के अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने के मूल अधिकार का उल्लंघन करता है।

वे प्रावधान जिन पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक लगा दी गई है

• जिला कलेक्टर की शक्तियां:

  • धारा 3C: इसने जिला कलेक्टर को विवादित वक्फ संपत्तियों की जांच करने, जांच के दौरान ऐसी संपत्तियों की वक्फ स्थिति को निलंबित करने और जांच के बाद राजस्व और वक्फ बोर्ड के रिकॉर्ड में संशोधन करने की शक्ति प्रदान की।
  • न्यायालय का स्थगन (स्टे): न्यायालय ने उन धाराओं पर रोक लगा दी जो जांच के दौरान वक्फ के दर्जे को निलंबित करती हैं और अधिकारियों को राजस्व या वक्फ बोर्ड के रिकॉर्ड में बदलाव करने की अनुमति देती हैं। न्यायालय ने ऐसी शक्तियों को मनमाना और शक्तियों के पृथक्करण के खिलाफ बताया, साथ ही आदेश दिया कि न्यायाधिकरण के अंतिम निर्णय तक वक्फ को बेदखल नहीं किया जाएगा और किसी तीसरे पक्ष को अधिकार नहीं सौंपा जाएगा।

• वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों को शामिल करना: 

  • याचिकाकर्ताओं का तर्क: नया कानून वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम बहुमत की अनुमति देता है और उनके अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने के अधिकार का उल्लंघन करता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश: न्यायालय ने आदेश दिया कि केंद्रीय वक्फ परिषद, जिसमें 22 सदस्य हैं, में चार से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे और राज्य वक्फ बोर्ड, जिसमें 11 सदस्य हैं, में तीन से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे।

• 5 साल तक इस्लाम का पालन करने का नियम: 

  • याचिकाकर्ताओं का तर्क: 2025 के अधिनियम ने ‘वक्फ’ की परिभाषा में संशोधन किया, जिसमें कहा गया कि इसे केवल “किसी व्यक्ति द्वारा यह दर्शाने या प्रदर्शित करने पर ही बनाया जा सकता है कि वह कम से कम पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहा है”।
  • सर्वोच्च न्यायालय का आदेश: न्यायालय ने इस प्रावधान पर तब तक रोक लगा दी जब तक कि सरकार इस संबंध में नियम नहीं बना लेती और पांच वर्षों में किसी व्यक्ति के धार्मिक आचरण को निर्धारित करने के लिए कोई तंत्र नहीं बना लेती।

वे प्रावधान जिन पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रोक नहीं लगाई गई है

  • ‘वक्फ बाय यूज़’ को समाप्त करना: याचिकाकर्ताओं ने “वक्फ बाय यूज़” शब्द को हटाने का विरोध किया, जिसके तहत धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए लंबे समय से उपयोग की जा रही भूमि को वक्फ माना जाता था। सरकार का तर्क था कि इसका दुरुपयोग अतिक्रमण के लिए किया गया है। हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय ने इसे संभावित रूप से समाप्त करने पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।
  • परिसीमा अधिनियम की प्रयोज्यता: सर्वोच्च न्यायालय ने वक्फ अधिनियम के उस प्रावधान को हटाने का फैसला बरकरार रखा जो वक्फ संपत्तियों को परिसीमा अधिनियम से छूट देता था। इसका तात्पर्य यह है कि अब वक्फ के पास अतिक्रमण के खिलाफ मुकदमा दायर करने की एक तय समय सीमा है। न्यायालय ने कहा कि यह बदलाव पूर्ववर्ती भेदभाव को दूर करता है।

स्रोत:
Indian Express
The Hindu

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