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सामान्य अध्ययन-2: कार्यपालिका और न्यायपालिका की संरचना, गठन और कार्यप्रणाली – सरकार के मंत्रालय और विभाग; दबाव समूह और औपचारिक/अनौपचारिक संघ तथा राजनीति में उनकी भूमिका।
संदर्भ:
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कानूनी पेशे की स्वतंत्रता की रक्षा करते हुए एक ऐतिहासिक निर्णय दिया है। इस निर्णय में कहा गया है कि जांच एजेंसियों द्वारा वकीलों को केवल उनके मुवक्किलों को दी जाने वाली कानूनी सलाह के लिए समन नहीं भेजा जा सकता।
निर्णय के मुख्य बिंदु
अधिवक्ता- मुवक्किल विशेषाधिकार:
- भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BSA), 2023 की धारा 132, वकील और मुवक्किल के बीच गोपनीय संचार को मुवक्किल की सहमति के बिना प्रकटीकरण से बचाने का विशेषाधिकार प्रदान करती है।
 - यह विशेषाधिकार आत्म-दोषसिद्धि (अनुच्छेद 20(3)) से सुरक्षा प्रदान करता है और प्रभावी कानूनी प्रतिनिधित्व के लिए आवश्यक गोपनीयता को सुरक्षित रखता है।
 - इस विशेषाधिकार के दायरे का विस्तार पेशेवर संबंधों के अंतर्गत साझा की गई कानूनी सलाह, राय और दस्तावेजों तक है, लेकिन आपराधिक कृत्यों को बढ़ावा देने के लिए किए गए संचार को इसमें शामिल नहीं किया गया है।
 
प्रक्रियात्मक निर्देश:
- शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए, किसी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी (अधीक्षक पद से नीचे का नहीं) से पूर्व लिखित अनुमति (कारणों सहित) अनिवार्य है।
 - समन से पहले मजिस्ट्रेट की अनुमति लेने के लिए कोई व्यापक दिशानिर्देश नहीं हैं, लेकिन वरिष्ठ अधिकारी की अनुमति जैसी सख्त प्रक्रियात्मक जाँच लागू है।
 - गोपनीयता की रक्षा के लिए वकीलों के डिजिटल उपकरणों की जब्ती या तलाशी हेतु भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 94 के अनुसार न्यायिक पर्यवेक्षण की आवश्यकता होती है।
 
वकीलों को समन भेजने की सीमाएँ:
- समन केवल तभी वैध होता है जब धारा 132 के तहत अपवाद लागू होते हैं, जैसे कि जब कोई वकील अपने पेशेवर कर्तव्यों से परे कथित आपराधिक गतिविधि में संलग्न हो।
 - धारा 132 दस्तावेजों या भौतिक साक्ष्य के सृजन को सुरक्षित नहीं करती है।
 - जारी किए गए किसी भी समन की भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 528 के तहत न्यायिक समीक्षा की जा सकेगी।
 - यह विशेषाधिकार मुकदमेबाजी के साथ-साथ सलाहकारी कार्य में संलग्न वकीलों को भी मिलेगा।
 
निर्णय के निहितार्थ
- निष्पक्ष सुनवाई और गोपनीयता की सुरक्षा: यह निर्णय कानूनी सलाह की गोपनीयता की सुरक्षा करके निष्पक्ष सुनवाई के संवैधानिक अधिकार को बल प्रदान करता है, जो प्रभावी रक्षा और अधिवक्ताओं को भयमुक्त होकर कार्य करने की अनुमति देने के लिए आवश्यक है।
 - जांच एजेंसियों की कार्यवाही से सुरक्षा: यह सुनिश्चित करके कि वकीलों को जांच एजेंसियों द्वारा धमकाया या परेशान नहीं किया जाएगा, जांच शक्तियों के संभावित दुरुपयोग को रोकता है, तथा बार की स्वतंत्रता पर रोक लगाने के खतरों के संबंध में लंबे समय से चली आ रही चिंताओं का समाधान करता है।
 - विशेषाधिकार और जवाबदेही के प्रति संतुलित दृष्टिकोण: अधिवक्ता-मुवक्किल विशेषाधिकार को संरक्षित करते हुए और उन मामलों में अपवाद की अनुमति देते हुए जहाँ वकील आपराधिक गतिविधि में संलग्न हैं, यह निर्णय कानूनी नैतिकता से समझौता किए बिना जांच की प्रभावशीलता को बनाए रखता है।
 - एक समान राष्ट्रीय मानक स्थापित करना: यह निर्णय सभी जांच निकायों अर्थात् पुलिस और विशेष एजेंसियों के लिए एक सुसंगत राष्ट्रीय ढांचा तैयार करता है, जिससे प्रक्रियात्मक स्पष्टता और एकरूपता बढ़ती है।
 - विधि के शासन के प्रति न्यायिक प्रतिबद्धता: यह न्यायपालिका की पेशेवर सुरक्षा और विधि के शासन को बनाए रखने के प्रति निरंतर प्रतिबद्धता को दर्शाता है, भले ही भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 जैसे कानून के तहत जांच ढांचे विकसित हो रहे हों।
 
