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सामान्य अध्ययन-1: स्वतंत्रता संग्राम- इसके विभिन्न चरण और देश के विभिन्न भागों से इसमें अपना योगदान देने वाले महत्त्वपूर्ण व्यक्ति/उनका योगदान।
संदर्भ:
23 जुलाई 2025 को प्रधानमंत्री ने लोकमान्य तिलक की 169वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की।
लोकमान्य तिलक के बारे में

- जन्म:
- बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था।
- ब्रिटिश औपनिवेशिक अधिकारियों ने उन्हें “भारतीय अशांति के जनक” की उपाधि दी।
- उन्हें “लोकमान्य” की उपाधि भी प्रदान की गई, जिसका अर्थ है “लोगों द्वारा उन्हें अपना नेता स्वीकार किया जाना”।
- महात्मा गांधी ने उन्हें “आधुनिक भारत का निर्माता” कहा था।
- पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें “भारतीय क्रांति का जनक” कहा था।
- प्रारंभिक जीवन और कैरियर:
- युवा तिलक ने पूना के डेक्कन कॉलेज में दाखिला लिया, जहां उन्होंने 1876 में गणित और संस्कृत में स्नातक की डिग्री पूरी की।
- बाद में उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय (अब मुंबई) से कानून की पढ़ाई की और 1879 में डिग्री हासिल की।
- 1880 में बाल गंगाधर तिलक, गोपाल गणेश अगरकर और विष्णुशास्त्री चिपलूनकर ने पुणे में न्यू इंग्लिश स्कूल की स्थापना की।
- उन्होंने गोपाल गणेश अगरकर और अन्य लोगों के साथ मिलकर डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी (1884) की स्थापना की।
- समाचार पत्र:
- केसरी (मराठी में)
- महरत्ता (अंग्रेजी में)
- पुस्तकें:
- गीता रहस्य
- द आर्कटिक होम इन द वेदाज़
- द ओरायन: ऑन द एंटिक्विटी ऑफ द वेदाज़
- नारा:
- ” स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा!”
- विचारधारा:
- तिलक ने राष्ट्रवादी आंदोलन की सीमित पहुँच को विस्तारित करने का प्रयास किया, जो उस समय मुख्यतः समाज के उच्च वर्गों तक सिमटा हुआ था। उन्होंने इसके लिए हिंदू धार्मिक प्रतीकों का सहारा लिया और मराठों द्वारा मुस्लिम शासन के विरुद्ध किए गए संघर्ष को उजागर कर जनमानस को आंदोलन से जोड़ने का कार्य किया।
- उन्होंने हिंदू पहचान को जागृत करने और जनमत को संगठित करने के उद्देश्य से दो प्रमुख उत्सवों — 1893 में गणेश उत्सव और 1895 में शिवाजी उत्सव — का आयोजन किया। इन उत्सवों ने जहाँ राष्ट्रवादी आंदोलन को जनसामान्य में लोकप्रिय बनाया, वहीं इससे विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के साथ साम्प्रदायिक तनाव भी उत्पन्न हुए।
- राष्ट्रीय स्तर पर उदय:
- तिलक के कार्यों ने भारतीय जनता को संगठित किया, लेकिन इससे अंग्रेजों के साथ संघर्ष हुआ, जिसके परिणामस्वरूप 1897 में उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया और उन्हें कारावास की सजा दी गई।
- 1905 में तिलक ने बंगाल विभाजन को रद्द करने की बंगालियों की मांग का पुरजोर समर्थन किया और ब्रिटिश वस्तुओं के राष्ट्रीय बहिष्कार की वकालत की।
- 1906 में तिलक ने नए दल के सिद्धांतों की घोषणा की, जिनका उद्देश्य निष्क्रिय प्रतिरोध के माध्यम से ब्रिटिश शासन को निर्बल करना और भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए तैयार करना था।
- तिलक का लक्ष्य केवल क्रमिक सुधार नहीं, बल्कि पूर्ण स्वराज्य (स्वतंत्रता) प्राप्त करना था। इसी उद्देश्य से उन्होंने कांग्रेस पार्टी को अपने उग्रवादी कार्यक्रम को अपनाने के लिए प्रेरित करने का प्रयास किया।
- इसके कारण 1907 के सूरत (अब गुजरात राज्य) अधिवेशन में नरमपंथियों के साथ टकराव हुआ, जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस पार्टी का विभाजन हो गया।
- इसने गोपाल कृष्ण गोखले के नेतृत्व वाले नरमपंथियों को, जो क्रमिक सुधारों की वकालत कर रहे थे, तथा बाल गंगाधर तिलक, बिपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय के नेतृत्व वाले गरमपंथियों को, जो ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रत्यक्ष कार्रवाई और स्वदेशी आंदोलन के पक्षधर थे, विभाजित कर दिया।
- राष्ट्रवादी विचारधारा में विभाजन का फायदा उठाते हुए, अंग्रेजों ने तिलक पर पुनः राजद्रोह का मुकदमा चलाया और उन्हें मांडले, बर्मा (म्यांमार) निर्वासित कर दिया, जहां उन्होंने छह वर्ष की जेल की सजा (1908-1914) काटी।
- 1914 में रिहाई के बाद वे सक्रिय राजनीति में लौट आये।
- 1916 में तिलक ने आयरिश होम रूल की तर्ज पर स्वशासन की मांग करते हुएइंडियन होम रूल लीग की स्थापना की ।
- मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में मुस्लिम लीग के साथ लखनऊ समझौते में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा मिला।
- 1918 में, उन्होंने भारत के मुद्दे पर ब्रिटिश राजनीतिक दलों, विशेष रूप से लेबर पार्टी से समर्थन प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड की यात्रा की।
- तिलक गांधीजी द्वारा परिषदीय राजनीति के बहिष्कार के आलोचक रहे, तथा इसके विपरीत उन्होंने संवैधानिक सुधारों के लिए “उत्तरदायी सहयोग” की वकालत की।
स्रोत: The Hindu